विवाह की अमान्यता पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकती: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2024-08-21 06:41 GMT

पत्नी को भरण-पोषण देने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्थापित स्थिति है कि भले ही किसी सक्षम न्यायालय द्वारा विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया हो लेकिन यह पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकेगा।

न्यायालय ने कहा,

“अब यह भी कमोबेश स्थापित हो चुका है कि विवाह की अमान्यता भले ही किसी सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा घोषित कर दी गई हो लेकिन यह पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकती। यहां यह घोषणा का मामला नहीं है बल्कि यह CrPc की धारा 125 के तहत दायर भरण-पोषण का मामला है।”

जस्टिस जी इलांगोवन एक पति द्वारा हाईकोर्ट के उस पूर्व आदेश को वापस लेने की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उसकी पत्नी को 5000/- रुपये का भरण-पोषण निर्धारित किया था।

न्यायालय ने कहा कि यदि पति को आदेश से कोई शिकायत थी तो उसे उचित कार्यवाही के माध्यम से इसका समाधान करना चाहिए था। इस प्रकार न्यायालय ने आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि प्रक्रिया का पालन किए बिना दायर की गई याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

न्यायालय के पिछले आदेश को चुनौती देते हुए पति ने तर्क दिया कि विवाह स्वयं ही अमान्य है, क्योंकि वह और पत्नी दोनों अलग-अलग धर्मों के हैं और विवाह मंदिर में थाली बांधकर किया गया। यह तर्क दिया गया कि थाली बांधकर गैर-हिंदू से विवाह करना वैध विवाह नहीं है। विभिन्न धर्मों के व्यक्ति केवल विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही विवाह कर सकते हैं।

हालांकि न्यायालय ने कहा कि पति को इन बिंदुओं को या तो निचली अदालत के समक्ष या पुनर्विचार याचिका के समय उठाना चाहिए था, जिसमें भरण-पोषण का आदेश दिया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण के आदेश को वापस लेने की याचिका में इन आधारों को ध्यान में नहीं रखा जा सकता।

पति ने आदेश को यह कहते हुए भी चुनौती दी थी कि पुनर्विचार अदालत साक्ष्यों का पुनर्विचार नहीं कर सकती। हालांकि अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अदालत ने साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया बल्कि केवल पक्षों के लंबे समय तक साथ रहने को ध्यान में रखते हुए भरण-पोषण का आदेश दिया।

हालांकि, पति ने भी आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि पत्नी ने काफी देरी के बाद भरण-पोषण मांगा था लेकिन अदालत इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। कहा कि देरी अपने आप में भरण-पोषण के लिए अयोग्य ठहराने का कारण नहीं है।

अदालत ने कहा,

“देरी अपने आप में पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने के लिए अयोग्य ठहराने का कारण नहीं हो सकती। उम्र बढ़ने के साथ परिस्थितियां बदल सकती हैं। उम्र के इस पड़ाव पर प्रतिवादी ने भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दायर की। इस पर इस अदालत ने विचार किया और भरण-पोषण का आदेश दिया। यदि याचिकाकर्ता को उस आदेश पर कोई शिकायत थी तो उसे उचित कार्यवाही के माध्यम से मामले को उठाना चाहिए था।”

इस प्रकार, अदालत ने यह पाते हुए रिकॉल याचिका खारिज की कि यह सुनवाई योग्य नहीं है।

केस टाइटल- सत्यमूर्ति बनाम अर्पुथा मैरी

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