मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मानहानि मामला खारिज करने से किया इनकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और दो अन्य की याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने 2021 की कुछ अदालती कार्यवाही के संबंध में सीनियर एडवोकेट और सांसद विवेक तन्खा द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि शिकायत पर संज्ञान लेने के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
ऐसा करते हुए हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने कहा कि यह केवल ट्रायल कोर्ट को देखना है कि धारा 499 आईपीसी के तहत अपराध बनता है या नहीं, जो केवल ट्रायल के दौरान पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर ही किया जा सकता है।
जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने 25 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा:
“मेरी राय में भी यह ऐसा चरण नहीं है, जहां अदालत यह निष्कर्ष निकाल सके कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत सामग्री को 'अस्वीकार्य' करार देते हुए खारिज किया जा सकता था। आईपीसी की धारा 499 के पांचवें अपवाद को देखना लाभदायक है, जो यह दर्शाता है कि धारा 499 के अपराध का ट्रायल न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि मामले का निर्णय न्यायालय में गुण-दोष के आधार पर किया जाना चाहिए। इस बात पर प्रकाश डाला गया कि आवेदकों द्वारा बयान दिए जाने के बाद शिकायतकर्ता ने उन्हें नोटिस भेजकर पूछा कि क्या उन्होंने ऐसा कोई बयान दिया या नहीं और उस स्थिति में आवेदक इससे इनकार कर सकते थे, लेकिन वे चुप रहे और उन्होंने शिकायतकर्ता के नोटिस का जवाब भेजने की जहमत नहीं उठाई।”
हाईकोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016) में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के कुछ पैराग्राफों का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि "किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना वह आधार है, जिस पर" धारा 499 IPC के तहत मानहानि का अपराध स्थापित होता है और "अपराध का गठन करने के लिए मेन्स रीया एक शर्त है"।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,
"इसलिए यह देखना ट्रायल कोर्ट का काम है कि आईपीसी की धारा 499 के तहत अपराध किया गया या नहीं और यह केवल ट्रायल के दौरान पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर ही निर्धारित किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, मामले में संज्ञान लेने से पहले केवल एक ही चीज देखने की आवश्यकता है कि क्या अदालत के समक्ष प्रस्तुत सामग्री मामले में संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त है या नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मजिस्ट्रेट यह राय बनाएगा कि क्या सामग्री दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है।"
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि साक्ष्य को संज्ञान लेने के लिए संबंधित अदालत के समक्ष रखा गया। यह ट्रायल में साबित किया जाएगा कि क्या ऐसे साक्ष्य/सामग्री अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं।
हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि यदि "प्रथम दृष्टया" अदालत को लगता है कि प्रारंभिक चरण में साक्ष्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता तो उसके पास ट्रायल को आगे बढ़ाने और उसके समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य के संबंध में अदालत द्वारा की गई धारणा खारिज करने के लिए अभियुक्त को समन जारी करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता-प्रतिवादी सांसद और सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा ने निचली अदालत के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसमें दावा किया गया कि याचिकाकर्ताओं- जिनमें केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दो अन्य शामिल हैं, ने प्रिंट और विज़ुअल मीडिया में सीनियर वकील के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक बयान दिए और 2021 में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा सुने गए पंचायत चुनावों से संबंधित मामले से संबंधित कार्यवाही का "प्रचार" किया।
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हुए तन्खा ने दावा किया कि दिसंबर 2021 में सुनवाई के दौरान उन्होंने न तो ओबीसी आरक्षण के संबंध में कोई दलील दी और न ही ओबीसी आरक्षण के बारे में कोई दलील दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के 17 दिसंबर, 2021 के आदेश के बाद तन्खा ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने "प्रिंट और विज़ुअल मीडिया में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्यवाही को बदनाम करके उनके खिलाफ समन्वित, दुर्भावनापूर्ण, झूठा और अपमानजनक अभियान चलाया", जिसमें "शिकायतकर्ता को ओबीसी आरक्षण के खिलाफ़ होने के रूप में लक्षित किया जा रहा है।"
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि बयान झूठे थे और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए बनाए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक आलोचना हुई। शिकायतकर्ता द्वारा ट्रायल कोर्ट में जाने के बाद याचिकाकर्ताओं ने शिकायतकर्ता के पंजीकरण/संज्ञान के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आरोपों का समर्थन करने वाले साक्ष्य अस्वीकार्य थे, क्योंकि इसमें मुख्य रूप से मीडिया की कहानियां शामिल थीं। उन्हें लिखने वाले पत्रकारों की गवाही का अभाव था। यह प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता ने गवाहों की सूची प्रस्तुत की, लेकिन अनिवार्य रूप से इसमें गवाह के रूप में कोई समाचार रिपोर्टर शामिल नहीं था। इसका मतलब यह था कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रकाशित और भरोसा की गई कोई भी खबर समाचार रिपोर्टर के रूप में किसी गवाह की अनुपस्थिति में साबित नहीं की जा सकती।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट द्वारा आगे बढ़ने का निर्णय अस्वीकार्य साक्ष्यों पर आधारित था, जिसमें समाचार पत्रों के लेख और मीडिया के बयान शामिल हैं, जिनमें कानूनी प्रमाणिकता का अभाव है। यह तर्क दिया गया कि विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था और अधिक से अधिक शिकायतकर्ता मानहानि के लिए मुआवजे का दावा कर सकता था, लेकिन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए कोई मामला नहीं बनता।
प्रतिवादी शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायत और उस पर लिए गए संज्ञान के साथ उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य, प्रथम दृष्टया अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त पाए गए। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अदालत के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य स्वीकार्य है या नहीं, यह ट्रायल के दौरान तय किया जाएगा। यह प्रस्तुत किया गया कि यह 'कोई सबूत नहीं' का मामला नहीं है। यह तर्क दिया गया कि केवल इसलिए कि गवाहों की सूची में किसी भी समाचार रिपोर्टर का नाम नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे किसी भी गवाह को जोड़ा नहीं जा सकता है या बाद में अपना बयान दर्ज करने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता।
निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा,
मानहानि के अपराध के अपवादों पर ध्यान देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि निर्विवाद रूप से "सार्वजनिक हित" तथ्य का प्रश्न है और "सद्भावना" को भी तथ्य के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए। इसलिए आईपीसी की धारा 499 के तहत अपराध का गठन करने के लिए सद्भावना साबित करने के लिए ट्रायल आवश्यक है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"मैं प्रतिवादी-शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत किए गए इस कथन से पूरी तरह प्रभावित और सहमत हूं कि यदि गवाहों की सूची में किसी समाचार पत्र के रिपोर्टर का उल्लेख नहीं किया गया तो इसका मतलब यह नहीं है कि किसी अन्य व्यक्ति को गवाह के रूप में नहीं बुलाया जा सकता या न्यायालय के पास गवाहों की सूची में शामिल नहीं किसी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुलाने का अधिकार नहीं है। वास्तव में यह प्रस्तुत सामग्री को अस्वीकार्य करार देने का आधार नहीं है।"
शिकायत रद्द करने का कोई कारण न पाते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की।
केस टाइटल: शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम विवेक कृष्ण तन्खा