PMLA मामले में अंतरिम रोक के बावजूद जांच जारी रखने पर मद्रास हाईकोर्ट ने ED के असिस्टेंट डायरेक्टर को तलब किया
मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के असिस्टेंट डायरेक्टर विकास कुमार को अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका फ़िल्म निर्माता आकाश भास्करन ने दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि हाईकोर्ट की रोक आदेश के बावजूद ED ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जांच जारी रखी।
जस्टिस एम.एस. रमेश और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए असिस्टेंट डायरेक्टर को 17 सितंबर को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि अंतरिम आदेश की जानकारी होने के बावजूद, अधिकारी ने फ़िल्म निर्माता को शो-कॉज़ नोटिस जारी कर दिया।
अदालत ने मौखिक टिप्पणी की,
“कोई सीमा होनी चाहिए। जब आदेश पारित किया गया, तब वे अदालत में उपस्थित थे।”
खंडपीठ ने पहले भी कहा कि आदेश की अवहेलना करना सराहनीय नहीं है, जबकि अधिकारी पूरी तरह से अंतरिम स्थगन आदेश से अवगत थे।
अदालत ने इससे पहले फ़िल्म निर्माता आकाश भास्करन और व्यवसायी विक्रम रविंद्रन की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ED द्वारा उनके घर और दफ़्तर पर की गई तलाशी के मामले में निदेशालय पर प्रत्येक याचिका में ₹10,000 का जुर्माना लगाया था। यह दंड इसलिए लगाया गया, क्योंकि ED ने अंतिम अवसर दिए जाने के बाद भी जवाबी हलफ़नामा दाख़िल नहीं किया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को अदालत को बताया कि निदेशालय ने इस जुर्माने के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने का निर्णय लिया और जुर्माना माफ़ करने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन भी दायर किया गया।
याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि तलाशी के दौरान ED ने उनके बंद घर और कार्यालय को सील कर दिया था। अदालत ने ED से वे दस्तावेज़ मांगे, जिनके आधार पर तलाशी की कार्रवाई की गई। दस्तावेज़ों की जांच करने पर अदालत ने पाया कि तलाशी का प्राधिकरण अधिकार-क्षेत्र से बाहर है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई आपत्तिजनक सामग्री उपलब्ध नहीं है।
अदालत ने 20 जून, 2025 को ED द्वारा शुरू की गई सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी थी।
इसके बावजूद, आकाश भास्करन को 11 जुलाई, 2025 को शो-कॉज़ नोटिस मिला, जिसमें असिस्टेंट डायरेक्टर विकास कुमार का पत्र भी संलग्न था। इस पत्र में PMLA की धारा 8(1) के तहत कारणों की रिकॉर्डिंग की प्रति, अनुपालन हेतु नोट मूल आवेदन और अन्य दस्तावेज़ शामिल थे।
विशेष लोक अभियोजक ने जब तर्क दिया कि नोटिस संभवतः अनजाने में जारी हुआ तो अदालत ने कहा कि अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से पेश होना चाहिए ताकि उसे प्रक्रिया की जानकारी दी जा सके और भविष्य में ऐसी गलती न हो।
अदालत ने अंततः असिस्टेंट डायरेक्टर को 17 सितंबर को व्यक्तिगत उपस्थिति हेतु समन जारी किया।
केस टाइटल: Akash Baskaran v. The Joint Director and Others