पति ने झूठे व्यभिचार के आरोप लगाने में पत्नी की "क्रूरता" के कारण तलाक मांगा: एमपी हाईकोर्ट ने कथित प्रेमी को 'आवश्यक पक्ष' नहीं माना

Update: 2024-10-10 04:47 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने महिला की याचिका खारिज करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें उसने अपने पति द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही में अपने कथित प्रेमी को पक्षकार बनाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि कथित प्रेमी आवश्यक पक्ष नहीं है।

पति ने हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत क्रूरता के आधार पर अपनी पत्नी से तलाक मांगा; इसके बाद पत्नी ने मामले में अपने कथित प्रेमी को पक्षकार बनाने की मांग करते हुए याचिका दायर की, जिसे फैमिली कोर्ट ने 17 मार्च, 2021 के अपने आदेश में खारिज कर दिया।

जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"यदि पत्नी पति के खिलाफ लगाए गए व्यभिचार के आरोप को साबित करने में विफल रही और अंततः न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पत्नी ने बिना किसी सबूत या आधार के पति और उसके परिवार के सदस्यों को बदनाम किया है तो न्यायालय के अनुसार पत्नी का उक्त आचरण क्रूरता के दायरे में आने पर तलाक का आदेश दिया जा सकता है।"

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट के आदेश में "ऐसी कोई "भौतिक अवैधता या अनियमितता" नहीं है, जिसके लिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।

मामले की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(ए)(सी) के तहत फैमिली कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें याचिकाकर्ता पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आधार पर तलाक का आदेश मांगा गया। उसने इस आधार पर क्रूरता का दावा किया कि याचिकाकर्ता पत्नी ने आरोप लगाया कि वह किसी अन्य महिला के साथ "अवैध संबंध" में था।

हालांकि, प्रतिवादी पति ने दावा किया कि यह आरोप बिल्कुल झूठा और गलत है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी ने पति के दोस्तों और रिश्तेदारों को भी इस बारे में बताया, जिससे पति और उसके परिवार के सदस्यों की बदनामी हुई।

फैमिली कोर्ट के समक्ष पक्षकारों ने अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए और मामला अंतिम निर्णय पारित करने के चरण में था। इस बीच पत्नी ने पति के कथित प्रेमी को मुकदमे में पक्षकार बनाने के लिए सीपीसी की धारा 151 के साथ आदेश 1 नियम 10(2) के तहत आवेदन दायर किया।

आवेदन में पत्नी ने कहा कि महिला आवश्यक पक्ष है और उसे मामले में पक्षकार बनाए बिना पक्षों के बीच विवाद का उचित निर्णय नहीं किया जा सकता।

इस बीच पति ने जवाब दिया कि महिला को पक्षकार बनाए बिना भी मुकदमे का फैसला किया जा सकता है। आगे जवाब दिया गया कि केवल झूठे आरोपों के आधार पर महिला को मुकदमे में पक्षकार बनाना उचित नहीं है।

फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता पत्नी की अर्जी पर विचार करने के बाद उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पति के अन्य महिलाओं के साथ अवैध संबंध के संबंध में आरोप तो लगाया गया, लेकिन उन्हें पक्षकार बनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे न तो जरूरी हैं और न ही औपचारिक पक्षकार हैं। इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता पत्नी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता पत्नी के वकील ने राजेश देवी बनाम जय प्रकाश (2019) में पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा:

"वर्तमान मामले में अपीलकर्ता द्वारा व्यभिचार के कथित कृत्य पर प्रतिवादी को डिक्री प्रदान की गई है, बिना उस व्यभिचारी को पक्षकार बनाए, जिसका नाम याचिका के पैरा संख्या 9 में विशेष रूप से लिया गया। हिंदू विवाह (पंजाब) नियम, 1956 के नियम 6 में प्रावधान है कि यदि व्यभिचार के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर की जाती है, तो व्यभिचारी का विवरण यथाशीघ्र दिया जाना चाहिए। नियमों के नियम 10 में प्रावधान है कि याचिकाकर्ता पति या पत्नी को व्यभिचारी को सह-प्रतिवादी के रूप में शामिल करना होगा, लेकिन इसमें दिए गए तीन अपवादों को छोड़कर... यह स्पष्ट है कि व्यभिचार का आरोप लगाने वाले पति या पत्नी को कथित व्यभिचारी को एक पक्ष के रूप में शामिल करना होगा। उक्त व्यभिचारी के संवाददाता के रूप में अनुपस्थित होने पर व्यभिचार की दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

इस बीच पति की ओर से पेश हुए वकील ने शिवी बंसल बनाम गौरव बंसल (2024) में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया,

"हमारे विचार में भले ही इस मामले में फैमिली कोर्ट जज द्वारा निकाला गया निष्कर्ष सही है, यानी तलाक की याचिका को आंशिक रूप से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन तलाक की याचिका में तीसरे पक्ष को शामिल करना न तो उचित है और न ही आवश्यक है। आवश्यक पक्ष वह होता है, जिसकी अनुपस्थिति में कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती, जबकि उचित पक्ष किसी दिए गए सूची में शामिल मुद्दों के पूर्ण और अंतिम निर्णय को सक्षम बनाता है। व्यभिचार के सबूत को इस बात से नहीं जोड़ा जाना चाहिए कि तलाक की कार्रवाई में किसे पक्षकार बनाया जाना चाहिए। निष्कर्ष याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए निर्णयों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उन सभी निर्णयों में व्यभिचार के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी गई।

हाईकोर्ट ने कहा कि राजेश देवी में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई समानता वर्तमान मामले पर लागू नहीं होती, क्योंकि व्यभिचार के आधार पर तलाक की डिक्री नहीं मांगी जा रही थी। हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी पति द्वारा "क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा जा रहा था, क्योंकि पत्नी ने पति के खिलाफ व्यभिचार का झूठा आरोप लगाया था।"

इस प्रकार, वर्तमान मामले में यदि पत्नी अपने आरोपों को साबित करने में विफल रहती है तो न्यायालय द्वारा पति के पक्ष में तलाक की डिक्री इस तथ्य पर विचार करते हुए दी जा सकती है कि पति के खिलाफ बिना किसी आधार के लगाए गए व्यभिचार के आरोप की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं या नहीं। क्रूरता हो या न हो... अगर यह ऐसा मामला होता, जिसमें पत्नी द्वारा व्यभिचार के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी जा रही होती और पति पर यह आरोप लगाया जाता कि वह व्यभिचारी है तो उस स्थिति में पति के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए दूसरे व्यक्ति को भी पक्षकार बनाया जाना चाहिए था। लेकिन, यहां स्थिति अलग है। ऐसे में अदालत को यह देखना होगा कि पत्नी ने आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री एकत्र की है या नहीं। अदालत के समक्ष पेश की है या नहीं।"

हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी के अनुरोध पर कथित प्रेमी को कार्यवाही में पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं।

पत्नी की दलील को बिना किसी योग्यता के पाते हुए हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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