
जब कोई अन्य व्यक्ति किसी विनिमय पत्र को प्रतिगृहीत करता है, जबकि उसे अप्रतिग्रहण के कारण-
(1) अनादर के लिए टिप्पण किया गया है, या
(2) अ-प्रतिग्रहण के लिए प्रसाध्य किया गया है।
(3) बेहतर प्रतिभूति के लिए टिप्पण और प्रसाक्ष्य किया गया है।
ऐसे व्यक्ति को एक आदरणार्थं प्रतिगृहीता कहते हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति आदरणार्थ प्रतिगृहीता होता है जो विनिमय पत्र के अनादर की टिप्पण की गई है, या प्रसाध्य धारा 99 एवं 100 के अधीन की गयी है या इसे बेहतर प्रतिभूति के लिए धारा 100 के अधीन टिप्पण एवं प्रसाध्य करा दिया गया है, जो इसे प्रतिगृहीत करता है आदरणार्थ प्रतिगृहीता होता है। ऐसा प्रतिग्रहण विनिमय पत्र के किसी भी पक्षकार के वास्ते धारक की सहमति से हो सकता है।
ऐसा प्रतिगृहता विनिमय पत्र को लेखीवाल के या किसी पृष्ठांक के आदरणार्थ प्रतिगृहीत कर सकेगा। यदि यह लेखीवाल के आदरणार्थ प्रतिग्रहण करता है तो वह विनिमय पत्र के ऊपरवाल का स्थान ग्रहण करता है एवं जहाँ किसी पृष्टांक के आदरणार्थ की दशा में तत्पश्चात् विनिमय पत्र का लेखीवाल का स्थान ग्रहण करता है।
पाने वाला- धारा 7 में पाने वाला को परिभाषित किया गया है, वह व्यक्ति जिसे या जिसके आदेश पर धन संदय किया जाना लिखत द्वारा निर्दिष्ट हो अत: पाने वाला होने के लिए
वह व्यक्ति लिखत में निर्दिष्ट है, जिसे धन संदन किया जाना है, या
यह व्यक्ति जिसके आदेश पर धन संदत किया जाना है। इस प्रकार एक व्यक्ति जो लेखीवाल द्वारा लिखत में पाने वाला नामित नहीं किया गया है पृष्ठांकृत द्वारा धारक बन जाता है और उसे पाने वाला नहीं कहा जा सकता यद्यपि कि यह लिखत के अधीन धन संदाय पाने का हकदार होता है।
धाराएं 9, 15 एवं 16 के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि पद "पाने वाला" को सीमित रूप में प्रयुक्त किया गया है, अर्थात् यह व्यक्ति जिसे लेखीवाल ने लिखत के अधीन संदाय पाने अथवा जिसके आदेश पर धन संदत किया जाना है, नामित है। यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि लिखत के पाने वाला को धारक कहा जा सकता है, परन्तु धारक को पाने वाला नहीं कहा जा सकता है।
उदाहरण के लिए एक बैंक के लिए लिखा गया है: -
'ग' को भुगतान करे
'ग' के आदेशानुसार भुगतान करें
उक्त दोनों उदाहरणों में 'ग' पाने वाला है। परन्तु जहाँ इस बैंक को 'ग', 'घ' के पक्ष में पृष्ठांकित कर देता है, वहाँ यद्यपि कि ऐसे पृष्ठांकन से 'घ' चेक (लिखत) का धारक बन जाता है, परन्तु पाने वाला नहीं बन सकता है। पाने वाला एवं धारक का यह अन्तर अधिनियम की धारा 138 के लिए सारवान होता है।
वाहक को देय लिखत- वाहक को देय लिखत जिसमें पाने वाला नामित नहीं है, वहाँ लिखत केवल धारक होगा, पाने वाला नहीं।
उदाहरण के लिए एक लिखत लिखा गया है:
'ग' या वाहक को संदाय करे।
वाहक को संदाय करे।
उदाहरण में 'ग' पाने वाला है, जबकि (ii) उदाहरण में कोई पाने वाला नहीं है। वह व्यक्ति जिसके कब्जे में लिखत है, लिखत का धारक होता है।
संयुक्तत: या वैकल्पिक पाने वाला— धारा 13 (2) में यह उपबन्धित है कि एक परक्राम्य लिखत दो या अधिक पाने वाले को संयुक्ततः देय रचित की जा सकेगी या वह अनुकल्पतः दो पाने वालों में से एक या कई पाने वालों में से एक या कुछ को देय रचित की जा सकेगी।
अनुकल्पतः पाने वाला का उदाहरण- (i) 'ग' या 'घ' को संदाय करे। संयुक्त पाने वालों का उदाहरण-'ग', 'घ' एवं 'ढ' को संदाय करें।
'ग', 'घ' एवं 'ड' में से किसी एक को संदाय करे।
कल्पित या बिना अस्तित्व का पाने वाला विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 (इंग्लिश) की धारा 7 के अनुसार जहाँ विनिमय पत्र वाहक को देय नहीं है वहाँ पाने वाला आवश्यक रूप से नामित होना चाहिए या अन्यथा रूप में युक्तियुक्त निश्चितता के साथ उसमें इंगित होना चाहिए। जहाँ लिखत का पाने वाला कल्पित व्यक्ति है या बिना अस्तित्व के है तो लिखत को वाहक को देय मानना चाहिए।
इस प्रकार का कोई प्रावधान भारतीय परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1872 में नहीं है। कल्पित (काल्पनिक) पाने वाला पर उल्लेखनीय वाद इलूटन बनाम एटेनवरों का वाद है।
इस प्रकरण में नियोजक के क्लर्क ने उसे चेकों पर हस्ताक्षर करने के लिए उकसाया। तत्पश्चात् उसने पाने वाला के हस्ताक्षर की कूटरचना कर कुछ चेकों को मूल्य वास्ते एटेनबरो को अन्तरित किया और उसने उसे धन पा लिया। जब कपट का पता चला क्लट्टन ने एटेनबरो पर जो वह धन प्राप्त किया था उसके लिए वाद लाया।
अब एटेनबरो एक कीमत के साथ सद्भावी अन्तरिती था। ब्रेट (पाने वाला) के कूटरचित पृष्ठांकन से आदेशित देय चेक के अच्छा स्वत्व के दावे को व्यर्थ बना दिया और उसे क्लटट्न को धन वापसी के लिए बाध्य होना था। परन्तु कोर्ट ने यह धारित किया कि पाने वाला कल्पित व्यक्ति (बिना अस्तित्व) के होने के नाते चेक वाहक को देय थे चूँकि वाहक को देय चेक का पृष्ठांकन चाहे सही हो या कूटरचित हो, स्वीकार नहीं किया जाएगा, एटेनबरो का चेक का स्वत्व स्थापित है, चूँकि वह वाहक को देय चेक का एक कीमत के साथ सद्भावी अन्तरिती था।