NI Act में चेक बाउंस केस की ट्रायल प्रक्रिया

Update: 2025-04-28 04:50 GMT
NI Act में चेक बाउंस केस की ट्रायल प्रक्रिया

इस एक्ट में यह प्रोसेस है कि चेक बाउंस के केस का समरी ट्रायल किया जाएगा। लेकिन इस समरी ट्रायल केस में भी वर्षों का समय लग जाता है। चेकों के अनादरण को अपराध के रूप में अधिनियम में उपबन्धित करने के बाद चेक अनादरण के मामलों में वृद्धि हुई।

धारा 138 के अधीन परिवादों की संख्या में इतनी अधिक संख्या में वृद्धि हो गई कि न्यायालयों को इन्हें युक्तियुक्त समय में सम्भालना असम्भव सा हो गया और इसका न्यायालयों के आपराधिक के सामान्य कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। अतः कुछ और अनुतोषीय उपाय को लाना आवश्यक हो गया और विधायिका ने अधिनियम में संशोधन द्वारा दो प्रावधान जोड़ा है।

संक्षिप्त विचारण का प्रावधान, धारा 143 के अधीन

अपराध को शमनीय बनाना धारा 147 के अधीन

संक्षिप्त विचारण- अधिनियम की धारा 143 चेकों के अनादरण के मामलों को संक्षिप्त विचारण करने का उपबन्ध करती है। अधिनियम के अधीन ऐसे सभी अपराधों का विचारण प्रथम संवर्ग के मजिस्ट्रेट या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा। संक्षिप्त विचारण के होने पर भी मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह एक वर्ष से अनधिक कारावास या 10,000 रुपए से अनधिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा।

लेकिन जहाँ विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामले में दण्ड एक वर्ष से अधिक का कारावास होना चाहिए एवं संक्षिप्त विचारण करना अवांछनीय होगा, वह पूर्ण विचारण का आदेश करेगा एवं साक्षियों का पुनः परीक्षण करेगा। इस धारा के अधीन मामले का विचारण दिन-प्रतिदिन के आधार पर जारी रखेगा। जब तक कि कोर्ट लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से विचारण स्थगित किया जाना आवश्यक नहीं समझता है। इस धारा के अधीन प्रत्येक विचारण यथासम्भव शीघ्रता से किया जाएगा। मजिस्ट्रेट को आबद्धता है कि विचारण को परिवाद फाइल करने की तिथि से छह मास के भीतर समाप्त करने का प्रयास करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने संक्षिप्त विचारण के सिद्धान्त को इण्डियन एसोसिएशन ऑफ बैंक बनाम भारत संघ के मामले में स्पष्ट किया है। धारा 143 कोर्ट को चेक के अनादरण के मामले को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 262-265 के अनुसार संक्षिप्त विचारण करने के लिए सशक्त करती है।

अधिनियम की धारा 143 संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा अन्तःस्थापित करती है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी NI Act के अध्याय 18 के अधीन सभी अपराधों का विचारण जुडिशियल मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त तौर पर किया जाएगा और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा -265 में विहित संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया प्रयोज्य होगी और मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह एक वर्ष से अनधिक कारावास का दण्ड एवं 5,000 रु० से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा।

यहाँ यह पुनः उपबन्धित किया गया कि संक्षिप्त विचारण के दौरान यदि यह मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि मामले की प्रकृति यह अपेक्षित करती है कि एक वर्ष से अधिक अवधि के कारावास का दण्डादेश पारित किया जा सकता है और किसी अन्य कारण से मामले का संक्षिप्त विचारण करना अवांछनीय होगा तो मजिस्ट्रेट पक्षकारों को सुनने के पश्चात् उस आशय का आदेश अभिलिखित करेगा और तत्पश्चात् ऐसे किसी साक्षी को वापस बुलाएगा जिसकी परीक्षा की जाँच की जा चुकी है और उक्त संहिता में उपबन्धित रीति से मामले को सुनने या पुनः सुनने के लिए अग्रसर होगा।

NI Act की धारा 143 कोर्ट को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 262-265 के उपबन्धों के अनुसार चेकों के अनादरण के मामलों को संक्षिप्त विचारण के लिए सशक्त करती है। धारा 143 के अधीन मजिस्ट्रेट की उन्मोचन करने की विवक्षित शक्ति मे० मीटरस एण्ड इन्स्ट्रूमेन्टल (प्रा०) लि० बनाम कंचन मेहता, सुप्रीम कोर्ट ने जी० वी० वहरूनी एवं माण्डवी को आपरेटिव बैंक बनाम निमेश बी० ठाकोर के मामले में प्रतिपादित विधि सिद्धान्त का अनुसरण किया है कि 2002 के पश्चात् सांविधिक योजना अधिनियम की धारा 143 के अधीन मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को उन्मोचित करने की विवक्षित शक्ति प्रदान करना है यदि परिवादी को कोर्ट के समाधान में प्रतिकर संदत्त कर दिया जाता है जहाँ अभियुक्त परिवादी को कोर्ट द्वारा निर्धारित ब्याज़ सहित चेक धनराशि एवं वाद व्यय का निवेदन करता है।

कोर्ट को परिवादी एवं अभियुक्त के अधिकारों एवं न्याय के सम्बर्द्धन में सन्तुलन बनाना होता है। विधि का मूल उद्देश्य चेक संव्यवहार के विश्वसनीयता को परिवादी को त्वरित न्याय देकर अभियुक्त को दण्डित किये बिना, बढ़ाना है जिसका आचरण युक्तियुक्त है या जहाँ परिवादी को प्रतिकर देना न्यायपूर्ण हो जाता है। धारा 143 के अधीन इसमें अन्तर्निहित विवक्षित शक्तियों का प्रयोग करते हुए मजिस्ट्रेट समुचित आदेश पारित कर सकेगा।

संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया-NI Act के इस अध्याय के अधीन विचारण में दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन समन मामलों की विहित प्रक्रिया अपनायी जाएगी।" संक्षिप्त विचारण में मजिस्ट्रेट को एक वर्ष से अनधिक कारावास या 10,000 रुपए जुर्माना का दण्डादेश देना विधिमान्य होगा।

प्रत्येक संक्षिप्त विचारण के मामले में, मजिस्ट्रेट जैसा राज्य सरकार निर्देशित करे निम्नलिखित विवरण को विहित फार्म में रखेगा, अर्थात्-

मामले का क्रम संख्या,

अपराध कारित करने की तिथि,

परिवाद को रिपोर्ट करने की तिथि,

परिवादी का नाम (यदि कोई है),

अभियुक्त एवं उसके पिता का नाम एवं पता,

परिवादित अपराध और साबित अपराध एवं धारा 260, दण्ड प्रक्रिया संहिता के उपधारा (1) के खण्डों (ii). (iii). या (iv) के अधीन आने वाले मामले, सम्पत्ति का मूल्य जिसके सम्बन्ध में अपराध किया गया है।

अभियुक्त का अभिवाक्

मामले का निष्कर्ष, परीक्षण,

दण्डादेश एवं अन्य अन्तिम आदेश

कार्यवाही समाप्त होने की तिथि

संक्षिप्त विचारण में निर्णय-प्रत्येक संक्षिप्त विचारण के मामले में जहाँ अभियुक्त दोषी होने का अभिवाक् नहीं करता है, मजिस्ट्रेट साक्ष्य के सार को और निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख के साथ निर्णय को अभिलिखित करेगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 138 के अधीन अपनायी जाने वाली प्रक्रिया-NI Act की धारा 138 से सम्बन्धित मामलों में विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया के सम्बन्ध में अनेकों निर्देश दिए गए हैं जिसमें से कुछ प्रमुख रूप में हैं-

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट/जुडिशियल मजिस्ट्रेट उस दिन जब धारा 138 के अधीन कोई परिवाद प्रस्तुत किया जाता है, परिवाद का और यदि परिवाद शपथपत्र के साथ है जो शपथपत्र एवं अभिलेखों की जाँच करेगा और यदि वह सब सही पाता है, तो संज्ञान लेगा एवं समन जारी करने का निर्देश देगा।

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट/जुडिशियल मजिस्ट्रेट एक व्यवहारिक एवं सही तरीका समन जारी करने में अपनाएगा। समन आवश्यक रूप में परिवादी से प्राप्त पते पर समुचित रूप से लिखे पते पर डाक द्वारा या ई-मेल द्वारा भेजेगा। समुचित मामलों में कोर्ट पुलिस या समीप के कोर्ट का भी सहयोग ले सकेगा। उपस्थिति के लिए एक संक्षिप्त तिथि निर्धारित की जाएगी। यदि समन बिना तामीली के वापस आती है तो तुरन्त की जाने वाली कार्यवाही की जाएगी।

कोर्ट समन में यह निर्देशित करेगा कि यदि अभियुक्त मामले की प्रथम सुनवाई पर अपराध के शमन के लिए आवेदन करता है, शीघ्रता से कोर्ट समुचित आदेश पारित करेगा।

कोर्ट अभियुक्त को निर्देशित करे जब वह विचारण के दौरान अपनी उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए बेल बाण्ड देने के लिये उपस्थित होता है, तो उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 251 के अधीन सूचना प्राप्त करे जिससे वह अपनी प्रतिरक्षा का बचाव कर सके और प्रतिरक्षा साक्ष्य के लिए तिथि निर्धारित कर सके जब तक कि दं० प्र० सं० की धारा 145 (2) के अधीन अभियुक्त द्वारा साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के लिए पुन: बुलाने का आवेदन न करे।

कोर्ट इस बात को अवश्य सुनिश्चित करे कि मामला निर्दिष्ट करने के तीन माह के भीतर परिवादी को मुख्य परीक्षा, प्रतिपरीक्षा एवं पुनः परीक्षा को सम्पन्न हो जाए।

कोर्ट को साक्षियों को कोर्ट में परीक्षण के स्थान पर उनका शपथ स्वीकार करने का विकल्प होगा। कोर्ट का जो भी निर्देश हो उसके अनुसार परिवादी के साक्षी एवं अभियुक्त प्रतिपरीक्षा के लिए उपलब्ध रहेंगे।

Tags:    

Similar News