लंबे समय तक रहा प्रेम संबंध लड़की को बलात्कार का मामला दर्ज करने का अधिकार नहीं देता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-23 09:33 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते के दौरान यौन क्रियाकलापों को विवाह के झूठे बहाने से होने वाले शारीरिक संबंधों के बराबर नहीं माना जा सकता, केवल इसलिए कि प्रेमी बाद में अलग हो गए।

जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने स्पष्ट किया कि युवा लड़के और लड़कियों के बीच शारीरिक संबंध के साथ-साथ ऐसे संबंध भी होते हैं, जो वर्षों बाद विवाह में परिणत नहीं हो पाते; यह अपने आप में यह कहने का आधार नहीं हो सकता कि अभियुक्त ने अभियोक्ता से विवाह करने का अपना वादा पूरा नहीं किया। ऐसे मामलों में अभियोक्ता द्वारा शारीरिक संबंधों के लिए दी गई सहमति को तथ्य की गलत धारणा से प्राप्त नहीं कहा जा सकता।

अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा,

“यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि युवावस्था में जब लड़का और लड़की एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं और वे भावनाओं में बहते हैं और मानते हैं कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं, तो आमतौर पर उन्हें लगता है कि उनका रिश्ता स्वाभाविक रूप से विवाह में परिणत होगा। हालांकि, कभी-कभी ऐसा नहीं होता है और लड़की खुद को धोखा और छला हुआ समझकर एफआईआर दर्ज नहीं करा पाती है और कहती है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है।”

ऊपर बताए गए तर्कों के आधार पर जबलपुर में बैठी पीठ ने याचिकाकर्ता/आरोपी के खिलाफ पुलिस स्टेशन महिला थाना, जिला कटनी में आईपीसी की धारा 376, 376(2)(एन), 506 और 366 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर और अंतिम आरोप पत्र खारिज कर दिया। अदालत ने इस असंभावना के बारे में भी टिप्पणी की कि अभियोक्ता अपने रिश्ते की 10 साल की अवधि के दौरान यह महसूस करने में विफल रही कि लगातार शारीरिक संबंधों के माध्यम से उसका शोषण किया जा रहा था।

अदालत ने कहा,

"यह स्पष्ट है कि 2010 में जब पहली बार घटना घटी तो अभियोक्ता को एफआईआर दर्ज करने का कारण मिला, क्योंकि उसके अनुसार, याचिकाकर्ता ने उसके विरोध के बावजूद शादी के बहाने शारीरिक संबंध बनाए और यह संबंध 2020 तक जारी रहा।"

अदालत ने टिप्पणी की कि अभियोक्ता द्वारा तब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई जब तक कि याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने से इनकार नहीं कर दिया।

अदालत ने कहा कि अभियोक्ता द्वारा लगाए गए आरोपों पर विचार करते हुए 10 साल पुराने रिश्ते के दौरान शारीरिक संबंधों को बलात्कार के रूप में मानना ​​मुश्किल है।

शिकायतकर्ता के अनुसार, वह और याचिकाकर्ता एक ही जाति के हैं और एक ही गाँव से आते हैं। वे एक-दूसरे को एक दशक से अधिक समय से जानते हैं जब वे स्कूली स्टूडेंट थे। जून 2010 से उनके बीच शारीरिक संबंधों से जुड़ा प्रेम संबंध था। 2020 तक याचिकाकर्ता और पीड़िता समय-समय पर कटनी में पूर्व के डॉक्टर के क्वार्टर में साथ समय बिताते थे। शिकायतकर्ता/अभियोक्ता ने कहा कि इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपने रिश्ते के अंत में उससे शादी करने से इनकार कर दिया।

न्यायालय ने महेश्वर तिग्गा बनाम झारखंड राज्य (2020) और मधुर बाघरेचा बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) जैसे कई केस कानूनों के अंशों को पुन: प्रस्तुत किया, जिससे यह माना जा सके कि तत्काल मामले में शादी के वादे के बारे में कोई 'तथ्य की गलत धारणा' नहीं थी।

न्यायालय ने दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य, (2013) 7 एससीसी 675 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के संबंध में स्पष्ट किया,

“सुप्रीम कोर्ट ने बहुत स्पष्ट रूप से देखा कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत होने चाहिए कि प्रासंगिक समय पर यानी शुरुआती चरण में ही आरोपी का पीड़िता से शादी करने का अपना वादा निभाने का कोई इरादा नहीं था। बेशक, ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं, जब कोई व्यक्ति जो सबसे अच्छे इरादे रखता हो, वह विभिन्न अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण पीड़िता से विवाह करने में असमर्थ हो।”

दीपक गुलाटी में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा,

“भविष्य की अनिश्चित तिथि के संबंध में किए गए वादे को पूरा करने में विफलता”, उन कारणों से जो उपलब्ध साक्ष्यों से पता नहीं लगाए जा सकते हैं, जरूरी नहीं कि तथ्य की गलत धारणा हो। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले अवलोकन को आगे बढ़ाते हुए कहा कि किसी तथ्य की तत्काल प्रासंगिकता होनी चाहिए तभी उसे 'तथ्य की गलत धारणा' माना जा सकता है।

आदेश पारित करने से पहले हाईकोर्ट ने दोनों पक्षकारों और उनके माता-पिता को यह देखने के लिए बुलाया कि क्या दोनों विवाह करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, पक्ष आम सहमति तक नहीं पहुंच पाए। इसके बाद न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वर्तमान मामला धारा 375 आईपीसी के दायरे में नहीं आता, क्योंकि यह पक्षों के बीच सहमति से बना संबंध था।

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