मैटरनिटी बेनेफिट एक्ट के प्रावधान संविदात्मक शर्तों पर लागू होंगे, संविदा कर्मचारियों पर भी लागू होंगे: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2024-10-24 09:26 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि मैटरनिटी बेनेफिट एक्ट (Maternity Benefits Act) के प्रावधान नियोक्ता द्वारा किसी महिला को मेटरनिटी बेनेफिट से वंचित करने के लिए निर्धारित किसी भी संविदात्मक शर्तों पर लागू होंगे।

चीफ जस्टिस केआर श्रीराम और जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने कहा कि मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट के लाभ संविदा कर्मचारियों पर भी लागू होंगे। नियोक्ता उन्हें ऐसे लाभों से वंचित करने के लिए रोजगार के अनुबंध पर भरोसा नहीं कर सकता।

अदालत ने कहा,

“धारा 27 के आधार पर 1961 एक्ट के प्रावधान संविदात्मक शर्तों पर प्रभावी होंगे, जो मातृत्व लाभ से इनकार करते हैं या कम अनुकूल मातृत्व लाभ प्रदान करते हैं। नतीजतन, मेटरनिटी बेनेफिट से इनकार करने के लिए नियुक्ति और पोस्टिंग आदेश की शर्त 6 पर प्रतिवादियों द्वारा भरोसा करना अस्वीकार्य है।”

अदालत एमआरबी नर्स एम्पावरमेंट एसोसिएशन द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत काम करने वाली सभी स्टाफ नर्सों को 270 दिनों के सवेतन मेटरनिटी लीव सहित मेटरनिटी बेनेफिट देने का निर्देश देने की मांग की गई।

याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने प्रस्तुत किया कि इसकी स्थापना स्टाफ नर्सों के उत्थान के एकमात्र उद्देश्य से की गई। एसोसिएशन ने अदालत को बताया कि राज्य ने प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से 11,000 से अधिक स्टाफ नर्सों की भर्ती की थी जिनका समेकित वेतन 7,000 रुपये प्रति माह था, जिसे बाद में संशोधित कर 14,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया।

एसोसिएशन ने तर्क दिया कि वे दो साल से अधिक समय से इस योजना के तहत काम कर रहे थे। इस प्रकार मैटरनिटी बेनेफिक एक्ट के अनुसार वेतन सहित 270 दिनों के मैटरनिटी लीव के लिए पात्र थे। उन्होंने आगे कहा कि राज्य उन्हें केवल इसलिए लाभ देने से इनकार कर रहा है, क्योंकि वे संविदा कर्मचारी हैं।

दूसरी ओर राज्य ने कहा कि नर्सें नियमित सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किसी भी तरह की छुट्टी के लिए पात्र नहीं थीं, सिवाय आकस्मिक लीव के। राज्य ने कहा कि किसी भी अप्रिय घटना के मामले में नर्सों को आकस्मिक लीव के अलावा अन्य छुट्टी लेने की अनुमति है और इसे बिना वेतन के छुट्टी माना जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि डॉ. कविता यादव बनाम सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय विभाग एवं अन्य के हालिया फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक बार जब कोई महिला कर्मचारी धारा 5(2) में निर्दिष्ट पात्रता मानदंडों को पूरा करती है तो वह पूर्ण मैटरनिटी बेनेफिक के लिए पात्र होगी, भले ही ऐसे लाभ उसके अनुबंध की अवधि से अधिक हों।

अदालत ने इस प्रकार अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मातृत्व लाभ के लिए सभी लंबित और नए आवेदनों पर 3 महीने के भीतर विचार करें और तदनुसार आदेश दिया।

केस टाइटल: एमआरबी नर्सेज एम्पावरमेंट एसोसिएशन बनाम प्रिंसिपल सेक्रेटरी और अन्य

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