NI Act में Presentment किस कंडीशन में जरूरी नहीं

Update: 2025-04-08 11:11 GMT
NI Act में Presentment किस कंडीशन में जरूरी नहीं

परक्राम्य लिखत अधिनियम धारा 76 में उन परिस्थितियों को उपबन्धित किया गया है जिसके अन्तर्गत संदाय के लिए लिखतों का Presentment अनावश्यक होता है और लिखत देय तिथि पर अनादृत मान लिया जाता है। धारा 64 का अपवाद धारा 76 है जहाँ संदाय के लिए लिखतों का Presentment आवश्यक बनाया गया है।

जहाँ Presentment को निवारित किया जाता है : [ धारा 76(क) ] -जहाँ लिखत का रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता साशय Presentment का निवारण करता है। ऐसा निवारण साशय लिखत के रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता के अभिव्यक्त या विवक्षित कार्य या चूक से हो है। सकता ।

कारबार स्थान को बन्द रखना [ धारा 76 ( क ) ] - यदि लिखत को रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता के कारबार स्थल पर देय बनाया गया है, यदि वह कारबार के दिन कारबार को प्रायिक समय के दौरान में ऐसा स्थान बन्द कर देता है, लिखत को Presentment करना अनावश्यक होगा और लिखत अनादृत मान लिया जाएगा। ऐसे स्थान को कारबार के दिन बन्द करना यह दिखाता है कि रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता संदाय से बच रहा है।

संदाय के स्थान पर किसी का हाजिर न रहना [ धारा 76(क) ] -जहाँ लिखत किसी अन्य विनिर्दिष्ट स्थान पर देय बनाया गया है और वहाँ पर न तो वह या उसकी ओर से कोई प्राधिकृत व्यक्ति कारबार के प्रायिक समय में हाजिर रहता है, Presentment आवश्यक नहीं होगा।

हाईन बनाम एलें के वाद में यह धारित किया गया है कि यदि लिखत को किसी गृह पर देय बनाया गया है, वह बन्द है वहाँ कोई व्यक्ति नहीं है वहाँ वास्तविक मनाही नहीं माना जाएगा। परन्तु सैन्डस बनाम क्लार्की के मामले में यह धारित किया गया है कि यह साबित करना हो पर्याप्त नहीं होगा कि प्रतिग्रहीता का या रचयिता का घर बन्द था। यहाँ पर धारक को आगे बढ़कर यह दिखाना होगा कि उसने पूछताछ की है और उसे पाने का प्रयास किया है।

सम्यक् तलाशी के पश्चात् न पाया जाना [ धारा 76 (क) ] - यदि लिखत किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं बनाया गया है एवं वह सम्यक् तलाशी के पश्चात् भी नहीं पाया जाता है। जहाँ लिखत किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं है वहाँ धारक की यह आवद्धता है कि वह पूछताछ करे एवं सम्यक् परिश्रम का प्रयोग करे जिससे लिखत के रचयिता, प्रतिग्रहीता या ऊपरवाल को पता लगाया जा सके और वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक को संदाय के लिए उपस्थापित किया जा सके। यदि सम्यक् तलाशी के पश्चात् भी रचयिता, प्रतिग्रहीता या ऊपरवाल को न पाया जा सके तो लिखत का Presentment आवश्यक नहीं होगा।

परित्याग द्वारा [धारा 76(ख), (ग) ] - धारा 76 के खण्ड (ख) एवं (ग) में उन परिस्थितियों का उपबन्ध किया गया है जिसके अन्तर्गत रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता जो Presentment की माँग करने का अधिकार रखता है, Presentment का परित्याग कर दिया है। ऐसा परित्याग अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकता है। ऐसी परिस्थितियाँ हैं

जहाँ लिखत में अभिव्यक्तत: Presentment का परित्याग किया गया है।

उस पक्षकार को जिसे उससे भारित किया जाना इप्सित है, यदि वह अनुस्थापन के बावजूद भी शोध्य रकम का संदाय भागत: या पूर्णतः कर देता है।

उस पक्षकार को जिसे उससे भारित किया जाना इप्सित है यह ज्ञान रखते हुए कि लिखत को उपस्थापित नहीं किया गया है उस शोध्य रकम को भागत: या पूर्णत: संदाय करने का वचन देता है।

यदि पक्षकार जो संदाय के लिए आबद्ध है, Presentment में किसी व्यतिक्रम का लाभ लेने का अपना अधिकार अन्यथा अभिव्यक्त कर देता है।

जहाँ लेखीवाल को नुकसान नहीं पहुंच सकता [ धारा 76 (घ) ] - जहाँ तक कि लेखीवाल का प्रश्न है, यदि लेखीवाल को ऐसे Presentment के अभाव से नुकसान नहीं पहुँच सका है। यह खण्ड (घ) केवल चेक के सम्बन्ध में सामान्यतया प्रयोज्य होता है। अतः यह खण्ड वचन पत्र के सम्बन्ध में प्रयोज्य नहीं होता है। मुहम्मद बनाम अब्दुल्ला में यह धारित किया गया है कि यह खण्ड वचन पत्र के सम्बन्ध में लागू नहीं होता है, क्योंकि अधिनियम में पूर्णतया "लेखीवाल" एवं "रचयिता" में अन्तर स्थापित किया है और इन शब्दों को पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त नहीं किया है।

एक चेक का लेखीवाल कोई नुकसान या क्षति नहीं उठाता है जहाँ उसके खाते में पर्याप्त निधि नहीं होती है जिससे चेक का संदाय किया जा सके। परन्तु जहाँ लेखीवाल यह विश्वास रखने का कारण रखता है कि चेक के Presentment पर खाते में पर्याप्त निधि की व्यवस्था हो जाएगी वहाँ धारक, लेखीवाल को भारित करने के लिए चेक का Presentment करना आवश्यक होगा।

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