वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए पत्नी का धैर्य और चुप्पी उसकी ईमानदारी को दर्शाता है, कमजोरी को नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है तो इसे उसकी कमजोरी नहीं कहा जा सकता है बल्कि यह उसके वैवाहिक जीवन के प्रति उसकी ईमानदारी को दर्शाता है।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि यदि यह महसूस करने के बाद कि उसके ससुराल वाले इस हद तक चले गए कि सुलह संभव नहीं है, एक बहू अपने साथ हुई क्रूरता की शिकायत करते हुए FIR दर्ज कराने का फैसला करती है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उक्त FIR तलाक की याचिका का जवाबी हमला है।
ये टिप्पणियां एकल जज ने एक पति और उसके रिश्तेदारों (नंबर 6) द्वारा अपनी पत्नी (प्रतिवादी नंबर 2) के कहने पर उनके खिलाफ दर्ज की गई FIR को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कीं।
पत्नी ने IPC की धारा 498-ए, 323, 294, 506, 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत FIR दर्ज कराई है, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने 2015 में आवेदक नंबर 1 से शादी की थी, जिसमें उसके पिता ने दहेज के रूप में 11,00,000 रुपये नकद और घरेलू सामान दिया।
उसका दावा है कि उनकी बेटी के जन्म के बाद आवेदकों ने दहेज के रूप में अतिरिक्त 5 लाख रुपये और एक होंडा कार की मांग की। जब उसने उन्हें समझाया कि उसके पिता इसे देने में सक्षम नहीं हैं तो उन्होंने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। सुलह के सभी प्रयास विफल होने के बाद आरोपित FIR दर्ज की गई।
FIR को चुनौती देते हुए आवेदकों के वकील ने तर्क दिया कि FIR में दूर के रिश्तेदारों (आवेदक नंबर 5 और 6) के खिलाफ अस्पष्ट और बहुपक्षीय आरोप लगाए गए। यह प्रस्तुत किया गया कि पति (आवेदक नंबर 1) द्वारा तलाक के लिए याचिका दायर करने के बाद काउंटरब्लास्ट द्वारा FIR दर्ज की गई।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक नंबर 1 ने प्रतिवादी नंबर 2 के साथ-साथ उसके पिता और भाई के खिलाफ भी धारा 384, 389, 323, 504 और 506 के साथ धारा 34 के तहत अपराध के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराई।
दूसरी ओर प्रतिवादी नंबर 2 (पत्नी) के वकील ने प्रस्तुत किया कि जहां तक आवेदक नंबर 5 और 6 का संबंध है, उनकी असली बहू ने भी उन्हीं धाराओं के तहत उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई, जो लालच से प्रेरित दुर्व्यवहार का एक पैटर्न सुझाता है।
यह भी तर्क दिया गया कि उसके पति के दोनों रिश्तेदार उसके दैनिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे थे और तलाक की याचिका के बाद FIR का समय इसे जवाबी हमला नहीं बनाता। फिर भी यह दर्शाता है कि पत्नी अपनी शादी को बचाने की कोशिश में धैर्यवान रही।
इन दलीलों की पृष्ठभूमि में एकल जज ने कहा कि FIR और उसमें लगाए गए आरोपों के अनुसार यह स्पष्ट हो जाता है कि आवेदक नंबर 3 और 5, जो सगी बहनें हैं, एक-दूसरे के परिवार के पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं और प्रथम दृष्टया अपनी बहुओं के साथ क्रूरता से पेश आ रही हैं और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप स्पष्ट और विशिष्ट हैं।
जहां तक आवेदकों के वकील द्वारा प्रस्तुत इस दलील का सवाल है कि हिंदू विवाह अधिनियम (Act) की धारा 13 के तहत आवेदन पेश किए जाने के बाद संबंधित FIR दर्ज की गई अदालत ने कहा कि यदि पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है तो यह उसकी कमजोरी नहीं कहा जा सकता है बल्कि यह विवाह के प्रति उसकी ईमानदारी को दर्शाता है।
यह मानते हुए कि FIR में लगाए गए आरोप आवेदकों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं, अदालत ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया। इस प्रकार याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल - डिकी राम तिवारी और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य