नागरिकों को अपनी संपत्ति पर प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार, बशर्ते इससे समुदायों के बीच टकराव न हो: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2024-11-26 09:24 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने व्यक्ति को अपनी निजी भूमि पर फादर स्टेन स्वामी की तस्वीर वाला पत्थर का स्तंभ स्थापित करने की अनुमति दी, जो आदिवासी व्यक्तियों के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों का सम्मान करता है।

राज्य अधिकारियों द्वारा जारी किए गए नोटिस को खारिज करते हुए जस्टिस एम ढांडापानी ने टिप्पणी की कि फादर स्टेन स्वामी ने आदिवासी व्यक्तियों के कल्याण के लिए बहुत प्रयास किए। न्यायालय ने यह भी कहा कि नागरिकों को अपनी निजी संपत्ति में प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार है। एकमात्र प्रतिबंध यह है कि इस तरह के निर्माण से सांप्रदायिक संघर्ष नहीं होना चाहिए। वर्तमान मामले में न्यायालय ने कहा कि नोटिस अनुचित है, इसलिए इसे रद्द करने के लिए इच्छुक है।

अदालत ने कहा,

“जब किसी व्यक्ति के खिलाफ लगाया गया आरोप साबित नहीं होता है तो उक्त आरोप निरर्थक है। वर्तमान मामले में फादर स्टैन स्वामी ने आदिवासियों के कल्याण के लिए अधिक प्रयास किए। अब उनके सामने याचिकाकर्ता की निजी भूमि पर उनकी प्रतिमा/पत्थर का स्तंभ स्थापित करने का मुद्दा है। एक सामान्य सिद्धांत के रूप में कानून नागरिकों को अपनी निजी संपत्ति में प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार देता है। एकमात्र प्रतिबंध यह है कि प्रतिमा के ऐसे निर्माण से दो समुदायों के बीच कोई संघर्ष नहीं होना चाहिए या किसी विशेष समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचे। अगर निजी पट्टे की जमीन पर प्रतिमा लगाने की अनुमति है तो इसमें कोई कानूनी बाधा नहीं है।”

पीयूष सेठिया ने नल्लमपल्ली तालुका के तहसीलदार द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने और फादर स्टेन स्वामी की स्मृति में पत्थर का स्तंभ स्थापित करने की अनुमति देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सेठिया ने अदालत को सूचित किया कि वह कृषि भूमि का प्रबंधन कर रहे हैं और खेती और वाटरशेड विकास गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।

सेठिया ने प्रस्तुत किया कि सहकारी वन के माध्यम से वह टिकाऊ खेती और जीवन शैली प्रथाओं के बारे में सिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके गुरु स्वर्गीय फादर स्टेन स्वामी थे। उनकी याद में वे पत्थर का स्तंभ खड़ा करना चाहते थे, लेकिन अधिकारियों द्वारा नोटिस दिए जाने के कारण यह प्रयास बाधित हो गया।

राज्य ने याचिका पर आपत्ति जताई और कहा कि सेठिया ने अधिकारियों से उचित अनुमति लिए बिना पत्थर के स्तंभ का अनावरण करने का प्रयास किया। यह भी कहा गया कि पत्थर की पट्टिका एक ऐसे व्यक्ति से संबंधित है, जो नक्सलियों और माओवादियों से संबंधित है। इससे क्षेत्र की कानून-व्यवस्था बाधित होगी। राज्य ने यह भी तर्क दिया कि हाल ही में आदिवासी बस्तियां असामाजिक तत्वों और सरकार विरोधी विचारधाराओं के प्रजनन के लिए स्वर्ग बन गई। इस तरह ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में प्रतिमा का अनावरण करने से सांप्रदायिक झड़पें और तनाव पैदा होंगे।

अदालत ने कहा कि निजी भूमि पर प्रतिमा स्थापित करने का मुद्दा पहले ही सुलझा लिया गया। राज्य नागरिकों के निजी जीवन और निजी परिसर में कोई भी प्रतिमा स्थापित करने के उनके अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

इस प्रकार, अदालत ने तहसीलदार का आदेश खारिज कर दिया और फादर स्टेन स्वामी की निजी भूमि पर पत्थर का स्तंभ स्थापित करने की याचिका को अनुमति दी। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह भी चेतावनी दी कि वह सुनिश्चित करे कि पत्थर के खंभे को खड़ा करते समय जनता को कोई परेशानी न हो।

केस टाइटल: पीयूष सेठिया बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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