डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को नुकसान होने या उसकी मौत हो जाने पर क्या है प्रावधान
इलाज आज के समय की मूल आवश्यकताओं में से एक है। विज्ञान के सहारे से बीमारों का इलाज किया जाता है। सरकार ने इलाज करने के लिए चिकित्सक रजिस्टर्ड किए हैं। यही रजिस्टर्ड चिकित्सक अपनी पद्धति से इलाज कर सकते हैं। कोई भी एलोपैथी का रजिस्टर्ड चिकित्सक एलोपैथी से इलाज कर सकता है। इसी तरह दूसरी अन्य पद्धतियां भी हैं जिनके चिकित्सक अपनी पद्धति अनुसार इलाज करते हैं।
ऑपरेशन जैसी पद्धति एलोपैथिक चिकित्सा द्वारा होती है। एलोपैथी का रजिस्टर्ड डॉक्टर ऑपरेशन करता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि डॉक्टर की लापरवाही से गलत ऑपरेशन कर दिया जाता है या फिर कुछ गलत दवाइयां दे दी जाती है जिससे मरीज को स्थाई रूप से नुकसान हो जाता है। कई दफा मरीजों की मौत भी हो जाती है।
हालांकि डॉक्टर द्वारा की गई लापरवाही को साबित करना मुश्किल होता है क्योंकि मरीज के पास ऐसे कम सबूत होते हैं जिससे वह डॉक्टर की लापरवाही को साबित कर सके। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति द्वारा सभी दवाइयों को अलग-अलग बीमारियों के लिए निर्धारित किया गया है जिस बीमारी में जिस दवाई की आवश्यकता होती है वह मरीज को दी जाती है।
लेकिन यदि कोई गलत दवाइयां मरीज को दी जा रही है तब इसे लापरवाही माना जाता है। अनेक मामलों में तो हम देखते हैं कि गर्भवती महिलाओं की प्रसव के दौरान भी मौत हो जाती है। यदि मौत प्राकृतिक रूप से हुई है जिसमें डॉक्टर की कोई गलती नहीं थी तब इसे डॉक्टर का सद्भावना पूर्वक कार्य माना जाता है।
अर्थात डॉक्टर का कोई आशय नहीं था कि मरीज को किसी प्रकार की कोई नुकसानी हो लेकिन डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से नहीं निभाता है। इस कारण मरीज की मौत हो जाती है या मरीज को किसी तरह की कोई गंभीर नुकसान ही हो जाती है। जिससे उसके शरीर में स्थाई अपंगता आ जाती है, तब कानून डॉक्टर के ऐसे काम को अपराध की श्रेणी में रखता है।
लापरवाही से नुकसान
अगर डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को किसी तरह का नुकसान होता है जिसमें उसकी मौत नहीं होती है लेकिन शरीर को बहुत नुकसान होता है, तब ऐसे नुकसान के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार माना जाता है। इस पर आपराधिक कानून भी है। आपराधिक कानून का अर्थ होता है ऐसा कानून जिसमें किसी व्यक्ति को दंडित किया जाता है। डॉक्टर की लापरवाही अपराध की श्रेणी में आती है, ऐसी लापरवाही को भारतीय दंड संहिता 1860 में उल्लेखित किया गया है।
धारा 337
भारतीय दंड संहिता की धारा 337 लापरवाही से होने वाली साधारण क्षति के संबंध में उल्लेख करती है। हालांकि इस धारा में डॉक्टर जैसे कोई शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है। लेकिन यह सभी तरह की लापरवाही के मामले में लागू होती है। किसी भी व्यक्ति की लापरवाही से अगर सामने वाले के शरीर को किसी भी तरह की साधारण नुकसानी होती है तभी यह धारा प्रयुक्त होती है।
इस धारा के अनुसार अगर डॉक्टर की लापरवाही से कोई छोटी मोटी नुकसानी होती है। जैसे ऑपरेशन में किसी तरह का कोई कॉम्प्लिकेशन आ जाना और ऐसा काम कॉम्प्लिकेशन डॉक्टर की लापरवाही के कारण आया है, गलत दवाइयों के कारण आया है। इस लापरवाही से अगर सामान्य नुकसान होता है तब यह धारा लागू होती है। इस धारा में 6 महीने तक के दंड का प्रावधान है।
धारा 338
भारतीय दंड संहिता की धारा 338 किसी आदमी के लापरवाही से किए गए काम की वजह से सामने वाले को गंभीर नुकसान होने पर लागू होती है। कभी-कभी लापरवाही इतनी बड़ी होती है कि इससे सामने वाले व्यक्ति को बहुत ज्यादा नुकसान हो जाता है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि नुकसान का मतलब शारीरिक नुकसान से है, जिसे कानून की भाषा में क्षति कहा जा सकता है। किसी भी लापरवाही से अगर किसी को गंभीर प्रकार की चोट पहुंचती है और स्थाई अपंगता जैसी स्थिति बन जाती है, तब यह धारा लागू होगी।
डॉक्टर के मामले में भी धारा लागू हो सकती है। अगर डॉक्टर अपने इलाज में किसी भी तरह की कोई लापरवाही बरतता है और उसकी ऐसी लापरवाही की वजह से मरीज को स्थाई रूप से कोई चोट पहुंच जाती है, वे स्थाई रूप से अपंग हो जाता है जिससे उसका जीवन जीना दूभर हो जाए तब डॉक्टर को इस धारा के अंतर्गत आरोपी बनाया जाता है। भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार 2 वर्ष तक का कारावास दोषसिद्ध होने पर दिया जा सकता है।
इस धारा का मूल अर्थ यह है कि किसी भी लापरवाही से गंभीर चोट पहुंचना। वाहन दुर्घटना के मामले में भी धारा लागू होती है। डॉक्टर की लापरवाही इतनी होगी कि केवल मरीज मृत्यु से बच गया और बाकी सब कुछ उसके साथ घट गया तब यह धारा लागू होती है।
सिविल उपचार
किसी भी व्यक्ति की लापरवाही से अगर सामने वाले को किसी प्रकार का कोई नुकसान होता है, तब शारीरिक नुकसान होने पर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसी के साथ जिस व्यक्ति को नुकसान हुआ है उसे इसकी क्षतिपूर्ति दिलाने का भी उल्लेख है। सिविल उपचार का अर्थ यह होता है कि किसी भी व्यक्ति को उस स्थिति में भेजना जिस स्थिति में वह पहले से था। अगर किसी की लापरवाही के कारण किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से नुकसान हुआ है और इसी के साथ उसको आर्थिक रूप से भी नुकसान हुआ है।
एक डॉक्टर की लापरवाही किसी भी मरीज की जिंदगी बर्बाद कर सकती है। उसकी लापरवाही के कारण कोई व्यक्ति स्थाई रूप से अपंग भी हो सकता है। ऐसी अपंगता की वजह से वह सारी उम्र किसी तरह का कोई काम नहीं कर पाता है जिससे उसके जीवन में आर्थिक संकट आ जाता है। अनेक मामले देखने को मिलते हैं जहां डॉक्टर की लापरवाही के कारण लोग स्थाई रूप से अपंग हो जाते हैं, वह कोई काम काज करने लायक भी नहीं रहते हैं तब उनका जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। कानून यहां पर ऐसे लोगों को राहत देता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
डॉक्टर की सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में रखा गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का अर्थ होता है उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना। अगर किसी सेवा देने वाले या उत्पाद बेचने वाले व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा काम किया गया है जिससे उपभोक्ता को किसी तरह का कोई नुकसान होता है तब मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत चलाया जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत बनाई गई कोर्ट जिसे कंजूमर फोरम कहा जाता है। यहां किसी तरह की कोई भी कोर्ट फीस नहीं लगती है और लोगों को बिल्कुल निशुल्क न्याय दिया जाता है। हालांकि यहां पर न्याय होने में थोड़ा समय लग जाता है क्योंकि मामलों की अधिकता है और न्यायालय कम है। किसी डॉक्टर की लापरवाही से होने वाले नुकसान की भरपाई कंजूमर फोरम द्वारा करवाई जाती है। मरीज कंज्यूमर फोरम में अपना केस रजिस्टर्ड कर सकते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत लगने वाले ऐसे मुकदमों में डॉक्टर को प्रतिवादी बनाया जाता है और मरीज को वादी बनाया जाता है। इस फोरम में मरीज फोरम से क्षतिपूर्ति की मांग करता है। कंज्यूमर फोरम मामला साबित हो जाने पर पीड़ित पक्ष को डॉक्टर से क्षतिपूर्ति दिलवा देता है। लेकिन यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहां पर मामला साबित होना चाहिए। अगर डॉक्टर की लापरवाही साबित हो जाती है तब मरीज को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है।