दिल्ली में 'Services' पर असली अधिकार किसका है: केंद्र सरकार या चुनी हुई सरकार?
सुप्रीम कोर्ट ने Government of NCT of Delhi v. Union of India (2023) के फैसले में एक अहम संवैधानिक (Constitutional) सवाल का हल किया—क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (National Capital Territory of Delhi - NCTD) में 'services' (सेवाओं) पर नियंत्रण चुनी हुई दिल्ली सरकार का होगा या केंद्र सरकार का?
अनुच्छेद 239AA की समझ (Understanding Article 239AA: The Constitutional Foundation)
अनुच्छेद 239AA को 1991 में संविधान के 69वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। यह दिल्ली को अन्य केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) से अलग एक विशेष शासन प्रणाली (Governance Structure) देता है। इसमें दिल्ली के लिए एक विधान सभा (Legislative Assembly) और एक मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) का प्रावधान है, जो उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) को सलाह देने का कार्य करती है।
यह अनुच्छेद साफ कहता है कि दिल्ली विधानसभा को राज्य सूची (State List) और समवर्ती सूची (Concurrent List) के उन सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है जो सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order), पुलिस (Police) और भूमि (Land) से संबंधित नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि केवल तीन विषयों को बाहर रखा गया है, तो इसका मतलब है कि 'services' (जो Entry 41 में आती हैं) पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने और कार्यपालिका (Executive) के अधिकार होने चाहिए।
दिल्ली की विशेष स्थिति (Sui Generis Status of NCT of Delhi)
कोर्ट ने दोहराया कि दिल्ली एक sui generis (विशिष्ट/अनोखी) संवैधानिक स्थिति (Constitutional Status) रखती है। दिल्ली की विधानसभा संविधान में अनिवार्य रूप से तय की गई है, न कि संसद द्वारा बनाए गए कानून से। यह दिल्ली को पुडुचेरी जैसे अन्य केंद्र शासित प्रदेशों से अलग बनाता है।
2018 के संविधान पीठ (Constitution Bench) के फैसले और NDMC v. State of Punjab (1997) जैसे पुराने फैसलों में भी इसे स्वीकार किया गया था। कोर्ट ने फिर से माना कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह नहीं देखा जा सकता।
विधायी और कार्यपालिका शक्तियाँ (Legislative and Executive Powers: Coextensiveness Principle)
संविधान का एक अहम सिद्धांत है कि जहां विधायिका (Legislature) को कानून बनाने का अधिकार है, वहीं कार्यपालिका (Executive) को उस पर अमल करने का अधिकार होता है। इसका मतलब है कि अगर दिल्ली विधानसभा को किसी विषय पर कानून बनाने का अधिकार है, तो उस विषय पर कार्यपालिका शक्ति भी दिल्ली सरकार के पास होगी।
कोर्ट ने कहा कि यदि 'services' दिल्ली सरकार के नियंत्रण से बाहर कर दी जाती हैं, तो लोकतांत्रिक जवाबदेही (Democratic Accountability) की श्रृंखला टूट जाएगी। सरकारी अफसरों को तब चुने हुए मंत्रियों के बजाय केंद्र सरकार को जवाब देना होगा, जिससे लोगों की नुमाइंदगी का महत्व खत्म हो जाएगा।
लोकतांत्रिक जवाबदेही और जवाबदेही की श्रृंखला (Democratic Accountability and Triple Chain of Responsibility)
कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली (Democratic System) में एक ट्रिपल चेन ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी (Triple Chain of Responsibility) होती है—अफसर मंत्री को जवाब देते हैं, मंत्री विधानसभा को, और विधानसभा जनता को।
अगर अफसर केवल उपराज्यपाल या केंद्र सरकार को जवाब देंगे, तो यह श्रृंखला टूट जाएगी और चुनी हुई सरकार एक प्रतीक मात्र बनकर रह जाएगी। इसीलिए अफसरों को रिपोर्टिंग का अधिकार राज्य सरकार के पास होना चाहिए ताकि लोक-लाभ के फैसलों पर असर पड़े।
स्थानीय स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों में संतुलन (Balancing Local Autonomy with National Interest)
केंद्र सरकार का तर्क था कि चूंकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है, इसलिए 'services' पर उसका नियंत्रण जरूरी है ताकि राष्ट्रीय हितों (National Interests) की रक्षा हो सके।
कोर्ट ने यह तर्क अस्वीकार किया और कहा कि अनुच्छेद 239AA पहले से ही ऐसे विषयों (जैसे पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और भूमि) को बाहर करके संतुलन बना चुका है। इसके अलावा संसद को NCTD के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए 'services' को अलग करना अनुच्छेद 239AA की भावना के खिलाफ है।
"Insofar as applicable to Union Territories" वाक्यांश की व्याख्या (Interpretation of the Phrase “Insofar as Applicable to Union Territories”)
यह वाक्यांश अनुच्छेद 239AA(3)(a) में आता है, जिसे केंद्र सरकार ने restrictive (सीमित करने वाला) बताने की कोशिश की।
कोर्ट ने 2018 के फैसले के आधार पर कहा कि यह वाक्यांश inclusive (समावेशी) है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 'State' शब्द के कारण कोई विषय NCTD की विधानसभा की पहुँच से बाहर न रह जाए। इसलिए, यह वाक्यांश Delhi Legislative Assembly की शक्ति को बढ़ाता है, घटाता नहीं।
अन्य देशों की तुलना में दिल्ली का मॉडल (Comparative Constitutional Perspective)
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अन्य देशों में, भले ही वहाँ का शासन Centralized हो, उनकी राष्ट्रीय राजधानियों में 'services' पर नियंत्रण स्थानीय चुनी हुई सरकारों को दिया गया है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों को दिखाता है, जहां प्रशासन जनता के पास होता है।
महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला (Relevance of Previous Judgments)
इस फैसले ने पुराने प्रमुख फैसलों को मजबूत किया जैसे—Union of India v. Prem Kumar Jain (1976), NDMC v. State of Punjab (1997), और Government of NCT of Delhi v. Union of India (2018)।
इन सभी फैसलों में यह स्थापित किया गया-
(1) Union Territories अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं,
(2) Executive Power को Legislative Power के साथ जोड़ा जाना चाहिए,
(3) दिल्ली सरकार को अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त अधिकार मिलने चाहिए।
2023 का निर्णय इन सिद्धांतों को और मजबूत करता है और यह कहता है कि 'services' (Police, Public Order और Land को छोड़कर) दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
Government of NCT of Delhi v. Union of India (2023) का फैसला भारतीय संघवाद (Federalism) के इतिहास में एक मील का पत्थर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि 'services' पर नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास होगा।
इस फैसले से यह सुनिश्चित हुआ कि दिल्ली की सरकार सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं बल्कि वास्तविक शक्ति वाली संवैधानिक संस्था (Constitutional Institution) है। यह फैसला भारतीय संविधान की संघीय संरचना में लचीलापन, जवाबदेही और लोकतंत्र के मूल्यों को पुनः स्थापित करता है।
इस निर्णय से यह संदेश भी गया कि संविधान की व्याख्या इस तरह होनी चाहिए जो लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation) की भावना को बढ़ावा दे।