स्पेस लॉ क्या है जानिए प्रावधान

Update: 2023-08-31 12:53 GMT

पृथ्वी के रहवासियों की पहुंच अब पूरी तरह स्पेस में भी हो चुकी है और ऐसी पहुंच आज नहीं अपितु पचास वर्ष से अधिक समय पहले हो चुकी थी। अब यह ज़रूरी है कि जहां पृथ्वी के इंसानों की पहुंच हो जाए उस जगह पर कानून भी होना चाहिए क्योंकि सभी स्पेस एजेंसीज और अनुसंधान केंद्रों को विनियमित किया जाना भी ज़रूरी है जिससे कोई भी अनियमितता सामने नहीं आए। आमतौर पर स्पेस से संबंधित खोज और पृथ्वी की सतह से ऊपर जाना किसी साधारण संस्था के लिए संभव नहीं है।

अधिकांश अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र देशों के नाम से ही चल रहे हैं और उनका संचालन भी उनके देश की सरकार द्वारा ही किया जा रहा है। यहां तक संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी पूंजीवादी व्यवस्था में भी अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी जिसे नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) कहा जाता है अमेरिकी सरकार का ही एक हिस्सा है।

आमतौर पर यह समझा जाता है कि चांद पर बसना या फिर वहां कॉलोनी इत्यादि निर्माण करना कोई सरल कार्य है और कोई भी देश वहां अपना कब्ज़ा कर सकता है किंतु यह सही नहीं है। इससे संबंधित नियम और प्रावधान दुनिया में उपलब्ध है और उन ही नियमों और प्रावधानों के अंतर्गत अंतरिक्ष अनुसंधान से संबंधित गतिविधियों को किया जा रहा है।

सभी देशों में अंतरिक्ष अनुसंधान से संबंधित संहिताबद्ध कानून नहीं है, इस ही प्रकार भारत में भी अंतरिक्ष अनुसंधान से संबंधित कोई संहिताबद्ध कानून नहीं है किंतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अनेक समझौते किए गए हैं जो अंतरिक्ष अनुसंधान से संबंधित कानून का निर्माण करते हैं भारत उन समझौता संधि हस्ताक्षर करने वाले देशों में एक देश है और भारत पर भी वही कानून लागू होता है।

अंतरिक्ष कानून की उत्पत्ति 1919 में हुई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कानून प्रत्येक देश की उनके क्षेत्र से सीधे ऊपर के हवाई क्षेत्र पर संप्रभुता को मान्यता देता है, जिसे बाद में 1944 में शिकागो कन्वेंशन में मज़बूत किया गया। शीत युद्ध के दौरान घरेलू अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संघ परिषद द्वारा शुरू की गई अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति के आधिकारिक निर्माण को प्रेरित किया।

सोवियत संघ द्वारा 1957 में दुनिया के पहले कृत्रिम उपग्रह, स्पुतनिक 1 के प्रक्षेपण ने सीधे संयुक्त राज्य कांग्रेस को अंतरिक्ष अधिनियम पारित करने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन का निर्माण हुआ क्योंकि अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करना आवश्यक था, यह इस युग के दौरान था जहां अंतरिक्ष कानून पारंपरिक एयरोस्पेस कानून से स्वतंत्र क्षेत्र बन गया।

वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय संधि का उद्देश्य अंतरिक्ष अनुसंधान केवल और केवल मानवजाति का हित और उत्थान है एवं कोई भी देश इस अनुसंधान का उपयोग उक्त संधि के प्रावधानों के विरुद्ध जाकर नहीं कर सकता है। उक्त प्रावधानों में यह भी शामिल है कि किसी भी खगोलीय पिंड पर किसी भी देश का कोई कब्ज़ा इत्यादि नहीं होगा और केवल खगोलीय पिंड ही नहीं अपितु पृथ्वी की सतह से काफ़ी ऊपर स्पेस में भी किसी प्रकार का कोई कब्ज़ा किसी देश का नहीं होगा या फिर किसी संस्था या व्यक्ति का भी नहीं होगा।

अब तक हुई ऐसी संधियों में निम्न शामिल हैं-

(1) आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि

वर्ष 1963

(2) बाह्य अंतरिक्ष संधि

वर्ष 1967

(3) बचाव समझौता

वर्ष 1967

(4) दायित्व कन्वेंशन

वर्ष 1972

(5) पंजीकरण कन्वेंशन

वर्ष 1974

(6) चंद्रमा संधि

वर्ष 1979

बाह्य अंतरिक्ष संधि (आउटर स्पेस ट्रीटी)

उक्त सभी समझौते विश्व के भिन्न भिन्न देशों के बीच हुए हैं। इन सभी संधियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण संधि बाह्य अंतरिक्ष संधि है। अक्टूबर 1957 में सोवियत संघ के पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक के प्रक्षेपण के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों की होड़ ने सैन्य उद्देश्यों के लिए बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्तावों को तेज कर दिया।

17 अक्टूबर 1963 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से सामूहिक विनाश के हथियारों के इंट्रोडक्शन पर रोक लगाने वाला एक प्रस्ताव अपनाया। बाह्य अंतरिक्ष में बाहरी अंतरिक्ष को नियंत्रित करने वाली हथियार नियंत्रण संधि के विभिन्न प्रस्तावों पर दिसंबर 1966 में एक महासभा सत्र के दौरान बहस हुई।

बाह्य अंतरिक्ष संधि के प्रमुख प्रावधानों में अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाना शामिल है शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए चंद्रमा और अन्य सभी खगोलीय पिंडों के उपयोग को सीमित करना यह स्थापित करना कि सभी देशों द्वारा उस स्थान का स्वतंत्र रूप से अन्वेषण और उपयोग किया जाएगा और किसी भी देश को बाहरी अंतरिक्ष या किसी खगोलीय पिंड पर संप्रभुता का दावा करने से रोकना।

यह सैन्य अड्डे स्थापित करने, हथियारों का परीक्षण करने और आकाशीय पिंडों पर सैन्य युद्धाभ्यास करने से मना करता है, यह संधि स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष में सभी सैन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं लगाती है, न ही सैन्य अंतरिक्ष बलों की स्थापना या अंतरिक्ष में पारंपरिक हथियारों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाती है। बाह्य अंतरिक्ष संधि ने चार अतिरिक्त समझौतों को जन्म दिया चंद्रमा पर गतिविधियों के लिए नियम, अंतरिक्ष यान से होने वाली क्षति के लिए दायित्व, गिरे हुए अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी,और अंतरिक्ष वाहनों का पंजीकरण।

इस ही के साथ वर्ष 1967 का बचाव समझौता अंतरिक्ष यात्रियों के बचाव से संबंधित है। किसी भी स्पेस एजेंसी की यह ज़िम्मेदारी है कि अंतरिक्ष में गए किसी भी यात्री की सुरक्षा करे और समय आने पर उसे राहत पहुंचाए और आपातकालीन स्थिति में रेस्क्यू भी करे क्योंकि इस संधि में ऐसा माना गया है कि पृथ्वी से अंतरिक्ष में गया कोई भी मानव मानव जाति का दूत है।

वर्ष 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि के विभिन्न अनुच्छेद हैं। उक्त अनुच्छेद में निम्न महत्वपूर्ण हैं-

अनुच्छेद- 1

बाह्य अंतरिक्ष की खोज और उपयोग सभी देशों के लाभ और हितों के लिए किया जाएगा और यह सभी मानव जाति का प्रांत होगा।

अनुच्छेद-3

बाहरी स्थान सभी राज्यों द्वारा अन्वेषण और उपयोग के लिए निःशुल्क होगा।

अनुच्छेद-4

बाह्य अंतरिक्ष संप्रभुता के दावे, उपयोग या कब्जे के माध्यम से, या किसी अन्य माध्यम से राष्ट्रीय विनियोग के अधीन नहीं है।

अनुच्छेद-5

राज्य परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश के अन्य हथियार कक्षा में या आकाशीय पिंडों पर नहीं रखेंगे या उन्हें किसी अन्य तरीके से बाहरी अंतरिक्ष में तैनात नहीं करेंगे;

अनुच्छेद-6

चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों का उपयोग विशेष रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। किसी भी प्रकार के हथियारों का परीक्षण करने, सैन्य युद्धाभ्यास करने, या सैन्य अड्डों, प्रतिष्ठानों और किलेबंदी की स्थापना के लिए उनके उपयोग पर प्रतिबंध है।

अनुच्छेद-7

अंतरिक्ष यात्रियों को मानव जाति का दूत माना जाएगा।

अनुच्छेद-8

राज्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होंगे, चाहे वे सरकारी या गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा किए जाएं।

अनुच्छेद-9

राज्य अपनी अंतरिक्ष वस्तुओं से होने वाली क्षति के लिए उत्तरदायी होंगे; और राज्यों को अंतरिक्ष और आकाशीय पिंडों के हानिकारक प्रदूषण से बचना चाहिए।

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