Constitution में Union List, State List, Concurrent List का क्या अर्थ हैं?

Update: 2024-12-24 14:49 GMT

कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में कानून बनाने के लिए तीन सूची दी गयी है। स्टेट अलग विषय पर कानून बनाता है और यूनियन अर्थात केंद्र अलग विषय पर कानून बनाता है और कुछ विषय ऐसे हैं जिनपर दोनों मिलकर कानून बनाते हैं उसे Concurrent लिस्ट अर्थात समवर्ती सूची कहा जाता है। इस प्रकार तीन तरह की सूची हैं। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।

संघ सूची-

भारत के कांस्टीट्यूशन के अंतर्गत दी गई संघ सूची में वह विषय है जिनमें मुख्य रूप से देश की रक्षा, विदेशी संबंध, युद्ध और समझौता, परमाणु ऊर्जा, रेल, वायु मार्ग, समुद्री जहाज, डाकतार, टेलीफोन, बेहतर रोड, कास्टिंग, विदेशी व्यापार, नागरिकता, जनगणना, मुद्रा, विदेशी ऋण, रिजर्व बैंक, बीमा विनिमय, चेक, वचन पत्र, बांट और माप का स्थापन, प्रदर्शन के लिए चल चित्रों की मंजूरी, कृषि आय से भिन्न कर, सीमा शुल्क जिनके अंतर्गत निर्यात शुल्क भी आता है। इन सभी विषयों पर संसद ही कानून बना सकती है।

राज्य सूची-

राज्य सूची के अंतर्गत स्थानीय महत्व के 61 विषय हैं जिसमें लोक व्यवस्था, पुलिस न्याय प्रशासन, जेल, स्थानीय शासन, लोक स्वास्थ्य स्वच्छता और उच्च शिक्षा, औषधालय, मादक शराब का उत्पादन निर्माण कब्जा परिवहन, क्रय विक्रय, शिक्षा कृषि, शिक्षा एवं सार्वजनिक आमोद प्रमोद आदि विषय है। राज्य के विधान मंडल को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है।

समवर्ती सूची-

समवर्ती सूची के अंतर्गत कुल 52 विषय दिए गए हैं जिनमें दंड विधि, दंड प्रक्रिया, विवाह तथा विवाह विच्छेद, कांस्टीट्यूशन न्याय प्रशासन, उच्चतम तथा हाईकोर्ट से भिन्न सिविल प्रक्रिया, वन्य आर्थिक और सामाजिक योजना, जनसंख्या नियंत्रण व परिवार नियोजन, व्यापार संघ सामाजिक सुरक्षा विधि और राष्ट्रीय जलमार्ग, बांध और कीमत नियंत्रण, कारखाने विद्युत समाचार पत्र, संपत्ति आदि विषय आते हैं।

इन विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने की अधिकारिता प्राप्त है पर दोनों सरकारों द्वारा बनाई गई विधियों में विरोध होने पर केंद्र द्वारा बनाई गई विधि राज्य की विधि पर अभिभावी होती है। कांस्टीट्यूशन निर्माताओं ने देश की मुख्य विधियों में एकरूपता और शक्ति विभाजन की कठोरता को कम करने की दृष्टि से समवर्ती सूची को कांस्टीट्यूशन में जोड़ा है। 42 वें कांस्टीट्यूशन संशोधन द्वारा संघ सूची में शासन का नियंत्रण संघ और सशस्त्र बल पर संघ का नियंत्रण विषय जोड़ा गया है।

भारत के कांस्टीट्यूशन में स्पष्ट रूप से इन सूचियों को इसलिए डाला गया है ताकि विधि निर्माण में संघ और राज्यों के बीच किसी प्रकार का विवाद पैदा न हो। आर्टिकल 248 अपशिष्ट विधायी शक्तियों अर्थात जो उक्त तीनों सूचियों में उल्लेखित नहीं है को केंद्र सरकार में निहित करता है। संघ सूची की प्रविष्टि नंबर 97 उपबंध करती है कि कोई ऐसे दूसरे विषय जो राज्य सूची समवर्ती सूची में उल्लेखित नहीं है उन पर केंद्र सरकार को अनन्य रूप से कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।

भारत संघ बनाम एसएस ढिल्लन के मामले में कोर्ट के सामने प्रश्न था कि क्या संसद को धन कर अधिनियम जिसके अधीन किसी व्यक्ति की कृषि भूमि से प्राप्त संपत्ति पर धनकर लगाने का उपबंध किया गया है पारित करने की विधायी शक्ति प्राप्त है। उच्चतम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि केंद्रीय विधान मंडल द्वारा पारित विधाओं के मामले में सही कसौटी यह देखना है कि क्या विषय वस्तु राज्य सूची में है या समवर्ती सूची में है, यदि यह पता लग जाए कि वह राज्य सूची में नहीं है तो संसद इस विषय पर अपनी अपशिष्ट शक्ति के अधीन विधान बनाने के लिए सक्षम होगी और ऐसे मामलों में यह पता लगाना आवश्यक होगा की विषय केंद्र सूची की प्रविष्टि 1 से लेकर 97 में है या नहीं।

इस निर्णय के फलस्वरूप राज्य सूची का क्षेत्र काफी संकुचित हो गया क्योंकि केंद्र की अपशिष्ट शक्ति के इतने व्यापक निर्वचन से राज्य की विधान शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अपशिष्ट शक्ति का सहारा सबसे अंत में लेना चाहिए।

सामान्य नियम यह है कि ऐसी दशा में केंद्रीय विधि राज्य के विधान मंडल की विधि पर अभिभावी होगी। आर्टिकल 254 यह उपबंधित करता है कि यदि किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के जिसे बनाने के लिए संसद सक्षम है यह समवर्ती सूची में विधमान विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो खंड 2 के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद द्वारा बनाई गई विधि चाहे वह राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो राज्य की विधि पर अभिभावी होगी।

जावेद भाई बनाम मुंबई राज्य के मामले में सन 1946 में केंद्रीय विधान मंडल ने आवश्यक वस्तु अधिनियम पारित किया जिसके अनुसार इसके उल्लंघन करने वालों को धारा 3 के अंतर्गत अधिक से अधिक 3 वर्ष का कारावास या जुर्माना दोनों दंड दिया जा सकता था। मुंबई राज्य के विधान मंडल ने इस दंड को कम समझ कर एक अधिनियम पारित करके उनको बढ़ाकर 7 वर्ष का कारावास या जुर्माना दोनों कर दिया।

इस अधिनियम को गवर्नर जनरल की अनुमति प्राप्त हो गई और इस प्रकार केंद्रीय विधि निर्मित हो गई। निश्चित इस अधिनियम को गवर्नर जनरल की पर 1957 में संसद में अपने 1946 वाले अधिनियम में संशोधन करके धारा 3 में विहित दंड में काफी परिवर्तन कर दिया। उच्चतम कोर्ट ने इस मामले में निर्णय दिया कि 1957 में संसद के संशोधित अधिनियम द्वारा मुंबई विधान मंडल का अधिनियम विवक्षित रूप से निरस्त हो गया। अतः केंद्र विधि कांस्टीट्यूशनिक है।

सामान्य परिस्थितियों में केंद्र और राज्यों में विधान शक्ति के विभाजन को कठोरता से कायम रखना आवश्यक है और कोई भी सरकार किसी दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती किंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में उक्त शक्ति का वितरण या तो निलंबित कर दिया जाता है यह केंद्र को राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है जिसके अंतर्गत राष्ट्र हित या आपात उद्घोषणा के समय राज्यों की सहमति से बनाई गई विधि में या अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावित करने के लिए विधान बनाते समय या फिर राज्यों में राजनीतिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में केंद्र राज्यों की सूची पर भी कानून निर्माण कर सकता है।

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