हसबैंड के वाइफ को साथ नहीं रखने पर क्या कहता है कानून?

Update: 2024-09-05 06:48 GMT

कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जब किसी पति द्वारा पत्नी को बगैर किसी कारण के घर से निकाल दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि महिला कामकाजी नहीं है तब उस पर आर्थिक संकट भी आ खड़ा होता है। यह हालात अत्यंत संकटकारी है। इस स्थिति में पत्नी सर्वप्रथम अपने कानूनी अधिकारों को तलाशते हैं।

भारतीय कानून ने महिलाओं को अनेक अधिकार दिए हैं। उन अधिकारों में कुछ अधिकार ऐसे हैं जो एक पत्नी को प्राप्त होते हैं।

अपने पति के विरुद्ध वह सभी अधिकार यह है:-

धारा- 498 (ए ) भारतीय दंड संहिता IPC:-

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) पति और उसके घर के लोगों द्वारा की जाने वाली क्रूरता के विरुद्ध एक पत्नी को अधिकार देती है। यह एक संज्ञेय धारा है जिस पर थाने से एफआईआर की जा सकती है। इस धारा के अंतर्गत 3 वर्ष तक के कारावास के दंड का प्रावधान कानून में किया गया है।

अगर किसी महिला के साथ किसी भी प्रकार की फिजिकल या मेंटल क्रूरता की गई है, उसे टॉर्चर किया गया है जैसे कि उसे गालियां दी गई हैं, मारा पीटा गया है, दहेज के लिए ताने दिए गए हैं, रसोई घर में खाने को लेकर ताने दिए गए हैं, गहनों के लिए ताने दिए गए हैं, उसके माता-पिता के बारे में गंदी और बुरी बातें कहीं गई है, यह सभी क्रूरता की श्रेणी में आता है।

किसी महिला के साथ यह सब कुछ हुआ है उसके पति ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया है और दोबारा लेने नहीं आया ऐसी स्थिति में वह महिला पुलिस थाने जाकर इसकी शिकायत कर सकती है। धारा-154 दंड प्रक्रिया सहिंता, 1973 (CRPC) के अंतर्गत पक्की रिपोर्ट दर्ज करवा जा सकती है जिसे एफआईआर (FIR) कहा जाता है।

इसके लिए जरूरी नहीं है कि महिला का पति जिस थाना क्षेत्र में रहता है वहीं रिपोर्ट की जाए बल्कि कोई भी ऐसी पीड़ित महिला अपने पिता के घर जाकर उस थाना क्षेत्र के अंतर्गत अपने पति की रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है या अपने जिले के महिला थाने पर जाकर धारा 498(ए) के अंतर्गत मामला दर्ज़ करवा सकती है।

पति के घर वापस जाने के लिए अदालत में याचिका

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा-9 किसी घर से निकाली गई महिला को यह अधिकार देती है कि वह एक अर्जी अदालत में लगाकर अपने पति के घर वापस भेजे जाने की दरख्वास्त कर सकती है।

अगर किसी महिला को बगैर किसी वजह के उसके पति द्वारा घर से निकाल दिया गया है या उसे छोड़ दिया गया है ऐसी स्थिति में महिला का यह अधिकार बन जाता है कि वह पति के घर यदि वापस जाना चाहती है तो अदालत को इस मामले की जानकारी देकर हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-9 के अंतर्गत अर्जी लगाकर अपने पति के घर वापस जा सकती है।

अदालत ऐसी महिला के पति को यह आदेश करती है कि वह अपनी पत्नी को वापस अपने घर लेकर जाएं और एक पत्नी के रूप में वह उसे अपने साथ रखे और अपनी जिंदगी जिए।

आज कानून में इस धारा के होने के कारण अनेक बिगड़ते हुए घरों को बचाया गया है। किसी भी घर को बिगड़ने के पहले ही बचाया जाए इसके लिए भारतीय कानून में व्यवस्था की गई है।

कोई भी पीड़ित पत्नी यह अर्जी उस अदालत में लगा सकती है जहां वह निवास करती है। अगर वह अपने मां बाप के घर रह रही है तो वहां से भी यह अर्जी लगाई जा सकती है। जैसे अगर कोई महिला के माता पिता लखनऊ में रहते हैं और पति का घर चेन्नई में है ऐसी स्थिति में महिला लखनऊ जहां उसके माता-पिता रहते हैं जहां वह निवास कर रही वहां की फैमिली कोर्ट या जिला कोर्ट में यदि लगा सकती है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

शादीशुदा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए यह कानून भारत में मील का पत्थर साबित हुआ है। इस कानून ने बहुत से फायदे शादीशुदा महिलाओं के लिए किए हैं। शादीशुदा महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने में इस कानून का अहम स्थान है।

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कोई भी ऐसी महिला जिसे उसके पति द्वारा घर से निकाल दिया गया है वह घर में पुनः प्रवेश पाने की अर्जी लगा सकती है और साथ ही यदि अगर ऐसी महिला को दिए गए स्त्रीधन पर उसके पति ने कब्जा कर लिया है तब वह महिला अर्ज़ी में अपने स्त्री धन को वापस पाने की गुहार भी लगा सकती है और यही नहीं बल्कि इस धारा के तहत वह Maintainance भी हासिल कर सकती है। किसी भी महिला के पास यह अधिकार है कि अगर वह अपने पति से अलग रह रही है या उसका पति उसे साथ नहीं रखता है , बिना किसी वजह के उसके पति ने उसे छोड़ दिया है ऐसी स्थिति में पत्नी पति से भरण पोषण ले सकती है।

Maintainance भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत

बगैर किसी वजह के घर से निकाली गई महिला के पास में यह चौथा सबसे अहम अधिकार है जिसमें ऐसी महिला अगर पति से अलग रह रही है वह पति ने ही उसे अलग किया है तब अदालत में अर्जी लगा कर दंड प्रक्रिया संहिता (BNSS) की धारा 144 के तहत पति से भरण-पोषण मांग सकती है।

घरेलू हिंसा अधिनियम और भरण पोषण के लिए धारा 144 का आवेदन महिला उस अदालत में लगा सकती है जहां वह निवास कर रही है। अमूमन महिलाएं पति के घर से निकाले जाने पर अपने माता पिता के साथ ही निवास करती हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि ऐसी महिलाएं अपने माता पिता के निवास स्थान के क्षेत्र की अदालत में मेंटेनेंस के लिए अर्जी लगा सकती है।

अदालत साधारण तौर पर ₹3000 से ₹5000 तक प्रतिमाह के आदेश तो करती ही है पर इसके साथ महिला के स्टेटस को भी देखा जाता है। उसकी जीवन शैली को भी देखा जाता है और उसके साथ उसके पति की आय को भी देखा जाता है। इन सभी चीजों को देखने के बाद अदालत भरण पोषण का आदेश कर देती है।

इस कानून का मकसद महिलाओं को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करना है इससे पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के आर्थिक पक्ष को मजबूत किया जाता है और उन्हें इतना रुपया दिलाया जाता है जिससे वह अपना जीवन जी सकें। अगर पति द्वारा भरण पोषण के रुपए नहीं दिए जाते हैं तब महिला उस पर वसूली का मुकदमा लगा सकती है और अदालत पति को गिरफ्तारी वारंट के जरिए बुलाकर पत्नी को रुपए दिलवाती है।

यह सभी अधिकार एक भारतीय स्त्री को प्राप्त है इसमें से केवल हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 9 हिंदू महिलाओं के मामले में ही लागू होती है। बाकी के सभी कानून भारत के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते है। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 9 के जैसी ही अन्य व्यवस्था ईसाई और मुस्लिम समुदाय में भी उपलब्ध है वे महिलाएं भी इसका लाभ ले सकती हैं।

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