NI Act में किसी चेक बाउंस केस में ट्रायल के शुरू होने के पहले ही प्रतिकर

NI Act में प्रतिकर के संदाय के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं था। 2018 में संशोधन के द्वारा इस सम्बन्ध में धारा 143-क अन्तरिम प्रतिकर का प्रावधान किया गया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 (3) का सन्दर्भ यहाँ लिया जाता है।
धारा 143 - क के प्रावधान दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों पर अधिभावी प्रभाव रखते हैं। कब अन्तरिम प्रतिकर [ धारा 143 क (1) ] - धारा 138 के अधीन अपराध का विचारण करने वाला कोर्ट चेक के लेखीवाल को
संक्षिप्त विचारण या समन मामले में जहाँ परिवाद में उसने किए गए अभियोग का दोषी नहीं होने का अभिवाक् किया हो, एवं
अन्य किसी मामले में आरोप विरचित किए जाने पर परिवादी को अन्तरिम प्रतिकर का संदाय करने का आदेश कर सकेगा।
अन्तरिम प्रतिकर की धनराशि : [ धारा 143 क (2) ] - अन्तरिम प्रतिकर चेक रकम के 20% से अधिक नहीं होगी।
संदाय की समय-सीमा : [ धारा 143-क (3) ] - अन्तरिम प्रतिकर को जारी आदेश के तारीख से 60 दिन के भीतर या चेक के लेखीवाल द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने की तिथि पर 30 दिन से अधिक की ऐसी और अवधि के भीतर जिसका कोर्ट द्वारा निर्देश दिया जाए, संदाय किया जाएगा।
जहाँ लेखीवाल दोषमुक्त किया जाता है: [ धारा 143 क (4)]- जहाँ चेक का लेखीवाल धारा 138 के अधीन अपराध से दोषमुक्त किया जाता है, वहाँ कोर्ट परिवादी को प्रतिकर की अन्तरिम रकम लेखीवाल को आदेश की तारीख से 60 दिन के भीतर या जहाँ परिवादी द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर तीस दिन से अनधिक की ऐसी और अवधि के भीतर जिसका कोर्ट द्वारा निर्देश दिया जाए ब्याज सहित प्रतिसंदाय का निदेश देगा।
धारा 143क के अधीन अन्तरिम प्रतिकर भविष्यलक्षी है- जी० जी० राजा बनाम तेजराज सुराना के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय था कि धारा 143क भविष्यलक्षी प्रवर्तनीय है और यह कि धारा 143क के प्रावधान केवल वहाँ लागू किया जा सकेगा जहाँ धारा 138 के अधीन अपराध धारा 143क के संविधि बुक में स्थापित होने के बाद किये गये हैं।
इस मामले में धारा 138 के अधीन परिवाद 4-11-2016 को किया गया था, जबकि धारा 143क का संशोधित प्रावधान 1-9-2018 से प्रभावी बनाया गया था। अतः परीक्षण कोर्ट एवं हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश अपास्त किया जाए एवं इस कोर्ट द्वारा अन्तरिम निर्देश के अधीन जमा धनराशि को ब्याज सहित अपीलकर्ता को वापस किया जाए।
परीक्षण कोर्ट ने चेक धनराशि का 15% धारा 143क के अनुसार अभियुक्त/अपीलकर्ता द्वारा परिवादी/प्रत्यर्थी को अन्तरिम प्रतिकर भुगतान करने का आदेश किया। उच्च न्यायलय ने अपील में मान्य किया अतः सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
जी० जी० राजा के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सम्प्रेक्षण था कि धारा 143क में अन्तर्विष्ट प्रावधानों के दो आयाम हैं-
प्रथम यह कि यह धारा अभियुक्त पर यह दायित्व सृजित करता है कि वह परिवादी को चेक धनराशि का 20% भुगतान करने के लिए आदेशित किया जा सकता है। ऐसा आदेश उस समय भी किया जा सकता है जहां परिवाद अन्तिम रूप से निर्णीत नहीं किया गया है।
द्वितीय यह कि इस अन्तरिम प्रतिकर को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली के यंत्र के रूप में उपलब्ध कराया गया है।
इस प्रकार यह अभियुक्त पर केवल नई आबद्धता या दायित्व सृजित नहीं करती है, बल्कि ऐसे अन्तरिम प्रतिकर की वसूली के लिए बाध्यकारी तरीके का भी प्रावधान करती है। इस धारा के अधीन अन्तरिम प्रतिकर की वसूली भू-राजस्व बकाए के समान राज्य के यंत्र द्वारा की जा सकती है। बाध्यकारी तरीकों में अभियुक्त को गिरफ्तारी एवं निरोध भी सम्मिलित है।