आपराधिक मामलों में पुनरीक्षण क्या होता है? जानिए प्रावधान

Update: 2022-10-22 04:49 GMT

अपीलीय न्यायालय के पास केवल अपील की ही शक्ति नहीं होती है अपितु वह पुनरीक्षण और पुनर्विलोकन भी कर सकता है। आपराधिक मामलों में अपील के साथ पुनरीक्षण भी होता है, यहां भान रहे कि किसी भी आपराधिक मामले में पुनर्विलोकन की व्यवस्था नहीं है। किसी भी आपराधिक निर्णय, आदेश की केवल अपील हो सकती है या फिर पुनरीक्षण होता है। इस आलेख में पुनरीक्षण पर चर्चा की जा रही है।

सिविल मामलों की तरह आपराधिक मामलों के पुनरीक्षण (Revision) की व्यवस्था भी की गई है। वस्तुतः पुनरीक्षण अपील का विकल्प है अर्थात् यह ऐसे मामलों में किया जाता है जिनमें अपील नहीं हो सकती।

पुनरीक्षण में मुख्यतः यह देखा जाता है-

(i) विचारण न्यायालय द्वारा अधिकारिता विषयक कोई त्रुटि तो नहीं की गई है

(ii) प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का पालन किया गया है अथवा नहीं,

(iii) प्रक्रिया विषयक कोई त्रुटि अथवा अनियमितता तो नहीं रह गई हो, आदि।

पुनरीक्षण की शक्तियाँ मुख्य रूप से सेशन न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को प्रदत्त की गई हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 399 से 405 तक में पुनरीक्षण के बारे में प्रावधान किया गया है। सेशन न्यायाधीश द्वारा पुनरीक्षण संहिता की धारा 399 में सेशन न्यायाधीश की पुनरीक्षण की शक्तियों का उल्लेख किया गया है।

सेशन न्यायाधीश की पुनरीक्षण की वही शक्तियाँ हैं जो धारा 401 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय की है।

धारा 399 की उपधारा (1) में यह कहा गया है कि जब सेशन न्यायाधीश स्वयं किसी कार्यवाही के अभिलेख को अपने पास मँगाता है, तब वह न्यायाधीश उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जिनका धारा 401 के अंतर्गत उच्च न्यायालय प्रयोग कर सकता है।

जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा सेशन न्यायालय में पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया जाता है, वहाँ सेशन न्यायालय का विनिश्चय अंतिम माना जायेगा और ऐसे व्यक्ति की प्रेरणा पर पुनरीक्षण के रूप में उच्च न्यायालय या अन्य किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही ग्रहण नहीं की जायेगी।

पुनरीक्षण के दौरान सेशन न्यायालय

(i) न्यायालय की अधिकारिता के प्रश्न पर विचार कर सकेगा।

(ii) यह देख सकेगा कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप की विरचना समुचित रूप से की गई है अथवा नहीं।

(iii) यदि मामला अनन्य रूप से सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो तदनुसार आदेश पारित कर सकेगा।

जब कोई सेशन न्यायाधीश द्वारा साधारण या विशेष आदेशान्तर्गत अपर सेशन न्यायाधीश को अन्तरित किया जाता है तो ऐसे मामलों में अपर सेशन न्यायाधीश पुनरीक्षण की उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो सेशन न्यायालय को इस सम्बन्ध में उपलब्ध है। यह प्रावधान धारा 400 में मिलते है, इसका अर्थ है कि कोई अपर सेशन न्यायाधीश को सेशन न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त है।

उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियाँ

संहिता की धारा 401 में उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियों का उल्लेख किया गया है। पुनरीक्षण के सन्दर्भ में उच्च न्यायालय को वही शक्तियाँ प्राप्त हैं जो एक अपील न्यायालय को प्राप्त है। अर्थात् पुनरीक्षण के दौरान उच्च न्यायालय उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 386, 389, 390 एवं 391 के अन्तर्गत अपील न्यायालय या धारा 307 के अन्तर्गत सेशन न्यायालय को उपलब्ध हैं।

विमल सिंह बनाम खुमान सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग निम्नांकित अवस्थाओं में किया जा सकेगा-

(क) जब विचारण न्यायालय द्वारा कोई गंभीर अनियमितता की गई हो,

(ख) जब विचारण न्यायालय के आदेश से न्याय नहीं हो पाया हो,

(ग) जब विचारण न्यायालय द्वारा अपनी अधिकारिता से बाहर विचारण किया गया हो, अथवा

(घ) जब विचारण न्यायालय द्वारा अवैध रूप से साक्ष्य बन्द कर दी गई हो।

इस प्रकार पुनरीक्षण का क्षेत्र अत्यंत सीमित है। पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग केवल अपवादजनक मामलों में ही किया जाना अनुज्ञात है, जैसे विधि अथवा प्रक्रिया सम्बन्धी त्रुटि के कारण न्याय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना।

पुनरीक्षण में निम्नांकित आदेश पारित नहीं किये जा सकते-

(i) न्यूनतम सजा में कमी करने का आदेश

(ii) दोषमुक्त किये गये अभियुक्त को दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता

(ii) इतने दण्ड से अधिक का दण्डादेश पारित नहीं किया जा सकता जितना विचारण न्यायालय कर सकता था।

(iv) आरोप की विरचना के विरुद्ध पुनरीक्षण में मामले के गुणागुण पर विचार करते हुए प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनना पाये जाने का आदेश पारित नहीं किया जा सकता।

(v) संज्ञान लेने के लिए पत्रावली पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होने पर अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत विखण्डनीय दस्तावेजों की फोटो स्टेट प्रतिलिपियों के आधार पर संज्ञान लेने से इन्कार नहीं किया जा सकता, आदि।

आदेश की प्रति निचले न्यायालय को भेजा जाना

जहाँ उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा कोई मामला पुनरीक्षित किया जाता है तब ऐसे विनिश्चय या आदेश को प्रमाणित करके उस न्यायालय को भेजा जायेगा जिसके द्वारा पुनरीक्षित-

(i) निष्कर्ष,

(ii) दण्डादेश, या

(iii) आदेश,

अभिलिखित किया गया था।

ऐसा विनिश्चय या आदेश मिलने पर न्यायालय द्वारा अभिलेख में तद्नुसार संशोधन किया जायेगा। यह प्रावधान धारा 405 के अंतर्गत दिए गए हैं।

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