क्या मेस्ने प्रॉफिट्स से जुड़े मुकदमों में कोर्ट फीस अलग से देनी पड़ती है? – धारा 42 राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालय शुल्क (Court Fee) से जुड़े हर पहलू को विस्तार से नियंत्रित करता है। जब संपत्ति के कब्जे से जुड़े विवाद होते हैं, तो केवल कब्जा (Possession) ही नहीं बल्कि उस कब्जे के दौरान उत्पन्न होने वाले आय या लाभ (Mesne Profits) के लिए भी मुकदमे दायर किए जाते हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट फीस की गणना कैसे होगी, इसका विस्तृत प्रावधान धारा 42 (Section 42) में दिया गया है।
धारा 42 विशेष रूप से उन वादों से संबंधित है जहाँ वादी (Plaintiff) न केवल अचल संपत्ति (Immovable Property) का कब्जा चाहता है बल्कि उस संपत्ति के अनधिकृत कब्जे (Unauthorized Possession) के दौरान हुए मुनाफे (Mesne Profits) की वसूली भी करना चाहता है। इस लेख में हम धारा 42 को सरल हिंदी में विस्तार से समझेंगे और अन्य संबंधित धाराओं जैसे धारा 20, धारा 21 और धारा 35 का भी संक्षिप्त संदर्भ लेंगे।
धारा 42(1): मेस्ने प्रॉफिट्स के लिए दायर मुकदमे में शुल्क निर्धारण (Court Fee in Suit for Mesne Profits)
धारा 42(1) में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति केवल मेस्ने प्रॉफिट्स (Mesne Profits) के लिए या अचल संपत्ति के कब्जे और मेस्ने प्रॉफिट्स दोनों के लिए मुकदमा करता है, तो मेस्ने प्रॉफिट्स के हिस्से के लिए कोर्ट फीस उस राशि पर आधारित होगी जिसे वादी ने दावा किया है।
इसका अर्थ यह है कि वादी अपने वादपत्र (Plaint) में जितनी राशि का दावा करेगा, कोर्ट फीस उसी के अनुसार ली जाएगी। यदि बाद में जांच या सुनवाई के दौरान यह सिद्ध होता है कि वादी को वास्तव में उससे अधिक मेस्ने प्रॉफिट्स मिलने चाहिए, तो तब तक डिक्री (Decree) पारित नहीं होगी जब तक वादी अतिरिक्त कोर्ट फीस जमा नहीं करता।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए रमेश ने 50,000 रुपये मेस्ने प्रॉफिट्स के रूप में दावा किया, लेकिन अदालत में साबित हुआ कि उसे 70,000 रुपये मिलना चाहिए। ऐसे में रमेश को ₹20,000 पर अतिरिक्त कोर्ट फीस जमा करनी होगी, तब ही उसे पूरी राशि पर डिक्री मिलेगी।
धारा 42(2): अदालत द्वारा जांच आदेशित किए जाने की स्थिति (Where Court Orders Inquiry into Mesne Profits)
धारा 42(2) उन मामलों पर लागू होती है जहाँ अदालत खुद जांच का आदेश देती है कि संपत्ति से कितने मेस्ने प्रॉफिट्स वादी के लिए देय हैं। यह जांच वाद दायर करने से पहले की अवधि से भी संबंधित हो सकती है या मुकदमे के बाद की अवधि से भी।
अगर अदालत यह जांच करती है और बाद में यह सामने आता है कि वादी को ज्यादा राशि मिलनी चाहिए, तो अंतिम डिक्री (Final Decree) तब तक पारित नहीं की जाएगी जब तक कि वादी कोर्ट फीस में उस अतिरिक्त राशि के अनुसार शुल्क जमा न कर दे।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए एक संपत्ति के अनधिकृत कब्जे से ₹2 लाख मेस्ने प्रॉफिट्स बनने की बात साबित होती है, लेकिन वादी ने वाद में केवल ₹1.5 लाख का दावा किया था। अब वादी को ₹50,000 के अतिरिक्त हिस्से पर भी कोर्ट फीस भरनी होगी तभी अंतिम डिक्री पारित की जा सकती है।
धारा 42(3): डिक्री पारित होने के बाद की अवधि के मेस्ने प्रॉफिट्स पर शुल्क (Court Fee for Mesne Profits after Decree)
धारा 42(3) उन मामलों को संभालती है जहाँ अदालत या अंतिम डिक्री में आदेश दिया गया हो कि डिक्री पारित होने के बाद भी किसी निश्चित दर पर मेस्ने प्रॉफिट्स दिए जाएं। यानी, कब्जा डिक्री के बाद भी बना हुआ है और वादी उस अवधि का भी लाभ चाहता है।
ऐसे मामलों में, जब वादी उस आदेश का कार्यान्वयन (Execution) कराना चाहता है, तो उसे उस राशि पर भी Court Fee देनी होगी जो वह डिक्री के तहत मांग रहा है। जब तक वह शुल्क अदा नहीं करता, डिक्री का कार्यान्वयन नहीं किया जाएगा।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए कि डिक्री में कहा गया कि कब्जे के बाद ₹5,000 प्रतिमाह मेस्ने प्रॉफिट्स मिलेंगे और कब्जा डिक्री के 6 महीने बाद भी बना रहा। तो वादी को 6 x ₹5,000 = ₹30,000 के लिए Court Fee भरनी होगी तभी वह डिक्री का कार्यान्वयन करा सकेगा।
अन्य धाराओं का संक्षिप्त उल्लेख (Reference to Related Sections)
धारा 20 में यह सामान्य सिद्धांत दिया गया है कि मुकदमे के मूल्यांकन और न्यायालय शुल्क की गणना किस प्रकार होगी। धारा 21, जो पैसों के वादों में शुल्क निर्धारण बताती है, का उपयोग भी मेस्ने प्रॉफिट्स के मामलों में किया जाता है क्योंकि यहां भी एक तय राशि की मांग की जाती है।
साथ ही धारा 35, जो साझी संपत्ति (Joint Property) के बंटवारे के मामलों में शुल्क निर्धारण का प्रावधान करती है, यह समझने में मदद करती है कि जब अचल संपत्ति से आय प्राप्त होती है, तो उसे मुकदमे का हिस्सा मानकर शुल्क लिया जाता है।
इस प्रकार धारा 42 को अन्य धाराओं के साथ पढ़ना, इसके उद्देश्य और कार्यान्वयन को और अधिक स्पष्ट बनाता है।
मेस्ने प्रॉफिट्स का अर्थ और महत्व (Meaning and Importance of Mesne Profits)
मेस्ने प्रॉफिट्स का सामान्य अर्थ होता है उस संपत्ति से होने वाली आय या लाभ जो कब्जाधारी (Possessor) ने गलत तरीके से कब्जा बनाए रखते हुए अर्जित किया हो और जो कानूनी स्वामी (Lawful Owner) को मिलनी चाहिए थी।
यह राशि न केवल संपत्ति के वास्तविक किराए पर आधारित हो सकती है बल्कि उसकी संभावित उपज (Potential Income) या व्यावसायिक उपयोग से प्राप्त आय पर भी आधारित हो सकती है।
व्यावहारिक महत्त्व (Practical Importance)
मेस्ने प्रॉफिट्स से जुड़े मुकदमे आमतौर पर तब दायर किए जाते हैं जब:
• किसी व्यक्ति ने संपत्ति पर अनधिकृत कब्जा कर लिया हो,
• कब्जे के दौरान संपत्ति से आय प्राप्त की हो,
• और वैध स्वामी को उस आय से वंचित कर दिया गया हो।
ऐसे मामलों में सही और पारदर्शी तरीके से Court Fee का निर्धारण आवश्यक है ताकि न्यायालय के समक्ष वास्तविक विवाद का मूल्य ठीक से प्रस्तुत किया जा सके।
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 42 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है जो मेस्ने प्रॉफिट्स (Mesne Profits) से संबंधित मुकदमों में न्यायालय शुल्क के निर्धारण का स्पष्ट और न्यायसंगत ढांचा प्रस्तुत करती है।
चाहे वादी केवल मेस्ने प्रॉफिट्स मांग रहा हो, या कब्जा और मेस्ने प्रॉफिट्स दोनों, या फिर डिक्री के बाद भी लाभ प्राप्त कर रहा हो – हर स्थिति में, जो वास्तविक लाभ मांगा जा रहा है या सिद्ध किया गया है, उसी के अनुसार Court Fee तय होती है। जब तक उपयुक्त शुल्क जमा नहीं होता, अदालत न तो डिक्री पारित करती है और न ही उसका कार्यान्वयन होता है।
यह व्यवस्था न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी, अनुशासित और निष्पक्ष बनाती है, तथा सुनिश्चित करती है कि वादी और प्रतिवादी दोनों न्यायालय के सामने अपने दावे को उचित मूल्यांकन के साथ प्रस्तुत करें। इस प्रकार धारा 42 एक मजबूत आधारशिला है, जो संपत्ति विवादों से जुड़े मुकदमों में न्याय को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाती है।