OBC युवक को दूसरे के पैर धोने के लिए मजबूर करने का मामला | मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपियों को NSA के तहत हिरासत में लेने पर उठाए सवाल
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि उन्होंने OBC समुदाय के एक युवक को दूसरे के पैर धोने के लिए मजबूर करने के आरोपी व्यक्तियों को अदालत के आदेश - जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत भी शामिल है - उसके आधिकारिक तौर पर अपलोड होने से पहले ही हिरासत में क्यों लिया।
अदालत OBC समुदाय के एक युवक को दूसरे व्यक्ति के पैर धोने और उस पानी को पीने के लिए मजबूर करने वाले वीडियो पर स्वतः संज्ञान लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
14 अक्टूबर को जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने इस घटना के वीडियो का स्वतः संज्ञान लिया और दमोह प्रशासन को उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित किया। उक्त खंडपीठ ने आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया। हालांकि, स्वतः संज्ञान मामला 15 अक्टूबर को सुबह 11:39 बजे एक रिट याचिका के रूप में दर्ज किया गया।
15 अक्टूबर को जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की एक अन्य खंडपीठ ने रिट याचिका पर विचार किया। इस खंडपीठ ने सवाल उठाया कि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ 14 अक्टूबर को ही कार्रवाई क्यों की, जबकि मामला औपचारिक रूप से 15 अक्टूबर को ही दर्ज किया गया। साथ ही दमोह के जिला मजिस्ट्रेट ने 14 अक्टूबर को ही पांच आरोपियों को रासुका के तहत हिरासत में लिया था।
खंडपीठ ने कहा;
"इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि दमोह के पुलिस अधीक्षक ने 15.10.2025 को 11:39:26 बजे दर्ज की गई रिट याचिका के रजिस्ट्रेशन की प्रतीक्षा किए बिना, हस्ताक्षरित प्रति के रूप में उन्हें आधिकारिक रूप से सूचित किए बिना, मौखिक आदेश पर संज्ञान ले लिया।"
सुनवाई के दौरान, सीनियर एडवोकेट नमन नागरथ ने तर्क दिया कि गुरुवार को खंडपीठ द्वारा लिया गया स्वतः संज्ञान "अधूरा" है और इसलिए उचित नहीं है।
उन्होंने विचारार्थ कुछ मुद्दे रखे-
(i) क्या समन्वय पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए अपनी स्वप्रेरणा शक्ति का उचित ढंग से प्रयोग किया?
(ii) क्या समन्वय पीठ द्वारा पुलिस अधिकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के प्रावधानों को लागू करने का निर्देश देना उचित है, जबकि उसने स्वयं यह भी कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई आमतौर पर कार्यपालिका के विवेकाधिकार के अंतर्गत आती है।
यह देखते हुए कि रिट याचिका 15 अक्टूबर, सुबह 11:39 बजे दर्ज की गई, नागरथ ने दलील दी कि पुलिस ने मौखिक निर्देश पर हाईकोर्ट की वेबसाइट पर कोई औपचारिक आदेश अपलोड होने से पहले ही जल्दबाजी में कार्रवाई की।
नागरथ के अनुसार, पुलिस अधिकारियों ने 14 अक्टूबर को आधिकारिक माध्यम से आदेश दिए बिना अन्नू पांडे सहित चार व्यक्तियों को हिरासत में ले लिया। इसके अलावा, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने भी औपचारिक आदेश की प्रतीक्षा किए बिना 14 अक्टूबर को रासुका के तहत हिरासत के आदेश जारी कर दिए।
कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सीनियर एडवोकेट नागरथ द्वारा दायर अंतरिम आवेदन पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि उन्होंने अपने रुख से पलटी मार ली है। उन्होंने पहले कहा था कि चारों आरोपियों को हिरासत में लिया गया, लेकिन बाद में पलटी मारते हुए कहा कि उन पर रासुका नहीं लगाया गया।
एडिशनल एडवोकेट जनरल जान्हवी पंडित ने दावा किया कि पुलिस अधीक्षक ने सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार कार्रवाई की। यह भी कहा गया कि अदालत के रीडर ने डिप्टी-एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी को बुलाकर आदेश की व्हाट्सएप कॉपी सौंपी थी। पंडित ने यह भी बताया कि 14 अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में 5 लोगों के खिलाफ रासुका की धारा 3(2) का प्रावधान लागू किया गया।
अदालत ने राज्य की रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया और कहा कि रासुका की धारा 3(2) के अलावा, BNS की धारा 196(2), 352, 351(2) भी जोड़ी गईं। अदालत ने कहा कि पुलिस अधीक्षक ने औपचारिक आदेश की प्रतीक्षा किए बिना, मौखिक आदेशों के आधार पर संज्ञान ले लिया।
इसलिए अदालत ने राज्य सरकार को निम्नलिखित पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया-
"(i) ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिन्होंने कथित तौर पर तथाकथित आरोपी श्री कुशवाह को फटकार लगाने के लिए एक बैठक बुलाई?
(ii) पुलिस अधीक्षक, दमोह के समक्ष क्या सामग्री प्रस्तुत की गई और उक्त सामग्री पर उनका क्या विचार था, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के प्रावधानों को लागू किया जा सके?
(iii) क्या दिनांक 14.10.2025 के आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त किए बिना और रिट याचिका के पंजीकरण के बिना पुलिस अधीक्षक ने 14.10.2025 का आदेश पारित करने के लिए सद्भावनापूर्वक और अनुचित तरीके से कार्य किया था, जैसा कि विद्वान अपर महाधिवक्ता द्वारा हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया?"
अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट ने 14 अक्टूबर को ही निरोध आदेश पारित किया। इसलिए न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट और संबंधित पुलिस अधीक्षक को एक हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
अदालत ने यूट्यूब चैनल सत्य हिंदी-एमपी, पंजाब केसरी और लल्लनटॉप से भी उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डाली गई सामग्री की सत्यता के बारे में जवाब मांगा।
मामले की सुनवाई 17 अक्टूबर, 2025 के लिए सूचीबद्ध की गई।
Case Title: Court in its own motion v Director General of Police [W.P No. 41264/2025]