घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में किसी भी महिला का घर से बेदखल नहीं किये जाने का अधिकार

Update: 2025-10-11 04:25 GMT

धारा 19 की उपधारा (1) का खण्ड (ख) विशेषतः "प्रत्यर्थी को, उस साझी गृहस्थी से स्वयं को हटाने का निर्देश देता है।" धारा 19 की उपधारा (1) का परन्तुक, हालांकि, कथित करता है कि "परन्तु यह कि खण्ड (ख) के अधीन कोई आदेश किसी व्यक्ति, जो महिला है, के विरुद्ध पारित नहीं किया जायेगा।

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 प्रावधानित करती है कि मजिस्ट्रेट, यह समाधान होने पर कि घरेलू हिंसा हुई है, प्रत्यर्थी को साझी गृहस्थी से, किसी व्यक्ति के कब्जे को बेकब्जा करने से या किसी अन्य रीति से उस कब्जे में विघ्न डालने से अवरुद्ध करने, प्रत्यर्थी को, उस साझी गृहस्थी से स्वयं को हटाने का निदेश देने, प्रत्यर्थी या उसके किसी नातेदारों को साझी गृहस्थी के किसी भाग में प्रवेश करने से अवरुद्ध करने, साझी गृहस्थी को अन्य संक्रान्त करने या व्ययनित करने या उसे विल्लंगमित करने से अवरुद्ध करने, प्रत्यर्थी को मजिस्ट्रेट की इजाजत के सिवाय, साझी गृहस्थी में अपने अधिकार त्यजन से, अवरुद्ध करने, प्रत्यर्थी को, व्यथित व्यक्ति के लिए उसी स्तर की आनुकल्पिक वास सुविधा जैसी वह साझी गृहस्थी में उपयोग कर रही थी या उसके लिए किराये का संदाय करने का आदेश पारित कर सकता है।

इस धारा में यह भी प्रावधानित है कि किसी व्यक्ति, जो महिला है, के विरुद्ध कोई आदेश पारित नहीं किया जायेगा। उपधारा (2) मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त शर्त अधिरोपित करने एवं व्यथित व्यक्ति या उसके संतान की सुरक्षा के लिए कोई अन्य आदेश करने के लिए सशक्त करती है। उपधारा (3) प्रत्यर्थी द्वारा घरेलू हिंसा किये जाने का निवारण करने के लिए बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए प्रावधान करती है।

उपधारा (5) मजिस्ट्रेट को सम्बन्धित थाने के भार साधक अधिकारी को व्यथित व्यक्ति को संरक्षण देने के लिए या निवास आदेश के क्रियान्वयन में उसकी सहायता के लिए निर्देश देने की आज्ञा देने हेतु सशक्त करती है। इस धारा में यह भी प्रावधानित है कि मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी को किराया एवं अन्य भुगतान करने एवं व्यथित व्यक्ति को उसके स्त्रीधन या मूल्यवान प्रतिभूति जिसकी वह अधिकारिणी है, देने की बाध्यता भी अधिरोपित कर सकता है।

यह तथ्य कि धारा 19 को उपधारा (1) के लिए अधिनियमित परन्तुक प्रदर्शित करता है कि धारा 19 को उपधारा (1) के कुछ अन्य खण्डों के अधीन, खण्ड (ख) के सिवाय, ऐसी महिला के विरुद्ध, आदेश पारित किया जा सकता है, जो पति या पुरुष भागीदार की नातेदार है जिसको धारा 2 (घ) का परन्तुक प्रयोज्य है। यदि धारा 2 (घ) के परन्तुक का इस प्रभाव का संकीर्ण निर्वचन किया जाय कि इसमें निर्दिष्ट नातेदार केवल पुरुष नातेदार होंगे तो धारा 19 को उपधारा (1) का उपरोक्त परन्तुक अर्थहीन हो जाएगा। यदि इसे स्वीकृत कर लिया जाता है कि यदि धारा 19 के अधीन, किसी भी मामले में अनुतोष महिला के विरुद्ध अनुदत्त नहीं किया जा सकता है, तब उपधारा (1) का उक्त परन्तुक अर्थहीन हो जाता है।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 को धारा 2 (थ) के परन्तुक में निर्दिष्ट "नातेदार" में पुरुष शब्द कभी प्रयुक्त नहीं रहा है जबकि मुख्य प्रावधान में "पुरुष" शब्द प्रयुक्त किया गया है। इसलिए यह निष्कर्पित करने में कोई परेशानी नहीं होगी कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2 (घ) के परन्तुक में प्रयुक्त पति के नातेदार" शब्द महिला नातेदार को भी शामिल करेगा।

इस अवधारणा को अग्रेतर घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 19 की उपधारा (1) के परन्तुक से प्रबल मिलता है जहाँ विधानमण्डल ने यह स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के निबन्धनों में किसी व्यक्ति के विरुद्ध जो महिला है आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

जयदीपसिन्ह प्रभातसिन्ह झाला बनाम स्टेट ऑफ गुजरात, 2010 के मामले में कहा गया है कि धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन मजिस्ट्रेट को साझी गृहस्थी से स्वयं को हटाने के लिए प्रत्यर्थी को निर्देशित करने की शक्ति है। उपधारा (1) का परन्तुक, हालांकि कथित करता है कि अधिनियम के खण्ड (ख) के अधीन कोई आदेश ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध पारित नहीं किया जायेगा जो कि महिला हो।

दूसरे शब्दों में, अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (क) एवं (ग) से (च) के अधीन अन्य आदेश किसी व्यक्ति के विरुद्ध प्रस्तुत मामले में महिला के विरुद्ध पारित किये जा सकते हैं। इसे भी इंगित किया जा सकता है कि धारा 19 की उपधारा (1) के (क) से (च) के सभी खण्ड के अधीन मजिस्ट्रेट को, प्रत्यर्थी को कतिपय निर्देश देने को शक्ति है। इस प्रकार, धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अलावा सभी मामलों में, मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी के विरुद्ध समुचित आदेश पारित कर सकता है भले ही प्रत्यर्थी महिला हो।

निवास आदेश पारित करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति अधिनियम की धारा 19 मजिस्ट्रेट पर यह समाधान होने पर कि घरेलू हिंसा घटित हुई है निवास आदेश पारित करने को शक्ति प्रदत्त करती है। ऐसा आदेश प्रत्यर्थी को व्यथित व्यक्ति को साझी गृहस्थी से बेकब्जा करने या उसके कब्जे को व्यवधानित करने से रोकने, उसे या उसके नातेदार को साझी गृहस्थी के उस भाग में जाने से जहां व्यक्ति रहता है उसे रोकने, साझी गृहस्थी के अन्य संक्रामण करने या व्ययनित करने, साझी गृहस्थी में अपने अधिकार त्यजन से अवरुद्ध करने का आदेश एवं प्रत्यर्थी का साझी गृहस्थी से हटाने का निर्देश या व्यथित व्यक्ति के उसी स्तर की वैकल्पिक वास सुविधा सुनिश्चित करना जो वह साझी गृहस्थी में उपयोग कर रही थी या उसके लिए किराये के भुगतान का निर्देश दे सकती है।

व्यथित व्यक्ति के लिए वैकल्पिक आवास अधिनियम की धारा 19 के अधीन, धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन पर विचार करते समय, मजिस्ट्रेट यह समाधान होने पर, कि घरेलू हिंसा हुई है, उक्त धारा के खण्ड (क) से (च) तक के अधीन निवास आदेश पारित कर सकता है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, वह प्रत्यर्थी व्यथित व्यक्ति के लिए वैकल्पिक आवास के उसी स्तर को सुनिश्चित करने के लिए, जैसा कि उसके द्वारा साझी गृहस्थी में उपभोग किया गया था या उसके लिए किराये का भुगतान करने के लिए निर्देश देते हुए आदेश पारित कर सकेगा।

समीर विद्यासागर भरद्वाज बनाम नन्दिता समीर भरद्वाज के वाद में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट दम्पत्ति को साझी गृहस्थी से हटा सकता है मजिस्ट्रेट इस बात का समाधान हो जाने पर कि घरेलू हिंसा हुई है, दम्पत्ति को साझी गृहस्थों से हटा सकता है।

भले ही अधिनियम के लागू होने के पूर्व पक्षकारगण के मध्य अलगाव हो चुका था, व्यथित व्यक्ति को निवास करने के अधिकार एवं भरण-पोषण के अधिकार इत्यादि के आर्थिक दुरुपयोग की वंचना अधिनियम के पूर्व एवं बाद में जारी थी एवं इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि माँ को अधिनियम के लागू होने के बाद घरेलू हिंसा के बाद को जारी रखने का कोई वाद हेतुक नहीं था।

निःसन्देह प्रत्यर्थी को परिभाषा में परन्तुक है। परन्तुक व्यथित व्यक्ति नातेदार के विरुद्ध शिकायत करने का विकल्प प्रदान करता है। 'नातेदार' शब्द अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अलावा, जिसमें कोर्ट को प्रत्यर्थी या उसके किसी नातेदार को साझी गृहस्थों के किसी भाग में जहां व्यथित व्यक्ति रहता है प्रवेश करने से अवरुद्ध करने की शक्ति प्राप्त है, अधिनियम के किसी अन्य प्रावधानों में निर्दिष्ट नहीं है।

धारा 19 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) एवं धारा 19 की उपधारा (1) के परन्तुक के प्रावधान के वाचन से, जो धारा 19 (1) (ख) के अधीन किसी महिला के विरुद्ध आदेश पारित करने से प्रतिषिद्ध करती है, साझी गृहस्थी से प्रत्यर्थी को हटाने का निर्देश जारी करने से सम्बन्धित है, परन्तु यह परन्तुक के आधार पर महिला को छोड़ती है। अधिनियम की धारा 17 साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार को व्यवहत करती हैं एवं अधिनियम की धारा 17 के अधीन प्रत्येक महिला, जो घरेलू नातेदारी में है उसे साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार है।

इन प्रावधानों का समेकित निर्वाचन प्रदर्शित करता है कि महिला साझी गृहस्थी में निकाले जाने से संरक्षित की गई है, उसे निवास का अधिकार एवं अधिनियम की धारा 18, 20, 21 एवं 22 के अधीन अन्य अनुतोष जो दिये जा सकते हैं प्रत्यर्थी के विरुद्ध निर्देशित है जिससे व्यथित व्यक्ति के घरेलू नातेदारी का वयस्क पुरुष सदस्य तात्पर्यित है न कि कोई अन्य इस प्रकार, अधिनियम के प्रावधानों के निर्वाचन से जैसा कि इसका साधारण प्रावधान प्रदर्शित करता है कि प्रावधान व्यथित व्यक्ति को किसी अन्य महिला के विरुद्ध शिकायत दाखिल करने का कोई अधिकार प्रदान नहीं करता है। 

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