[Organ Donation] मनुष्य विपत्ति में दूसरों की जान बचाने के लिए जाने जाते हैं, दूर के रिश्तेदारों की परोपकारिता पर संदेह नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसके विपरीत कोई ठोस सबूत न हो: मद्रास हाइकोर्ट

Update: 2024-06-01 07:49 GMT

मद्रास हाइकोर्ट ने माना कि अंगदान के लिए मंजूरी देने के मामले में प्राधिकरण समिति को उन दानकर्ताओं द्वारा दिए गए बयानों को जो रोगियों के निकट संबंधी नहीं हैं, बिना सबूत पेश करने पर जोर दिए उनके बयानों को सच मान लेना चाहिए।

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने रेखांकित किया कि सभी धर्मों में प्रेम और दान को सर्वोच्च मूल्य माना गया। सभी मानवीय प्रयासों को स्वार्थी विचार से नहीं दर्शाया गया। इस प्रकार न्यायालय ने माना कि जब तक इसके विपरीत सबूत नहीं दिखाए जाते समिति को दानकर्ता द्वारा दिए गए बयान को स्वीकार करना चाहिए कि अंग प्रेम और स्नेह के कारण दान किया जा रहा है।

अदालत ने कहा,

"सभी धर्मों में प्रेम और दान को सर्वोच्च गुण माना गया। सैकड़ों और हजारों लोगों ने बड़े और अवैयक्तिक कारणों के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। यह आवश्यक नहीं है कि सभी मानवीय प्रयासों के पीछे स्वार्थी विचार ही हो। कुछ कथनों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जा सकता है। इसलिए मेरा मानना ​​है कि दानकर्ता द्वारा यह कथन कि वह प्राप्तकर्ता के लिए प्रेम और स्नेह के कारण दान कर रहा है, उसे अंकित मूल्य पर लिया जाना चाहिए। बेशक यदि विचार पारित करने के लिए निश्चित भौतिक साक्ष्य हैं तो इस कथन को अस्वीकार कर दिया जाएगा। इस बात के अधीन कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि धन या धन का मूल्य हाथों में गया, अनुमति दी जानी चाहिए।"

अदालत उन लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो किडनी ट्रांसप्लांट करवाने की प्रक्रिया में थे, लेकिन उनके आवेदन को प्राधिकरण समिति ने खारिज कर दिया, क्योंकि दानकर्ता निकट रिश्तेदार नहीं थे। अदालत ने कहा कि मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 (Transplantation of Human Orans and Tissues Act 1994) किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में किडनी दान करने पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, जो निकट रिश्तेदार नहीं है बल्कि केवल यह अनिवार्य करता है कि राज्य प्राधिकरण समिति से पूर्व अनुमोदन के बाद प्रत्यारोपण किया जाए।

न्यायालय ने कहा कि कई बार प्राधिकरण समिति ऐसे मामलों में स्वीकृति देने में हिचकिचाती है, जिसके कारण रोगी और दाता न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं। न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण समिति अक्सर यह आकलन करते समय दाता और प्राप्तकर्ता के बीच संबंध की अवधि को ध्यान में रखती है कि क्या दान प्रेम और स्नेह से किया गया। न्यायालय ने कहा कि यह दृष्टिकोण अक्सर सही नहीं होता, क्योंकि प्रेम और स्नेह अमूर्त होते हैं जबकि समय मापने योग्य होता है।

न्यायालय ने कहा कि आवेदकों के कंधों पर यह साबित करने का बहुत अधिक बोझ नहीं डाला जा सकता कि कोई वाणिज्यिक लेन-देन नहीं था। न्यायालय ने कहा कि जब तक यह दिखाने के लिए कोई निश्चित सामग्री न हो कि वित्तीय लेन-देन था, तब तक अनुमति को अस्वीकार या रोका नहीं जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि समिति को हमेशा यह संदेहपूर्ण दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए कि कोई गैर-निकट संबंधी परोपकारी विचार से दान नहीं करेगा। न्यायालय ने रेखांकित किया कि परोपकारिता मनुष्यों में मौजूद है, जो खतरे और विपत्ति के समय अपनी जान की कीमत पर भी दूसरों को बचाने के लिए जाने जाते हैं। न्यायालय ने राज्य को इस संबंध में दिशा-निर्देश बनाने का सुझाव भी दिया, जिसके अभाव में यह मामला प्राधिकरण समिति के मनमाने निर्णय पर छोड़ दिया जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि अधिकांश मामलों में यदि आवेदक जुड़ा हुआ था तो उसका आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है, जबकि आवेदन को टेम्पलेट तरीके से खारिज कर दिया जाता है।

दानकर्ता की ऑपरेशन के बाद देखभाल करना प्राप्तकर्ता का कर्तव्य

न्यायालय ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अधिनियम में कहा गया कि दान वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए, लेकिन इसमें प्राप्तकर्ता द्वारा दानकर्ता की ऑपरेशन के बाद की आवश्यकताओं का ध्यान रखने के बारे में कुछ नहीं कहा गया।

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण समिति का दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि दानकर्ता की आवश्यकताएं पूरी हों। इसके लिए न्यायालय ने सुझाव दिया कि प्राप्तकर्ता दानकर्ता के पक्ष में चिकित्सा बीमा कवरेज ले और प्राधिकरण समिति के खाते में एकमुश्त राशि जमा करे। न्यायालय ने कहा कि समिति तीन वर्ष की अवधि के लिए दानकर्ता के बैंक अकाउंट में हर महीने एक निश्चित राशि जमा करने के निर्देश जारी करेगी और दानकर्ता को लाभ सुनिश्चित करेगी।

इस प्रकार, न्यायालय ने सभी याचिकाकर्ताओं को सीधे प्राधिकरण समिति के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी तथा उन्हें इसकी जांच करने तथा योग्यता के आधार पर अंतिम आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- सुधा मथेसन बनाम प्राधिकरण समिति (प्रत्यारोपण)

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