चुनाव याचिकाओं में पांच साल तब लगते हैं, जब सत्तारूढ़ दल इसमें शामिल हो: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-09-29 09:30 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तब कड़ी मौखिक फटकार लगाई, जब राज्य के एक मंत्री से संबंधित चुनाव याचिका की जानकारी निर्वाचन आयोग (ECI) को भेजने में हो रही देरी को सही ठहराने के लिए सरकारी वकील ने दलील दी कि चुनाव याचिकाओं का निपटारा होने में आमतौर पर पांच साल लग जाते हैं।

कोर्ट ने मौखिक रूप से तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव याचिकाओं में पांच साल तब लगते हैं, जब सत्तारूढ़ दल शामिल हो और जब ऐसा न हो तो वे केवल पांच महीने में निपटा दी जाती हैं।

पूरा मामला

राजकुमार सिंह नामक याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि राज्य सरकार के मंत्री और बीजेपी विधायक गोविंद सिंह राजपूत ने 2023 के चुनाव नामांकन में अपनी छह संपत्तियों की जानकारी छिपाई, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125ए का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने इस संबंध में निर्वाचन आयोग (ECI) में शिकायत दर्ज कराई। ECI ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए इसे मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) को भेजा, जिन्होंने आगे की जांच के लिए स्थानीय SDO और कलेक्टर को नियुक्त किया।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि मंत्री के पद पर होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं की गई। उनका दावा है कि SDO ने ECI की सिफारिशों का पालन करने से इनकार किया और जवाब दिया कि चूंकि चुनाव प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है, इसलिए अधिकारियों को दी गई शक्ति अब कम हो गई।

हाईकोर्ट में दलीलें और फटकार

गुरुवार (25 सितंबर) को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने ECI के आदेशों के पालन और आवश्यक जानकारी प्रदान करने के संबंध में राज्य सरकार के वकील से स्टेटस रिपोर्ट मांगी।

राज्य के वकील ने दलील दी कि सारी जानकारी आंतरिक रूप से ECI को भेज दी गई। अब ECI को इस पर निर्णय लेना है। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया कि ECI क्या फैसला लेगा, यह देखते हुए कि आयोग बार-बार राज्य को रिमाइंडर भेज रहा है। वकील ने जवाब दिया कि जानकारी साझा न करने का उनका दृढ़ रुख था जिसे ECI शायद स्वीकार न करे।

सरकारी वकील ने देरी को सही ठहराते हुए कहा कि शिकायत मार्च में की गई और रिपोर्ट जुलाई में भेजी गई, यानी केवल पांच महीने हुए हैं। वकील ने तर्क दिया लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में यह प्रावधान है कि चुनाव याचिकाओं का निपटारा छह महीने में होना चाहिए। हालांकि, वे पांच साल में निपटाए जाते हैं।

इस पर चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की बेंच ने तीखी मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा,

"ऐसा रुख मत अपनाइए कि चुनाव याचिकाओं में पांच साल लगते हैं। हम जानते हैं कि उन्हें पाँच साल क्यों लगते हैं, क्योंकि सत्तारूढ़ दल शामिल होता है। अगर हारने वाला दल होता, जो सत्ता में नहीं है, तो फैसला पांच महीने में आ जाता।"

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यह मामला चुनावी याचिका नहीं है, बल्कि एक झूठे हलफनामे का है, जिस पर ECI जांच कर रहा है और इसमें राज्य सरकार सहयोग नहीं कर रही है।

इसके बाद राज्य के वकील ने कहा कि वह उप जिला निर्वाचन अधिकारी की हैसियत से पेश हो रहे हैं और यह राज्य बनाम निर्वाचन आयोग का मामला नहीं है बल्कि एक आंतरिक संचार है।

कोर्ट ने सभी पक्षकारों की दलीलों को रिकॉर्ड करते हुए दो सप्ताह के भीतर दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 9 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध किया।

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