संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 41: समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 111 एक वृहद धारा है। इस धारा के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिन पर किसी पट्टे का पर्यवसान होता है। उन आधारों में से एक आधार समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान भी है।
इस आलेख के अंतर्गत धारा 111 के खंड (छ) पर जो समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान के संबंध में उल्लेख कर रहा है, विस्तार पूर्वक व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।
समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान [ धारा 111 (छ) ]
यह खण्ड उपबन्धित करता है कि-
(i) उस दशा में जबकि पट्टेदार किसी ऐसी अभिव्यक्त शर्त को भंग करता है जिससे यह उपबन्धित है कि उक्त शर्त के भंग होने पर पट्टाकर्ता पुनः पट्टा सम्पत्ति में प्रवेश कर सकेगा; या
(ii) उस दशा में, जबकि पट्टेदार किसी अन्य व्यक्ति का हक खड़ा करके या यह दावा करके कि वह स्वयं हकदार है, अपनी पट्टेदारी हैसियत का त्याग करता है; या
(iii) जबकि पट्टेदार न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और पट्टा यह उपबन्ध करता है कि पट्टाकर्ता ऐसी घटना के घटित होने पर पुनः प्रवेश कर सकेगा: और इनमें से कोई घटना घटित होती है तो पट्टाकर्ता या उसका अन्तरिती पट्टेदार का पर्यवसान करने के अपने आशय की लिखित सूचना देगा तथा पट्टे का पर्यवसान हो सकेगा।
इस खण्ड में वर्णित सिद्धान्त साम्या का एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति एक ही संव्यवहार को स्वीकार एवं अस्वीकार एक साथ नहीं कर सकता है। यह खण्ड जब्तीकरण या समपहरण द्वारा पट्टे के पर्यवसान के सम्बन्ध में सिद्धान्त प्रतिपादित करता है।
इसमें तीन विशिष्ट परिस्थितियों का उल्लेख हुआ है जो निम्नवत हैं-
(1) अभिव्यक्त शर्त का पट्टेदार द्वारा भंग-
यदि पट्टा के सृजन के समय पट्टाकर्ता पट्टेदार पर कोई अभिव्यक्त शर्त आरोपित करता है तथा पट्टेदार उस शर्त को पूर्ण नहीं करता है या पूर्ण करने में असफल हो जाता है तो यह माना जाएगा कि पट्टेदार द्वारा शर्त भंग कर दी गयी है तथा शर्त के भंग होने के साथ ही साथ पट्टाकर्ता को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह पट्टेदार को नोटिस दे कर पट्टे का पर्यवसान करा दे।
यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि अभिव्यक्त शर्त का पट्टाकर्ता द्वारा उल्लंघन होने या भंग होने की दशा में पट्टेदार को यह अधिकार नहीं प्राप्त है कि वह पट्टे का पर्यवसान कर सके। पट्टेदार ऐसी स्थिति में केवल क्षतिपूर्ति की मांग कर सकेगा अभिव्यक्त शर्त के भंग होने पर पट्टाकर्ता तभी पट्टा का पर्यवसान कर सकेगा जबकि पट्टा विलेख में यह उपबन्धित हो कि शर्त के भंग होने पर पट्टाकर्ता पुनः प्रवेश कर सकेगा।
समपहरण को प्रभावी बनाने हेतु यह आवश्यक है कि लगायी गयी शर्त वैध हो महाराजा आफ जयपुर बनाम रुक्मिनी के वाद में प्रिवी कॉसिल ने अभिप्रेक्षित किया था कि पट्टाकर्ता द्वारा पट्टेदार पर लगायी गयी यह शर्त कि वह औपचारिक अवसरों पर उपस्थित रहेगा का उल्लंघन जब्तीकरण के कारक के रूप में प्रभावी नहीं होगा।
इस प्रयोजन हेतु अभिव्यक्त शर्त से यह अभिप्रेत नहीं है कि शर्तों का उल्लेख किसी विशिष्ट शब्द का प्रयोग करते हुए हो या विशिष्ट प्रारूप में हो। इतना पर्याप्त होगा कि शर्त का निष्कर्ष विलेख की शब्दावली से निकाला जा सके, उन्हें उनका साधारण अर्थ देते हुए जिससे कि न्यायालय को यह सुनिश्चित हो सके कि उक्त शर्त प्रसंविदा का भाग थी। पक्षकारों के बीच तथा उनके द्वारा इसे उसी रूप में समझा गया था।
इस बिन्दु के अन्तर्गत निम्नलिखित विचारणीय हैं-
(क) अन्तरण के विरुद्ध शर्त-सम्पति अन्तरण अधिनियम की धारा 10 उपबन्धित करती है कि पट्टे के प्रकरण में अन्तरण के विरुद्ध कोई शर्त ये है यदि यह पट्टाकर्ता या उसके अध्यधीन मांग करने वाले के लाभ के लिए है।
इसके अन्तर्गत यह अभिनिर्णीत हुआ है कि अन्तरण के विरुद्ध वैध शर्त भी जब्तीकरण हेतु कारण के रूप में प्रभावी नहीं होगी। अतः इसका (शर्त का) उल्लंघन कर दिया गया अन्तरण इसे (अन्तरण को) अप्रभावी नहीं बनायेगा। इसके लिए आवश्यक है कि पट्टा विलेख में इस आशय की प्रसंविदा हो कि शर्त के उल्लंघन की दशा में पट्टाकर्ता सम्पत्ति में पुनः प्रवेश कर सकेगा।
इस प्रयोजन हेतु अन्तरण के विरुद्ध शर्त से अभिप्रेत है पक्षकारों के कृत्य द्वारा अन्तरण के विरुद्ध शर्त न कि विधि के प्रवर्तन अथवा डिक्री के निष्पादन द्वारा अन्तरण के विरुद्ध शर्त अन्तरण के विरुद्ध शर्त का उस दशा में भंग नहीं माना जाएगा जबकि केवल पट्टा सम्पत्ति के एक भाग का अन्तरण हो रहा हो अथवा कई पट्टेदारों में से केवल एक द्वारा अन्तरण किया गया हो।
शर्त का उल्लंघन तब भी नहीं माना जाएगा जबकि अन्तरण वैध एवं प्रभावी न हो। यदि प्रसंविदा में उल्लिखित शर्त किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के पक्ष में अन्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है तो इसका उल्लंघन उस स्थिति में नहीं माना जाएगा जब एक पट्टेदार द्वारा अपने हित का अन्तरण सह बन्धकदार के पक्ष में हुआ हो।
यदि पट्टा विलेख में यह व्यवस्था की गयी हो कि पट्टादार यदि सम्पत्ति के सम्बन्ध में उपपट्टा का सृजन करेगा तो पट्टा का अवसान समझा जाएगा। ऐसी स्थिति में पट्टादार द्वारा पट्टाकर्ता की अनुमति के बिना सम्पत्ति का उपपट्टा सृजित करना तथा उसे भागीदारी का नाम देना उसके हित को बचाये रखने हेतु पर्याप्त नहीं होगा। भागीदारी का सृजन भी पट्टाकर्ता की अनुमति से होना चाहिए।
(ख) किराया या भाटक का भुगतान न होना- पट्टा विलेख में यह प्रसंविदा पक्षकार कर सकेंगे कि किराया का निर्धारित समयानुसार भुगतान हो और यदि ऐसा नहीं होता है तो इसे शर्त का उल्लंघन माना जाएगा और यदि पट्टेदार ऐसा करने में विफल रहता है तो पट्टाकर्ता पट्टे का समपहरण कर सकेगा। पर यह आवश्यक होगा कि प्रसंविदा में शर्त के भंग होने की दशा में पुनः प्रवेश का अधिकार पट्टाकर्ता के पक्ष में आरक्षित हो। इस आशय का इंग्लिश विधि में प्रचलित कठोर नियम भारत में प्रभावी नहीं है।
(ग) पट्टेदार द्वारा अतिक्रमण- यदि पट्टेदार एक ऐसे भवन का एक हिस्सा धारण कर रहा है जो पट्टा विलेख में उल्लिखित नहीं है तो पट्टेदार का यह कृत्य पट्टेदारी शर्त का उल्लंघन नहीं होगा। वह अनाधिकृत रूप में काबिज अंश का मात्र अतिचारी होगा।
(घ) पट्टाकर्ता द्वारा शर्त का उल्लंघन - यह प्रावधान पट्टाकर्ता द्वारा पट्टा शर्त की पट्टाकर्ता द्वारा उल्लंघन की दशा में पट्टेदार को यह प्राधिकार नहीं प्रदान करता है कि वह पट्टे का समपहरण करे। पट्टेदार पट्टा को समाप्त नहीं करा सकेगा इस आधार पर कि पट्टाकर्ता ने शर्त का उल्लंघन किया हैं।
उदाहरण के लिए यदि पट्टाकर्ता ने सम्पत्ति का पट्टा देते समय शौचालय बनवाने का वचन दिया था या प्रथम तल पर एक कक्ष बनवाने का वचन दिया था या कुआँ खुदवाने का वचन दिया था पर वचन का अनुपालन नहीं करता है तो पट्टेदार इस आधार पर पट्टा संविदा का समपहरण नहीं करा सकेगा।
पट्टे का समपहरण या जप्ती केवल पट्टाकर्ता अथवा उसके विधिक प्रतिनिधि या समनुदेशिती के लाभ के लिए होगा किसी अन्य व्यक्ति के लिए नहीं खान एवं खदान (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 के अन्तर्गत सृजित खनिजो हेतु पटटा, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के क्षेत्र विस्तार से बाहर है अत: ऐसे पट्टों के सम्बन्ध में धारा 111 प्रवर्तनीय नहीं है।
शर्त एवं निबंन्धन में विभेद-
इन दोनों ही परिस्थितियों में विभेद होता है। शर्त तब अतित्य में आती है जब पट्टाकर्ता एक निश्चित कालावधि के लिए पट्टा प्रदान करता है परन्तु इसमें एक उपबन्ध होता है जो पट्टा के पर्यवसान हेतु एक विशिष्ट घटना का उल्लेख करता है।
इसके वि निबन्धन में उल्लिखित घटना प्राइमरी फार्मूला में परिवर्तित हो जाती है जो उस कालावधि का निर्धारण करती है जिसके लिए पट्टा अस्तित्व में रहेगा तथा घटना के घटित होने पर पट्टे का स्वमेव पर्यवसान हो जाएगा क्योंकि निर्धारित पट्टा अवधि समाप्त हो चुकी है। निर्बन्धन में समपहरण का प्रश्न नहीं उठता है।
यह सम्भव है कि पट्टे में उल्लिखित कोई शर्त दोहरे गुणों से युक्त हो। एक गुण प्रसंविदा हो तथा दूसरी शर्त जिसमें उल्लंघन की दशा में भू-स्वामी को मात्र एक उपचार उपलब्ध होगा और वह हैं पट्टा।
(2) हक के नकारने के कारण समपहरण-
इन्कार शब्द से अभिप्रेत है पट्टेदार द्वारा अपनी पट्टाजनित हैसियत का परित्याग कर एक अन्य व्यक्ति में सम्पत्ति का स्वामित्व निहित होना बताना या उक्त हित को स्वयं का हित बताना।
'स्वत्व का इन्कार' गठित करने के लिए प्रत्यक्ष इन्कार होना चाहिए। पट्टेदार एवं पट्टाकर्ता के सम्बन्ध में स्पष्टतः इन्कार करे अथवा एक पृथक आधार पर सम्पत्ति को धारण करने का दावा प्रस्तुत करें जो आधार पट्टेदार एवं पट्टाकर्ता के वर्तमान सम्बन्ध के ठीक प्रतिकूल हो एवं जो विवक्षा द्वारा पूर्व पट्टेदार के सम्बन्धों को इन्कार करता हो।
अतः इन्कार एक पक्षकार द्वारा अपनी स्थिति को नकार देना है या तो यह बताकर कि सम्पत्ति का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति में है या यह कहकर कि उक्त सम्पत्ति का स्वामी स्वयं में है। इन्कार सुस्पष्ट एवं भ्रमरहित शब्दों में होना चाहिए।
यह भी आवश्यक है कि ऐसा इन्कार पट्टाकर्ता के संज्ञान में होना चाहिए। अतः पट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता से यह कहना कि आप मेरे भू-स्वामी या मकान मालिक नहीं हैं, मैं किसी का पट्टेदार नहीं हूँ हक को इन्कार हैं।
उन प्रान्तों में जिनमें सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम प्रवर्तनीय नहीं है, भूस्वामी के हित को नकारना जब तक कि यह कृत्य किसी न्यायिक कार्यवाही में न हो अथवा अन्य लोक दस्तावेजों जो 'अभिलेख' की परिभाषा के अन्तर्गत आता हो में न हो. समपहरण को प्रभावी बनाने हेतु पर्याप्त नहीं होगा।
पट्टा की शर्तों को नकारना और अधिक सूचना मांगना' या लैण्ड लार्ड से यह कहना वह पट्टा सम्पत्ति पर अपना हक साबित करे; पट्टाकर्ता के पट्टा सम्पत्ति में के हित की सीमा को नकारना" पट्टाकर्ता के हित को ऐसे बाद में नकारना जिसमें वह पक्षकार न हो; सह पट्टेदार में हित बताना। कबूलियत के निष्पादन को नकारना किराया अदा न करना।
पट्टेदारों का त्याग कर देना; पट्टाजनित हित का अन्तरण कर देना; सहपट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता के हित को नकारना; पट्टा सम्पत्ति के समनुदेशन के पश्चात् पट्टाकर्ता के हित को नकारना, समपहरण हेतु पर्याप्त आधार नहीं है।
पट्टाकर्ता, पट्टा का अवसान इनमें से किसी भी एक आधार पर नहीं करा सकेगा। किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता है कि वह पट्टेदार भी बना रहे तथा उसी समय पट्टाकर्ता के हित को चुनौती भी दे।
हक के नकार का प्रभाव- इस सन्दर्भ में साधारण नियम यह है कि पट्टेदार जो पट्टाकर्ता के हित को नकार रहा है, उसका तुरन्त निष्कासन पट्टाकर्ता के विकल्प पर किया जा सकेगा। ऐसी स्थिति में वह खाली करने हेतु नोटिस की मांग करने के लिए प्राधिकृत नहीं है और न हो पट्टा विलेख में उल्लिखित किसी नोटिस के लिए प्राधिकृत है क्योंकि नकार के फलस्वरूप पट्टेदार ने नोटिस पाने के अपने अधिकार का परित्याग कर दिया हुआ समझा जाएगा।
बेस्ट सो० जे० ने डो बनाम फ्राड के वाद में सुस्पष्ट कर दिया था कि :-
"नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी उसे समाप्त करने के लिए जिसके लिए वह (पट्टेदार) कहता है कि अस्तित्ववान नहीं है।" फूलन देवी बनाम आनन्द स्वरूप के वाद में भी इसी वस्तुस्थिति को स्वीकृति प्रदान को गयी थी कि यदि एक पट्टेदार अपने पट्टाकर्ता के हित को नकारता है और अपने आप को सम्पत्ति का स्वामी घोषित करता है तो वह यह अभिवचन नहीं कर सकेगा कि उसे छोड़ने की नोटिस नहीं दी गयी थी।
यदि किराये की बकाया रकम के भुगतान हेतु पट्टाकर्ता द्वारा पट्टेदार को नोटिस दी गयी थी तथा पट्टेदार ने उक्त नोटिस का कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया तो यह नहीं कहा जा सकेगा कि यह पट्टाकर्ता के हित को नकारने के लिए अभिव्यक्त घोषणा थी।
पट्टाकर्ता के हित का नकारा जाना जिसके आधार पर पट्टेदार को निष्काषित करने हेतु बाद संस्थित किया जा सकेगा, बेदखली हेतु वाद संस्थित करने से पूर्व किया जाना चाहिए। पढ़ेदार के अभिकथन में उल्लिखित नकार को आधार नहीं बनाया जा सकेगा। पट्टेदार को पट्टा सम्पत्ति से वेदखल करने हेतु। परन्तु किराया पाने हेतु संस्थित बाद में पट्टाकर्ता के हित को नकारना समपहरण हेतु पर्याप्त आधार होगा
पट्टे का समपहरण पट्टाकर्ता का हित नकारने के अतिरिक्त शर्त भंग पर दिवालियेपन को स्थिति में भी होता है अतः इन तीनों ही स्थितियों में समपहरण के प्रयोजनार्थ पट्टाकर्ता द्वारा पट्टेदार को लिखित नोटिस देना अति आवश्यक होगा जिससे यह सुस्पष्ट हो सके कि पट्टाकर्ता की मंशा उक्त पट्टा को समाप्त करने की है।
इन तीन परिस्थितियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी स्थिति में समपहरण या जब्ती नहीं हो सकेगी, किन्तु इस आशय का मजबूत साक्ष्य उपलब्ध होना चाहिए कि पट्टाकर्ता ने पट्टा को समपहरण द्वारा समाप्त करने के आशय से पट्टेदार को नोटिस दे दी थी अन्यथा यह माना जाएगा कि समपहरण की सूचना नहीं दी गयी थी एवं पट्टे का जब्तीकरण नहीं हो सकेगा 16 ऐसे मामलों में न्यायालय के लिए यह समीचीन होगा कि बाद संस्थित होने के बाद को परिस्थिति एवं घटनाओं को भी संज्ञान में ले क्योंकि ये तथ्य भी वाद पत्र में मांगे गये उपचारों को प्रदान करने हेतु अतिरिक्त आधार प्रस्तुत करते हैं।
धारा 111(छ) में जैसी कि नोटिस अपेक्षित है उसका उद्देश्य केवल पट्टाकर्ता की मंशा कि वह पट्टे को समाप्त करना चाहता है, को प्रकट करना है न कि पट्टा के समपहरण के आधारों को प्रवृत्त करना है।
यदि पट्टेदार लिखित अभिकथन में समपहरण, स्वत्व या हित इन्कार के आधार पर उठाता है तो इसे पाश्चिक घटना माना जाएगा जो पट्टे के जप्ती हेतु अतिरिक्त आधार प्रस्तुत करेगा जिसे न्यायालय संज्ञान में रूप में पट्टेदार के निष्कापन हेतु निष्काषन का आदेश पारित करते समय पर यदि पट्टेदार के निष्काषन हेतु जब्तीकरण का वाद संस्थित किया गया है, धारा 111 (छ) में वर्णित आधारों से भिन्न अन्य आधारों पर जैसे पट्टा की अवधि की समाप्ति पर तो ऐसे वाद में पट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता के हित को लिखित अभिकथन में नकारना जब्तीकरण के आधार पर निष्काषित करने हेतु आधार प्रस्तुत नहीं करेगा।
पट्टेदार द्वारा पट्टाकर्ता के हित का नकारा जाना-
विबन्धन-
धारा 116 साक्ष्य अधिनियम उपबन्धित करती है कि स्थावर सम्पत्ति का कोई भी पट्टेदार या ऐसे पट्टेदार के अध्यधीन दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति पट्टेदारों की निरन्तरता के दौरान प्राधिकृत नहीं होगा यह इन्कार करने से कि ऐसे पट्टेदार का पट्टाकर्ता, पट्टेदारों के प्रारम्भ के समय पट्टा सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त था। प्रिवी कौंसिल ने यह अभिनिर्णीत किया है कि भले ही पट्टे का पर्यवसान निर्धारित पट्टा अवधि की समाप्ति के साथ हो गया है तो ऐसा पट्टेदार जिसे सम्पत्ति का कब्जा अपने भूस्वामी के हित को इन्कार नहीं कर सकेगा।
साक्ष्य अधिनियम की धारा 116 के अन्तर्गत जब तक कि उसने प्रकट रूप में पट्टाकर्ता के पक्ष में सम्पत्ति का समर्पण न किया हो । पट्टाकर्ता का हित पट्टा सम्पत्ति में चाहे कितना हो दोषपूर्ण क्यों न हो विशेषकर पट्टा के सूजन के दौरान पट्टेदार को यह अधिकार नहीं होगा कि वह उक्त दोषपूर्ण हित का लाभ उठाये।
यदि पट्टेदार ने 'क' से पट्टा सम्पत्ति प्राप्त नहीं किया है फिर भी यदि उसके एवं 'क' के बीच पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार का सम्बन्ध स्थापित हो गया है तो पट्टेदार 'क' के हित को नकार नहीं सकेगा। पट्टेदार का एक उपपट्टादार या समनुदेशिनी या कोई अन्य व्यक्ति जो पट्टेदार से दुरधिपूर्ण सन्धि के अन्तर्गत पट्टा सम्पत्ति पर आता है यह भी पट्टेदार के विरुद्ध जारी विबन्धन से बाध्य होगा तथा मूल पट्टाकर्ता के हित को नकार नहीं सकेगा पर पट्टेदार यह तर्क कभी भी प्रस्तुत कर सकेगा कि पट्टाकर्ता का हित समाप्त हो गया है तभी से जब से उनके बीच पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार का सम्बन्ध स्थापित हुआ था। चूंकि पट्टेदार पट्टाकर्ता के हित को नकार नहीं सकता है अतः यह सम्पत्ति में उसका हित पट्टेदारी को निरन्तरता के दौरान पट्टाकर्ता के प्रतिकूल नहीं होगा।
पट्टेदार के दिवालिया होने पर समपहरण- सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 12 पैरा 2 में यह उपबन्धित है कि इस धारा (धारा 12) की कोई बात पट्टे की किसी ऐसी शर्त पर लागू न होगी जो पट्टाधारी या उसके व्युत्पन्न अधिकाराधीन दावा करने वाले के फायदे के लिए हो।
अतः यदि पट्टा विलेख में ऐसी शर्त सम्मिलित है जो पट्टाकर्ता को प्राधिकृत करती है कि वह पट्टेदार के दिवालिया होने की स्थिति में पट्टे का समपहरण कर सकेगा तथा पट्टेदार वस्तुतः दिवालिया घोषित हो जाता है तो पट्टाकर्ता को यह अधिकार होगा कि वह पट्टेदार को नोटिस देकर पट्टे का अवसान कर दे।
अनेक बार पट्टेदार दिवालिया होने से पूर्व अपनी पट्टाधृति में हित अन्य को अन्तरित कर देता है उस स्थिति में पट्टा सम्पत्ति का समपहरण होगा या नहीं, यह प्रश्न उठ खड़ा होता है। इसका समाधान कलकत्ता उच्च न्यायालय ने प्रस्तुत किया है। इस मामले में पट्टा विलेख में यह शर्त उल्लिखित थी कि पट्टेदार के दिवालिया होने पर पट्टाकर्ता पट्टा सम्पत्ति में पुनः प्रवेश कर सकेगा।
पर पट्टेदार के विरुद्ध पारित के निष्पादन में एक अन्य व्यक्ति ने पट्टेदार का हित क्रय कर लिया। तत्पश्चात् पट्टेदार दिवालिया घोषित हो गया। प्रश्न यह था कि क्या पट्टाकर्ता पट्टे का समपहरण कर सकेगा। परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय ने यह निर्णत किया कि पट्टे की शर्त के प्रयोजनार्थ मामले की परिस्थितियों के आधार पर वस्तुतः वह अन्य व्यक्ति पट्टेदार है न कि वह व्यक्ति जो दिवालिया घोषित किया गया है। चूंकि वह अन्य व्यक्ति दिवालिया घोषित नहीं किया गया है अतः पट्टाकर्ता समपहरण या जब्ती की कार्यवाही नहीं कर सकेगा।
यदि पट्टाकर्ता द्वारा नोटिस रजिस्टर्ड पत्र द्वारा पट्टेदार के सही पते पर भेजी गयी है तो यह माना जाएगा कि नोटिस की प्रभावी ढंग से तामील की गयी है। यदि नोटिस की जाब्ती वापस पट्टाकर्ता को प्राप्त हो जाती है जिस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर हैं।
यदि नोटिस सभी सहपट्टेदारों को भेजी गयी थी और उनमें से एक सहपट्टेदार द्वारा नोटिस प्राप्त किए जाने की सूचना पट्टाकर्ता को प्राप्त हो जाती है। तो यह समझा जाएगा कि नोटिस सही पते पर भेजी गयी थी एवं नोटिस को सूचना सभी पट्टेदारों को हो गयी है।
साधारणतया एक पट्टाकर्ता तब तक वाद संस्थित करने के लिए सक्षम नहीं है जब तक कि वह जब्ती हेतु पट्टेदार को नोटिस नहीं दे देता, क्योंकि तब तक पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार के सम्बन्ध बने रहते हैं। पट्टे का अवसान करने के लिए पट्टाकर्ता द्वारा दी गयी केवल एक नोटिस पर्याप्त है।
द्वितीय नोटिस को आवश्यकता नहीं होती है नोटिस की तामील विधिक साक्ष्यों द्वारा साबित होनी चाहिए। पट्टेदार के एक अंश के समनुदेशिती को इस आशय की नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होती है।
यदि पट्टा विलेख में यह उपबन्धित है कि शर्त के भंग होने पर निष्कासन से पूर्व पट्टेदार को विधि के अनुसार नोटिस देना होगा तो पट्टेदार को तब तक बेदखल नहीं किया जा सकेगा जब तक के कि संविदा के अनुसार उसे नोटिस न दे दी गयी हो।
समय की समाप्ति द्वारा शाश्वत पट्टे का पर्यवसान- एक प्रकरण में पट्टेदार मूलतः पट्टा सम्पत्ति पर आया था एक शाश्वत पट्टेदार के रूप में 99 वर्ष की अवधि के लिए जो समय 1965 में समाप्त हो गया। इसके पश्चात् सरकार ने पट्टे का नवीकरण नहीं किया।
फलतः पूर्विक पट्टा समाप्त हो गया एवं पट्टाकर्ता एवं पट्टेदार का सम्बन्ध समाप्त हो गया। पट्टा की अवधि समाप्त होने के पश्चात् पट्टेदार उक्त सम्पत्ति पर अतिचारी के रूप में विद्यमान था भले ही कनिष्ठ अधिकारियों ने पट्टेदार से उक्त सम्पत्ति का किराया लेना जारी रखा हो।