NI Act में कौन एजेंट नियुक्त कर सकता है?

Update: 2025-03-24 06:41 GMT
NI Act में कौन एजेंट नियुक्त कर सकता है?

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 183 उपबन्धित करती है कि कोई भी व्यक्ति जो प्राप्तवय एवं स्वस्थवित हो अभिकर्ता नियोजित कर सकेगा। यह उपबन्ध यह स्पष्ट करता है कि एक अवयस्क प्रधान नहीं हो सकता है, अतः अवयस्क अभिकर्ता नियोजित नहीं कर सकेगा।

अभिकर्ता कौन हो सकेगा- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 184 के अनुसार- "जहाँ तक मालिक और पर व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध है कोई भी व्यक्ति अभिकर्ता हो सकेगा, किन्तु कोई भी व्यक्ति, जो प्राप्तवय और स्वस्थचित्त न हो, अभिकर्ता ऐसे न हो सकेगा कि वह अपने प्रधान के प्रति तन्निमित्त एतस्मिन अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार उत्तरदायी हो।

यह धारा इसे स्पष्ट करती है कि एक अवयस्क एवं विकृतचित का व्यक्ति भी अभिकर्ता हो सकेगा, परन्तु ऐसा व्यक्ति अपने कार्यों के लिए मालिक के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। अतः यह मालिक के ऊपर निर्भर करेगा कि वह एक अवयस्क को अभिकर्ता नियुक्त करे या नहीं। यदि वह एक अवयस्क को नियुक्त करता है वहाँ ऐसा अभिकर्ता अपने कार्यों के लिए मालिक के प्रति आबद्ध नहीं होगा।

भागीदार भागीदारों का आपसी सम्बन्ध अभिकरण के सिद्धान्त से शासित होता है। भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 18 के अनुसार फर्म के कारोबार के लिए प्रत्येक भागीदार फर्म का अभिकर्ता होता है। अर्थात् प्रत्येक भागीदार दूसरे भागीदार का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रत्येक भागीदार दूसरे के लिए फर्म के कारोबार से सम्बन्धित सभी कार्यों के लिए असीमित अभिकर्ता होता है। वास्तविक रूप में एक भागीदार एक ही साथ प्रधान एवं अभिकर्ता दोनों होता है। एक भागीदार जब अपने कार्यों से दूसरे को बाध्य करता है तो यह अभिकर्ता होता है, परन्तु जब दूसरे भागीदारों के कार्यों से बाध्य होता है तो वह प्रधान होता है।

अब एक अवयस्क के प्रति अभिकरण लिखत के सम्बन्ध में स्थिति स्पष्ट है कि एक अवयस्क मालिक नहीं हो सकेगा, परन्तु यह अभिकर्ता हो सकेगा, परन्तु ऐसा अवयस्क अभिकर्ता अभिकरण के सम्बन्ध में अपने कार्यों के प्रति कोई दायित्व उपगत नहीं करेगा, यद्यपि वह अभिकर्ता के रूप में प्रतिनिधित्व करेगा।

अभिव्यक्त अभिकरण– धारा 27 का परन्तुक इसे स्पष्ट करता है कि परक्राम्य लिखत के प्रयोजनों के लिए अभिकरण अर्थात् इसे रचने, लिखने प्रतिग्रहीत करने, पृष्ठांकित एवं परक्रामित करने का प्राधिकार अभिव्यक्त रूप में होना चाहिए। कारोबार करने एवं ऋणों को प्राप्त करने एवं उन्मुक्त करने का अभिकर्ता का सामान्य प्राधिकार विनिमय पत्र या वचन पत्र को प्रतिग्रहीत करने, लिखने या पृष्ठांकित करने को सम्मिलित नहीं करता है।

इसका अर्थ यह है कि लिखतों के सम्बन्ध में उक्त कार्यों के लिये अभिकर्ता को अभिव्यक्त प्राधिकार दिया जाना चाहिए यहाँ तक विनिमय पत्र को रचित करने का प्राधिकार उसे पृष्ठांकित करने या परिदत्त करने को सम्मिलित नहीं करेगा। इस सम्बन्ध में प्रत्येक कार्यों अर्थात् रचित, लिखने, प्रतिग्रहीत, पृष्ठांकित करने के प्राधिकार को पृथक्तः स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए। यह विवक्षित प्राधिकार नहीं होगा। अभिकरण के कारोबार करने में अभिकर्ता को अभिकरण के तथ्य को स्पष्ट करना आवश्यक होगा। एक अप्रकट मालिक लिखत के अधीन कोई दायित्व उपगत नहीं करता है।

हिन्दू संयुक्त परिवार संयुक्त हिन्दू परिवार का कर्ता या प्रबन्धक परिवार के सभी संव्यवहारों में बाहरी व्यक्तियों से प्रतिनिधित्व करता है एवं परिवार की ओर से ऋण लेने का प्राधिकार रखता है एवं इस प्रयोजन के लिए यह परिवार की साख को गिरवी रखने का विवक्षित प्राधिकार रखता है।

इस प्रकार एक वचन पत्र या विनिमय पत्र किसी परिवार के कर्ता या प्रबन्धक द्वारा हस्ताक्षरित होने पर परिवार के प्रयोजन से या परिवार के कारोबार के लिए है परिवार के सभी सदस्यों पर बाध्यकारी होता है और सभी के विरुद्ध प्रवर्तनीय होगा।

इस प्रकार संयुक्त हिन्दू परिवार का प्रबन्धक का अन्य सहदायियों के बीच अभिकर्ता का सम्बन्ध नहीं होता है वह फर्म के समान अभिकर्ता नहीं होता है। अधिनियम की धारा 26 27 एवं 28 के प्रावधान संयुक्त हिन्दू परिवार की दशा में अनुयोज्य नहीं होते है धारा 27 इसे स्पष्ट करती है कि प्रत्येक व्यक्ति जो संविदा करने के लिए समर्थ होता है वह प्रधान एवं अभिकर्ता होने को समर्थ होता है। पुनः धारा 26 धारा 27 के प्रावधानों के अधीन है। यहाँ पर पुनः यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या एक अवयस्क प्रधान या अभिकर्ता हो सकता है। इसे भारतीय संविदा अधिनियम के अभिकरण सम्बन्धी प्रावधानों से स्पष्ट किया जा सकता है।

Tags:    

Similar News