फैमिली कोर्ट के पास वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका में न्यायिक पृथक्करण प्रदान करने का कोई अधिकार नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट (Family Court) के पास वैवाहिक सहवास (Restitution of Conjugal Rights) की याचिका पर न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) देने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस आर. सुरेश कुमार और जस्टिस ए.डी. मारिया क्लीट की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) कि सहवास की याचिका पर नहीं दे सकता। यह केवल तलाक की याचिका पर न्यायिक पृथक्करण देने की अनुमति देता है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
मामले में पत्नी ने सहवास की याचिका और पति ने तलाक की याचिका दायर की थी।
फैमिली कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर साझा आदेश पारित करते हुए न्यायिक पृथक्करण दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि यह कानून का उल्लंघन है, क्योंकि सहवास की याचिका पर ऐसा आदेश देने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
पति ने अदालत को बताया कि उसकी पत्नी मानसिक क्रूरता कर रही थी, उसे अपशब्द कहती थी मारपीट करती थी और माता-पिता को भी नुकसान पहुंचाया।
फैमिली कोर्ट ने उसके माता-पिता की गवाही न होने के कारण इन बातों को अनदेखा कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पति की गवाही मजबूत और स्पष्ट है तो केवल गवाहों की अनुपस्थिति से उसे खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने माना कि पत्नी द्वारा की गई मानसिक प्रताड़ना, झूठे आरोप और निराधार शिकायतें, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता की श्रेणी में आती हैं।
कोर्ट ने यह भी ध्यान में लिया कि दोनों पक्ष 2013 से यानी लगभग 14 वर्षों से अलग रह रहे हैं, जो इस बात को दर्शाता है कि वैवाहिक संबंध पूरी तरह टूट चुका है।
इन सब तथ्यों को देखते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का न्यायिक पृथक्करण का आदेश रद्द कर पति को तलाक की मंजूरी दे दी।