BNSS में पीड़ित की परिभाषा अतीत में व्यक्तियों को हुए नुकसान/चोट को कवर नहीं करती, बाद के मामलों में अभियुक्तों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने हाल ही में स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 2(Y) के तहत पीड़ित की परिभाषा अतीत में अभियुक्त के कहने पर किसी व्यक्ति द्वारा झेले गए नुकसान या चोट को कवर नहीं करती। इस प्रकार ऐसे व्यक्तियों को किसी अन्य पीड़ित द्वारा अभियुक्त के खिलाफ दायर किए गए बाद के मामलों में आपत्ति करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस मनिंदर एस. भट्टी की एकल जज पीठ ने कहा,
“BNSS की धारा 2(Y) में प्रदान की गई पीड़ित की परिभाषा अपने दायरे में उस नुकसान या चोट को कवर नहीं करती, जो किसी व्यक्ति द्वारा अतीत में अभियुक्त के कहने पर झेली गई हो, जिस पर बाद में किसी अन्य पीड़ित द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा हो। यदि आपत्तिकर्ता द्वारा प्रस्तावित व्याख्या को धारणा के लिए ध्यान में रखा जाता है तो यह मुकदमेबाजी के द्वार खोल देगा। सभी पिछले मामलों में पीड़ित स्वतः ही आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ बाद के मामलों में आपत्ति उठाने के हकदार होंगे, जो आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किए गए। इस तथ्य के बावजूद कि ऐसे पीड़ित का बाद के कृत्य से कोई संबंध नहीं है। उसी आरोपी के बाद के कृत्य से उसे कोई नुकसान या चोट नहीं पहुंची। वर्तमान आवेदन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 339/दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 301(2) के तहत दायर किया गया।”
आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि आपत्तिकर्ता मुकदमेबाजी से अपरिचित होने के कारण कोई आपत्ति दर्ज करने का अधिकार नहीं रखता है और न ही वह CrPC की धारा 301(2)/BNSS की धारा 339 के तहत कोई आवेदन दे सकता है। यह भी कहा गया कि मामला शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया और प्रस्तावित आपत्तिकर्ता शिकायतकर्ता नहीं है। इसलिए आपत्तिकर्ता द्वारा वर्तमान आवेदन स्वीकार्य नहीं है। यह तर्क दिया गया कि आपत्तिकर्ता को ब्लैकमेल करने की आदत है।
वकील ने अदालत के ध्यान में आपत्तिकर्ता द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के खिलाफ अतीत में दर्ज किए गए 6 मामलों का विवरण भी लाया। यह प्रस्तुत किया गया कि आपत्तिकर्ता की कार्यप्रणाली निर्दोष व्यक्तियों पर दबाव डालना और फिर उनके साथ समझौता करना था।
इसके विपरीत आपत्तिकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि वर्तमान आवेदक आदतन अपराधी है और आपत्तिकर्ता वर्तमान आवेदक का शिकार है। यह तर्क दिया गया कि आवेदक का 2 अन्य लड़कियों के साथ संबंध था, जो अलग-अलग धर्मों की हैं। आवेदक के आचरण के कारण सांप्रदायिक सद्भाव खतरे में था। इसलिए आपत्तिकर्ता को CrPC की धारा 301(2) / BNSS की धारा 339 के तहत आवेदन करने का अधिकार है। इसके अलावा, BNSSकी धारा 2(Y) पर भरोसा करते हुए यह प्रस्तुत किया गया कि आपत्तिकर्ता एक इच्छुक व्यक्ति है। इस प्रकार आपत्ति बनाए रखने का हकदार है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आपत्तिकर्ता वह शिकायतकर्ता नहीं था, जिसकी शिकायत के आधार पर वर्तमान आवेदक के खिलाफ FIR दर्ज की गई। इसके अलावा, आपत्तिकर्ता ने पहले भी आवेदक के खिलाफ 2 मामले दर्ज किए और कई अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी FIR दर्ज की थी।
अमानुल्लाह और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य 2016 6 एससीसी 699 पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि जब तक आपत्तिकर्ता का कार्रवाई के कारण से वास्तविक संबंध नहीं है, तब तक उसका कोई स्थान नहीं है। जाहिर है, वर्तमान मामले में आपत्तिकर्ता का कार्रवाई के कारण से कोई वास्तविक संबंध नहीं था।
न्यायालय ने कहा,
"आपत्तिकर्ता न केवल वर्तमान आवेदक पर मुकदमा चला रहा है बल्कि अन्य व्यक्तियों पर भी मुकदमा चला रहा है। आपत्तिकर्ता पीड़ित नहीं है, क्योंकि वर्तमान आवेदक के कृत्य और चूक के कारण वर्तमान मामले के संबंध में आपत्तिकर्ता को कोई नुकसान या चोट नहीं पहुंची है। केवल आपत्तिकर्ता ने अतीत में वर्तमान आवेदक के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। इससे आपत्तिकर्ता को आवेदक के खिलाफ दायर हर मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं मिल जाता।"
न्यायालय ने टिप्पणी की कि BNSS की धारा 2(y) के तहत प्रदान की गई 'पीड़ित' की परिभाषा में अतीत में किसी व्यक्ति द्वारा अभियुक्त के इशारे पर उठाई गई हानि या चोट शामिल नहीं है, जिस पर बाद में किसी अन्य पीड़ित द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा है। यदि धारा 2(Y) की आपत्तिकर्ता की व्याख्या पर विचार किया जाता है तो यह मुकदमेबाजी के द्वार खोल देगा, क्योंकि पीड़ित स्वतः ही अभियुक्त के खिलाफ किसी भी नए मामले में आपत्ति उठाने के हकदार होंगे।
इस प्रकार न्यायालय ने वर्तमान आवेदन खारिज कर दिया।
केस टाइटल: इस्माइल शाह बनाम मध्य प्रदेश राज्य एमसीआरसी नंबर 46833/2024