संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 32: कौन व्यक्ति मोचन के लिए वाद ला सकते हैं तथा प्रत्यासन का क्या अर्थ है (धारा 91- 92)

Update: 2021-08-19 14:24 GMT

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 91 एवं 92 दोनों ही महत्वपूर्ण धाराएं हैं। इसकी पहली धारा के अंतर्गत मोचन के अधिकार के संबंध में उल्लेख किया गया है। जैसा कि इससे पूर्व के आलेख में न्यायालय में निक्षेप के माध्यम से मोचन के अधिकार के संबंध में उल्लेख किया गया था जो कि इस अधिनियम की धारा 90 से संबंधित है।

एक बंधककर्ता को अपनी संपत्ति पर मोचन का अधिकार प्राप्त होता है। बंधककर्ता के अलावा भी कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें मोचन का अधिकार प्राप्त है। धारा-91 उन्हीं व्यक्तियों का उल्लेख कर रही है इस धारा से संबंधित समस्त प्रावधान इस आलेख के अंतर्गत प्रस्तुत किए जा रहे हैं और उनसे संबंधित न्याय निर्णय का भी उल्लेख किया जा रहा है। इसके साथ ही इसी आलेख के अंतर्गत धारा-92 के अंतर्गत बताए गए प्रत्यासन के अर्थ को भी प्रस्तुत किया जा रहा है।

विधि बन्धककर्ता को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह बन्धक रकम का भुगतान कर बन्धक सम्पत्ति वापस प्राप्त करे। बन्धककर्ता का यह अधिकार मोचनाधिकार कहलाता है। मोचनाधिकार की विवेचना अधिनियम की धारा 60 में की गयी है।

धारा 91 उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में प्रावधान करती है जो मोचन हेतु वाद ला सकेंगे या बन्धक सम्पत्ति का मोचन करा सकेंगे।

इसके अनुसार बन्धककर्ता के अतिरिक्त निम्नलिखित अन्य व्यक्ति भी बन्धक सम्पत्ति को मोचन करा सकेंगे अथवा मोचन कराने हेतु वाद संस्थित कर सकेंगे-

(1) कोई व्यक्ति जिसका उस बन्धक सम्पत्ति में कोई हित या पर भार है, सिवाय उस हित के बन्धकदार जिसका मोचन कराया जाना है- (खण्ड-क)

(2) कोई व्यक्ति जिसका मोचन अधिकार में कोई हित या पर भार है (खण्ड-क)

(3) बन्धक धनराशि या उसके किसी भाग के भुगतान के लिए उत्तरदायी कोई प्रतिभू (खण्ड-ख)

(4) बन्धककर्ता का कोई लेनदार जिसने उसकी सम्पदा के प्रशासन के लिए वाद में उस बन्धक सम्पत्ति के विक्रय के लिए डिक्री अभिप्राप्त की है (खण्ड ग)

यह धारा इस बाबत कुछ भी नहीं स्पष्ट करती है कि यदि अनेक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें मोचन कराने का अधिकार प्राप्त हैं तो वे किस क्रम में अपने इस अधिकार का प्रयोग करेंगे। यह धारा मात्र यह सुस्पष्ट करती है कि मोचन कराने के लिए कौन सक्षम व्यक्ति है। जो भी व्यक्ति सम्पत्ति का मोचन कराएगा वह उस बन्धकदार के अधिकारों को प्राप्त करेगा जिसको वह मोचित करेगा। इस धारा के अन्तर्गत मूल बन्धककर्ता एवं प्रतिस्थापित बन्धककर्ता दोनों ही सम्मिलित हैं।

1)- बन्धक सम्पत्ति में हित पर भार रखने वाला व्यक्ति कोई भी व्यक्ति जिसे बन्धक सम्पत्ति में कोई हित या भार प्राप्त है, वह उस सम्पत्ति का मोचन कराने के लिए हकदार है। सम्पत्ति में उसका हित बड़ा है या छोटा, यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है। एक तुच्छ हित रखने वाला व्यक्ति भी मोचन कराने के लिए सक्षम है।

इसी प्रकार एक ऐसा व्यक्ति जिसे बन्धक सम्पत्ति में कोई हित प्राप्त नहीं है, परन्तु उसे उस सम्पत्ति पर भार प्राप्त है अथवा मात्र मोचन के अधिकार पर में हित या पर भार प्राप्त है, मोचन कराने के लिए सक्षम है। एक बन्धकग्रहीता मोचन के अधिकार से युक्त नहीं है क्योंकि मोचन का अधिकार बन्धकग्रहीता के विरुद्ध ही प्रयोग में लाया जाता है।

इस प्रावधान के अन्तर्गत बन्धककर्ता का भूस्वामी भी मोचन अधिकार का प्रयोग करने में समर्थ है यदि उत्तराधिकारी विहीन पट्टाग्रहीता की मृत्यु हो जाती है तथा पट्टाजनित भूस्वामी में निहित हो जाती है।

पट्टाग्रहीता-बन्धककर्ता का पट्टाग्रहीता मोचन कर सकेगा। यह तब भी सम्भव हैं जबकि पट्टाग्रहीता पर बाध्यकारी नहीं है। यदि बन्धक का निष्पादन पहले होता है तदनन्तर पट्टा का सृजन किया जाता है उसी सम्पत्ति पर तो ऐसा पट्टाग्रहीता मोचन कराने का हकदार होगा, पर वह पट्टाग्रहीता जो बन्धक के पूर्व से सम्पत्ति पर है, मोचन कराने के लिए प्राधिकृत नहीं होगा न हो एक्स प्रोप्राइटरी टेनेन्टर तथा ऐसा टेनेन्ट जो एक निश्चित कालावधि के लिए हो ।

जहाँ बन्धक एक अक्यूपेंसो टेनेन्ट द्वारा सृजित किया गया था तथा इसके बाद टेनेन्ट ने, भूस्वामी को सम्मति से अपना अधिकार अन्य व्यक्तियों को हस्तान्तरित कर दिया तो ऐसे अन्तरिती बन्धक का मोचन कराने के हककार होंगे।

बन्धकदार, 12 वर्षों से अधिक समय तक कब्जा में बने रहने के कारण बन्धककर्ता के मोचन के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकेगा। जहाँ किसी सम्पत्ति का बन्धक किया गया है और बन्धक के पश्चात् उसे कुर्क कर बेंच दिया जाता है तो ऐसी सम्पत्ति का क्रेता बन्धक के मोचन के अधिकार से युक्त होगा।

अनेक सह बन्धककर्ताओं में से कोई भी एक मोचन करा सकेगा। इसी प्रकार निष्पादन क्रेता, चाहे वह सम्पूर्ण 10 या आंशिक। मोचनाधिकार का क्रेता हो, मोचन कर सकेगा।

नवी रसूल बनाम मोहम्मद मकसूद के वाद में एक सहअंशधारी ने भोग बन्धकदार को मोचित करने की प्रवंचना किया पर बन्धकदार ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि बन्धक से पूर्व वह एक पट्टाग्रहीता था।

अतः से वह मोचन के पश्चात् भी सम्पत्ति को अपने कब्जे में रखने के लिए प्राधिकृत है, पर वह पट्टा प्रमाणित करने में असमर्थ रहा। अतः उसे आदेश दिया गया कि वह मोचन पर सम्पत्ति का कब्जा मोचक को सौंप दे।

चेरियन सोसम्मा बनाम एस० पी० एस० अम्मा एवं अन्य के वाद में पट्टेदार बन्धकदार के पक्ष में सम्पति का बन्धक किया गया। बन्धक विलेख में यह उल्लिखित था कि पट्टेदार के अधिकार सुरक्षित हैं और बन्धक के निष्पादन के पश्चात् भी पट्टा जारी रहेगा इन तथ्यों के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने अभिनित किया कि बन्धक के समापन के पश्चात् भी बन्धकदार सम्पत्ति का पट्टादार के रूप में धारित करने का अधिकारी है और बन्धककर्ता सम्पत्ति का भौतिक कब्जा प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।

बन्धककर्ता के अतिरिक्त जो अन्य व्यक्ति मोचन करने के अधिकार से युक्त हैं, वे इसलिए प्राधिकृत किए गए हैं क्योंकि वे बन्धक सम्पत्ति में हित रखते हैं। धारा 59-क. जो सम्पत्ति अन्तरण संशोधन अधिनियम, 1929 द्वारा समावेशित किया गया है, इस स्थिति को सुस्पष्ट करती है।

परन्तु धारा 91 प्रारम्भ से ही इसी रूप में और न्यायालय ने इसे स्वीकृति भी प्रदान की है। अत: शब्द "बन्धककर्ता" से अभिप्रेत है ऐसे सभी व्यक्ति जो बन्धकर्ता से हित प्राप्त करते हैं और ये सभी व्यक्ति मोचन के अधिकारी हैं।

2. कोई व्यक्ति जिसे मोचन अधिकार में या पर कोई हित प्राप्त है - यदि किसी व्यक्ति ने मोचन अधिकार में या पर कोई हित प्राप्त कर लिया है तो वह बन्धक सम्पत्ति का मोचन कराने के लिए उसी प्रकार प्राधिकृत है जिस प्रकार स्वयं बन्धककर्ता क्योंकि ऐसा व्यक्ति बन्धककर्ता के अध्यधीन हित प्राप्त करता है, पर ऐसे व्यक्ति को मोचन का अधिकार नहीं होगा। बन्धकदार के वाद के सम्बन के दौरान, मोचनाधिकार का समनुदेशिती, विक्रय पूर्ण होने से पूर्व, मोचन कर सकेगा।

3. बन्धक ऋण या उसके किसी भाग के भुगतान के लिए प्रतिभू- एक प्रतिभू मोचन के अधिकार से युक्त है क्योंकि वह ऋण के लिए दायी है तथा ऋण के भुगतान पर वह ऋणदाता की समस्त प्रतिभूतियों का उपभोग करने के लिए सक्षम है। यह बन्धक का मोचन किसी भिन्न ऋण के लिए नहीं कर सकता है।

4. बन्धककर्ता का कोई लेनदार- यह खण्ड क्रिश्चियन बनाम फील्ड के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त पर आधारित है। इसके अनुसार यदि कोई वादी बन्धककर्ता को सम्पदा के प्रशासन हेतु संस्थित वाद में सम्पत्ति की बिक्री हेतु डिक्री प्राप्त कर चुका है तो उसे मोचन कराने का अधिकार होगा जिससे उसे डिक्री के अध्यधीन प्राप्त हो सके। लेनदार के हितों को संरक्षित करने हेतु यह एक अत्यन्त आवश्यक सिद्धान्त है।

प्रत्यासन- (धारा-92)

यह धारा प्रत्यासन के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। प्रत्यासन से तात्पर्य है किसी अन्य व्यक्ति (बदले में) का स्थान ग्रहण करना या उसके स्थान पर आसीन होना एवं उसके अधिकारों एवं दायित्वों से युक्त होना। उदाहरण के लिए यदि एक बंधक संव्यवहार में क बन्धकदार था और यदि क का स्थान ख विधि पूर्वक प्राप्त कर लेता है तो ख क को प्रत्यासित (प्रतिस्थापित) करता हुआ माना जाएगा।

क अपने मकान का बन्धक ख को 5,000 रु० में तत्पश्चात् ग को 4,000 रु० में और फिर घ को 4,000 रु० में करता है। एक ही सम्पत्ति (मकान) के ख, ग एवं घ तीन बन्धकदार हैं जिन्होंने क्रमश: 5,000 रु०, 4,000 रु० एवं 4,000 रुपये दिये थे।

बन्धक ऋण के रूप में प्रत्यासन का सिद्धान्त ग को प्राधिकृत करता है कि यदि वह चाहे तो 5,000 रु० जो ख ने क को बन्धक के रूप में दिया था का भुगतान ख को करके उसका स्थान प्राप्त कर ले ख को बन्धक धन का भुगतान करते ही ग को दो पृथक्-पृथक् बन्धकजन्य अधिकार प्राप्त हो जाएंगे।

एक 5,000 रु० के लिए जो उसने ख को अदा किया था तथा दूसरा 4,000 रु० के लिए जो उसने स्वयं क को अदा किया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये दोनों अधिकार युग्मित नहीं होंगे। पृथक्-पृथक् ही बने रहेंगे।

प्रत्यासन का सिद्धान्त सम्पत्ति विषयक आधुनिक विधि में सम्भवतः रोमन विधि से आया है जिसके अनुसार एक ऋणदाता ने जिसने बन्धकदार के भुगतान के प्रयोजन के लिए ऋण की रकम धन दिया था इस शर्त पर कि वह बन्धकदार का स्थान ग्रहण करेगा तो लाभ का दावा कर सकेगा जिसका भुगतान उसके द्वारा दी गयी रकम धन से हुआ था।

डायल बनाम स्मिथ के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया था कि प्रत्यासन, एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का स्थान ग्रहण करना है, विधि पूर्ण दावों, माँगों या अधिकारों के सन्दर्भ में जिससे वह व्यक्ति जो दूसरे के अधिकारों के लिए स्थानापन्न होता है वह दूसरे के ऋणों, दावों, अधिकारों, उपचारों एवं प्रतिभूतियों का प्रयोग करने के लिए समर्थ होता है।

यह एक परिकल्पना है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति जो न तो स्वैच्छिक रूप में, न ही अपने स्वयं के अधिकार के अध्यधीन एवं किसी उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ साम्या के अभाव में, दूसरे के ऋण का भुगतान करता है, वह उस दूसरे के समस्त अधिकारो एवं उपचारों का स्थानापन्न होता है तथा यह माना जाता है कि ऋण अभी भी स्थानापन्न व्यक्ति के लाभ हेतु विद्यमान है।

यह अर्थात् प्रत्यासन का सिद्धान्त इतना व्यापक है कि इसके अन्तर्गत ऐसे समस्त दृष्टान्त आते हैं जिनमें एक व्यक्ति उस ऋण का भुगतान करता है जिसके भुगतान का दायित्व प्रमुखतः किसी अन्य व्यक्ति पर होता है तथा जिसका उन्मोचन, साम्या एवं सद्भाव में, उस व्यक्ति द्वारा किया गया होता।

इस सिद्धान्त की आधारशिला यह है कि जो व्यक्ति इस सिद्धान्त का लाभ लेना चाहता है उसने ऋण का भुगतान कठिन परिस्थिति में अपने आप को हानि से बचाने के लिए किया होगा। एक स्वैच्छिक व्यक्ति इस सिद्धान्त का लाभ नहीं ले सकता हैं। प्रत्यासन एक साम्यिक उपचार है।

सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 92 में विधिक एवं पारम्परिक दोनों हो प्रकार के प्रत्यासन का वर्णन किया गया है। विधिक प्रत्यासन का वर्णन धारा के पैरा एक में किया गया है जबकि पारम्परिक प्रत्यासन का वर्णन पैरा तीन में किया गया है। विधिक प्रत्यासन तब अस्तित्व में आता है जब बन्धक ऋण का भुगतान एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसका बन्धक सम्पत्ति में कोई हित होता है और वह उसे बचाना चाहता है।

उदाहरण स्वरूप पाश्चिक बन्धकदार द्वारा पूर्विक बन्धकदार का ऋण अदा करना। इसके विपरीत परम्परागत प्रत्यासन वहां अस्तित्व में आता है जहाँ ऋण का भुगतान करने वाले व्यक्ति का बन्धक सम्पत्ति को बचाने में कोई हित नहीं रहता है, पर वह किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष संविदा के अन्तर्गत बन्धक धन का भुगतान करता है और इस कारण वह ऋणदाता के अधिकारों एवं उपचारों को धारण करता है।

विधिक प्रत्यासन-

धारा 92 पैरा एक के अनुसार विधिक प्रत्यासन निम्नलिखित चार प्रकारों से हो सकेगा-

(i) जबकि पाश्चिक उत्तरवर्ती बन्धकदार पूर्विक बन्धक का मोचन करे।

(ii) जबकि सह बन्धककर्ता बन्धक का मोचन करे।

(iii) जबकि बन्धककर्ता का प्रतिभू बन्धक का मोचन करे।

(iv) जबकि बन्धक के मोचनाधिकार को साम्या का क्रेता बन्धक का मोचन करे।

प्रत्यासन का अधिकार पूर्ववर्ती बन्धक बाण्ड, जिसका मोचन किया गया है एवं जीवित रखा गया है, को प्रवर्तित करने का पूर्ण अधिकार प्रदान करता है। अतः ऐसे अधिकार की माँग करने वाले व्यक्ति को पूर्ववर्ती बाण्ड को प्रवर्तित करने के लिए पूर्ण अधिकार प्राप्त होगा यहाँ तक कि उस सम्पत्ति के विरुद्ध भी, जो उसके पक्ष में जारी बाण्ड से आच्छादित नहीं है।

जहाँ कि बन्धक विभाजित है, उसे इस रूप में देखा जाना चाहिए कि वह विभिन्न खण्डों में है पृथक प्रतिफलों के साथ जो सम्पत्ति के पृथक्-पृथक् खण्डों को समनुदेशित है। परिणामस्वरूप यदि किसी भी खण्ड का पूर्णरूपेण मोचन होता है तो इस धारा के प्रावधानों का जहाँ तक उस खण्ड का प्रश्न है अनुपालन होगा।

अतः वह व्यक्ति, जिसे प्रत्यासन का अधिकार प्राप्त होता है बन्धक सम्पत्ति के उस खण्ड तक, सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22, नियम 10 के अन्तर्गत अपने अधिकार की सीमा तक एक डिक्री धारक के रूप में प्रतिस्थापित होगा।

जब एक सहबन्धककर्ता दूसरे सहबन्धककर्ता के विरुद्ध सम्पूर्ण बन्धक रकम का भुगतान करके प्रत्यासन का अधिकार प्राप्त करता है तो दूसरे सह-बन्धककर्ता के पक्ष में भी एक अधिकार सृजित होता है कि वह अपने भाग की सम्पत्ति का मोचन कर सके तथा पूर्विक सहबन्धककर्ता को अपने भाग के दायित्व का भुगतान कर सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने का हकदार होगा।

अमोचक सह बन्धककर्ता का तदनुरूप अधिकार पूर्णतया साम्यिक अधिकार है जिसका प्रयोग मोचक बन्धककर्ता, सहबन्धककर्ता के विरुद्ध करने के लिए प्राधिकृत हैं और यह अधिकार तब तक विद्यमान रहता है जब तक कि प्रत्यासन का अधिकार विद्यमान रहता है।

यह अधिकार इस सिद्धान्त से उद्धृत होता है कि वह बन्धक सम्पत्ति के अपने भाग के सम्बन्ध में प्रधान या मुख्य ऋणी होता है जबकि सह ऋणी के भाग के सम्बन्ध में वह मात्र एक प्रतिभू होता है और जब प्रतिभू ने समस्त बन्धक ऋण का भुगतान कर दिया है तो उसे अधिकार है कि वह उस समस्त प्रतिभूतियों को ग्रहण करे जिन्हें ऋणदाता धारण कर रहा था उस सीमा तक जिससे उसके उस रकम का भुगतान हो सके जो उसने अपने भाग के ऊपर एवं सामान्य बन्धक ऋण के उन्मोचन हेतु अतिरिक्त दिया था।

इस मामले में एक सह बन्धककर्ता ने जर पेशगी बन्धक की सम्पूर्ण रकम अदा किया था। विवादित प्रश्न यह था कि क्या वह मूल बन्धकदार का स्थान ग्रहण कर लेगा बन्धक की सम्पूर्ण रकम अदा करने के कारण।

न्यायालय ने अभिनिधारित किया कि बन्धक रकम अदा करने वाला सह बन्धककर्ता बन्धकदार का स्थान ग्रहण कर लेगा। उसकी मृत्यु की दशा में उसके उत्तराधिकारी इसका लाभ पाने के अधिकारी होंगे। बन्धक को मोचन करने वाला सह-बन्धकर्ता उन अन्य सभी बन्धककर्ताओं के अधिकारों को भी प्राप्त कर लेता है जो बन्धक का मोचन कराने में सहयोग नहीं देते हैं।

ये सम्पत्ति में के अपने अंश के समतुल्य, सहबन्धककर्ता को, जिसने बन्धक का मोचन किया है, भुगतान कर उससे बन्धक सम्पत्ति में से अपना अपना अंश प्राप्त कर सकते हैं।

एक मामले में अपीलार्थी वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध बन्धक के मोचन हेतु वाद संस्थित किया। बन्धक का निष्पादन करिया दुसाध नामक व्यक्ति ने किया था जो उक्त सम्पत्ति का पट्टाग्रहीता था। करिया दुसाध को सन्तान रहित मृत्यु होने के फलस्वरूप उसका भतीजा विशेश्वर दुसाध उसका वारिस बना विशेश्वर दुसाध ने उक्त बन्धक सम्पत्ति को पंजीकृत विक्रय विलेख द्वारा मात्र रु० 825/- में वादों की माता एवं निजामत अली नामक एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में जो प्रतिवादी का पिता था, अन्तरित कर दिया।

उसो विक्रय विलेख में जर पेशगी की रकम की मुजराई कर दी गयी एवं रकम को रख लिया गया। इस पर अपीलार्थी/वादी ने सम्पूर्ण बन्धक सम्पत्ति का मोचन कराने हेतु वाद संस्थित किया था।

(1) उत्तरवर्ती बन्धकदार द्वारा मोचन- उत्तरवर्ती या पाश्चिक बन्धकदार वह व्यक्ति हैं जो कि स्वत्व विलेख के निक्षेप द्वारा सुरक्षित नहीं है। यदि कोई उत्तरवर्ती बन्धकदार, पूर्विक बन्धक का मोचन करता है तो वह पूर्विक बन्धकदार का स्थान ग्रहण कर लेगा।

अतः यदि—

क अपनी सम्पत्ति x का बन्धक ख के पक्ष में 10,000 रु० में करता है। क अपनी सम्पत्ति का बन्धक ग के पक्ष में 9,000 रु० में करता है। क अपनी सम्पत्ति का बन्धक घ के पक्ष में 8,000 रु० में करता है।

यदि घ, ख को 10,000 रु० का भुगतान कर दे तो वह ख का स्थान ग्रहण कर लेगा। घ को वे सभी अधिकार प्राप्त हो जाएंगे जो ख को क के विरुद्ध प्राप्त था तथा घ, ग से बेहतर स्थिति में आ जाएगा।

इस प्रावधान के अन्तर्गत एक से अधिक बार प्रत्यासन हो सकेगा। उदाहरण के लिए, उपरोक्त दृष्टान्त में ग. ख का मोचन कर सकेगा और वह ख का स्थान ग्रहण कर लेगा। ग, घ का भी मोचन कर उसका स्थान ग्रहण कर सकेगा और वह ख तथा घ दोनों का ही स्थान ले सकेगा।

एक उत्तरवर्ती बन्धकदार पूर्विक बन्धक का मोचन करते हुए स्वयं अपने एवज में कार्य करता है। वह बन्धककर्ता के अभिकर्ता के रूप में कार्य नहीं करता है। प्रत्यासन वस्तुतः उत्तरवर्ती बन्धकदार को एक अवसर प्रदान करता है जिससे वह बन्धककर्ता के विरुद्ध अपने दावों के सम्बन्ध में पूर्विकता प्राप्त कर सके।

(2) सह बन्धककर्ता द्वारा मोचन-

एक सहबन्धककर्ता बन्धक का मोचन कर बन्धकदार का स्थान ग्रहण करता है। एक सहबन्धककर्ता अथवा सह ऋण बन्धक सम्पत्ति में के अपने भाग के सम्बन्ध में प्रधान ऋणी माना जाता है जबकि अन्य सह ऋषियों के भागों के सम्बन्ध में प्रतिभू और जब प्रतिभू के रूप में उसने ऋण का भुगतान कर दिया है तो उसे अन्य सभी ऋणदाताओं को प्रतिभुओं को धारण करने का अधिकार होगा।

क तथा ख अपनी संयुक्त सम्पत्ति x ग को करते हैं। तत्पश्चात् केवल क सम्पत्ति को घ के पक्ष में बन्धक करता है। यदि ख, ग पूर्विक बन्धकदार दावों को पूर्ण कर दे तो वह ग का स्थान ले लेगा और यदि घ, सम्पत्ति x के विक्रय हेतु प्रव्यंजना करता है तो ख अपनी स्थिति प्रयोग करते हुए सम्पत्ति विक्रय से बचा सकेगी।

गणेशी लाल बनाम ज्योति प्रसाद के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्णीत किया है कि जब अनेकों सहबन्धकर्ताओं में से कोई एक शोध्य सम्पूर्ण बन्धक रकम से कम रकम देकर बन्धक का मोचन करता है तो वह अपने सहबन्धककर्ताओं से वस्तुत: संदत्त रकम के अनुपात में ही अभिदाय प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

(3) प्रतिभू द्वारा मोचन-

बन्धकर्ता का प्रतिभू बन्धक सम्पत्ति का मोचन कर ऋणदाताओं के अधिकारों को धारण कर लेता है।

(4 ) मोचनाधिकार के क्रेता द्वारा मोचन-

यदि मोचनाधिकार का क्रेता बन्धक ऋण का भुगतान कर देता है तो वह बन्धकदार का स्थान ग्रहण कर लेता है। गोकुल दास बनाम पूरनमल के वाद में प्रिवी कॉसिल ने अभिनित किया था कि प्रत्यासन का आधार आशय है। बन्धक ऋण का भुगतान करने वाले व्यक्ति के प्रत्यक्ष या परोक्ष मंशा पर निर्भर करता है कि वह प्रत्यासन करेगा या नहीं।

यदि वह बन्धक को जीवित रखना चाहता है तो वह प्रत्यासन करेगा। उस बन्धकदार का जिसको उसने मोचित किया है। मालीरेड्डी अप्पारेही बनाम गोपाल कृष्णय्यार के वाद में प्रिवी कौंसिल ने अभिप्रेक्षित किया था यह अब एक स्थापित विधि है कि भारत में जहां कहां भी एक सम्पत्ति पर अनेक बन्धक सृजित किए गये हैं तो बन्धक सम्पत्ति का स्वामी यदि पूर्विक भार का भुगतान कर देता है तो वह यह मान सकता है कि उसने उस पूर्विक भार का क्रय कर लिया है और वह उसी स्थिति में अपने को पायेगा जिसमें उसका विक्रेता था।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह भार को जीवित रख सकता है अपने लाभ के लिए और इस प्रकार वह पाश्चिक बन्धकदार से पूर्व स्थान ग्रहण कर लेगा। यह सिद्धान्त तब लागू नहीं होगा जबकि बन्धक सम्पत्ति के स्वामी ने पाश्चिक बन्धक ऋणों के भुगतान के लिए प्रसंविदा की हो।

क अपनी सम्पत्ति x ख को बन्धक करता है। तत्पश्चात् ख उस सम्पत्ति को ग को बन्धक करता है। क सम्पत्ति के सम्बन्ध में अपने मोचन अधिकार को घ को बेच देता है। घ, ख को उसको बन्धक रकम वापस कर उसका स्थान ग्रहण कर लेता है। घ, ख का स्थान ग्रहण कर ग को सापेक्ष वरीयता प्राप्त कर लेगा।

यदि सम्पूर्ण मोचनाधिकार को क्रय किया गया है तो बन्धककर्ता के विरुद्ध प्रत्यासन का अधिकार नहीं होगा क्योंकि अब मोचनाधिकार का क्रेता स्वयं बन्धककर्ता बन गया है। अतः मोचनाधिकार का क्रेता बन्धक का मोचन करने के पश्चात् प्रत्यासन तभी कर सकेगा जबकि सह बन्धनकर्ता हो या जबकि अन्य भार या विल्लंगम न हो।

यदि मोचनाधिकार का क्रय अवैध है, तो क्रेता एक स्वप्रवृत्त व्यक्ति मात्र होगा, अतः प्रत्यासन का अधिकार नहीं होगा। पर यदि विक्रय रद्द होने से पूर्व वह भुगतान कर चुका है तो वह उन प्रतिभूतियों के लाभ की माँग कर सकेगा जिन्हें उसने उन्मोचित किया था। इसी प्रकार नीलामी के फस्वरूप सम्पत्ति क्रय करने वाला व्यक्ति भी 'प्रत्यासन' का अधिकारी होगा यदि उसने बन्धक का उन्मोचन कर दिया है।

प्रत्यासन के लिए अप्राधिकृत व्यक्ति विधिक प्रत्यासन में ऊपर वर्णित चार प्रकार के व्यक्ति सक्षम व्यक्ति मान जाते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य व्यक्ति सक्षम नहीं माने जाते हैं। उदाहरण के लिए एक बन्धककर्ता जब बन्धक रकम का भुगतान करता है तो वह प्रत्यासन के लिए प्राधिकृत नहीं होता है, बन्धकदार के हितों को नष्ट करने के लिए या क्षति पहुंचाने के लिए क्योंकि बन्धककर्ता वाद में अर्जित स्वत्व को उत्तरवर्ती उपयोग में नहीं ला सकता है बन्धककर्ता का वर्धित हित उत्तरवर्ती बन्धकदार के हितों की आपूर्ति के लिए होता है एवं प्रतिभूति के रूप में कार्य करता है।

एक बेनामी क्रेता एक स्वप्रवृत्त व्यक्ति माना जाता है। अतः वह प्रत्यासन के लिए प्राधिकृत नहीं है। परन्तु जहाँ एक व्यक्ति भ्रमवश यह विश्वास करता है कि वह बन्धकदार का हित प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत है एवं बन्धक ऋण का भुगतान करता है तो यह बन्धकदार के हितों को प्रत्यासित करेगा।

प्रसंविदा प्रत्यासन वर्जित कर सकेंगी-

प्रत्यासन का सिद्धान्त उन सभी मामलों में लागू होता हैं जिनमें इनका प्रयोग मोचनाधिकार के क्रेता या भारधारक, जो पूर्विक भार का उन्मोचन करता है जिसे वह प्रत्यक्ष या परोक्ष संविदा द्वारा उन्मोचित करने के दायित्वाधीन था।

किन्तु यदि कोई प्रसंविदा है जो यह उपबन्धित करती है कि प्रत्यासन का सिद्धान्त लागू नहीं होगा तो प्रसंविदा के पक्षकार प्रत्यासन की माँग नहीं कर सकेंगे। प्रत्यासन का सिद्धान्त तब भी लागू नहीं होगा यदि कोई व्यक्ति अपने दायित्व का निर्वहन करता है।

पारम्परिक या रूढ़िगत प्रत्यासन उसके अन्तर्गत ऋण का उन्मोचन एक विशिष्ट करार के अध्यधीन किया जाता है। इसका वर्णन इस धारा के पैरा 3 में किया गया है। गुरदेव सिंह बनाम चन्द्रिका सिंह के वाद में अभिनिर्णीत किया गया था कि प्रत्यासन तब पारम्परिक होगा जबकि कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष करार हो कि भुगतान करने वाला व्यक्ति मूल ऋणदाता के अधिकारों एवं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा।

इस करार को साबित करने के लिए न्यून साक्ष्य को आवश्यकता होती है। इसे संविदात्मक प्रत्यासन भी कहा जाता है। इसमें ऋणी एवं मोचन करने वाले व्यक्ति के बीच करार होता है कि मोचन करने वाला व्यक्ति मूल ऋणदाता के अधिकारों को धारण करेगा।

वर्तमान समय में यह आवश्यक है कि प्रत्यासन हेतु करार अभिव्यक्त हो, लिखित हो एवं पंजीकृत हो, अन्यथा एक अजनबी, जो ऋण के भुगतान के लिए अपने आप को प्रस्तुत करता है इस सिद्धान्त का लाभ नहीं प्राप्त कर सकेगा। यदि पंजीकृत करार नहीं है तो भार के रूप में साम्यिक उपचार का लाभ अन्तरिती को नहीं प्राप्त हो सकेगा।

यदि बन्धक ऋण का भुगतान मोचनाधिकार के क्रेता द्वारा किया गया है तो ऐसा व्यक्ति रूढ़िगत प्रत्यासन हेतु प्रस्तुत दावा नहीं कर सकेगा जब तक कि विक्रय विलेख उसके पक्ष में न हो एवं उसे प्रत्यासन के अधिकार से युक्त न करे। ऐसा क्रेता विधिक प्रत्यासन को मांग भी नहीं कर सकेगा जब कि वह बन्धक ऋण का भुगतान विक्रय से प्राप्त रकम से कर रहा हो जिसे उसने बन्धक ऋण के उन्मोचन हेतु अपने पास रोक रखा हो।

ऐसे क्षेत्रों में जिनमें सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम प्रवर्तित नहीं है, जैसे पंजाब, बन्धककर्ताओं के आपसी अधिकारों का विनियमन साम्या के सिद्धान्तों से होता है तथा इस अधिनियम के प्रावधान इन क्षेत्रों में उस सीमा तक प्रवर्तित होते हैं जहाँ तक वे साम्या पर आधारित हैं। प्रत्यासन का अभिप्राय है एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का स्थान ग्रहण करना।

प्रत्यासन का सिद्धान्त बीमाकर्ता को प्रदान करता है उन समस्त प्रलाभों एवं उपचारों को पाने का अधिकार जैसा कि बीमाकृत व्यक्तियों को तीसरे पक्षकार के विरुद्ध प्राप्त होता है हानि के सम्बन्ध में तथा बीमाकर्ता उस हानि की भरपाई जिस सीमा तक करता है एवं बीमाकृत व्यक्ति को पूर्वावस्था में लाता है।

अतः बीमाकर्ता उन सभी अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत है जो बीमाकृत व्यक्ति को प्राप्त थे जिससे हुई हानि को समाप्त किया जा सके। परन्तु अधिकार का प्रयोग बीमाकृत व्यक्ति के नाम में ही किया जा सकेगा।

प्रत्यासन एवं अभिदाय - प्रत्यासन एवं अभिदाय एक दूसरे से पूर्णरूपेण पृथक् नहीं हैं। जब एक व्यक्ति जिसे बन्धक सम्पत्ति के केवल एक भाग का अधिकार है, बन्धक का मोचन करता है, ते उसे दो सुस्पष्ट अधिकार प्राप्त होते हैं। पहला, वह अन्य बन्धककर्ताओं से अभिदाय का तथा दूसरा, प्रत्यासन का । वह इन दोनों अधिकारों का प्रयोग एक साथ करने के लिए प्राधिकृत है।

प्रत्यासन के अधिकार के कारण अभिदाय का अधिकार बाधित नहीं होता है। यदि प्रत्यासन का अधिकार कालबाधित हो गया है तो वह अभिदाय के वाद को, जो काल सीमा के अन्तर्गत संस्थित किया गया था, प्रतिकूलतः प्रभावित नहीं होगा।

मोचक सह-बन्धकदार द्वारा अभिदाय हेतु वाद -

जब अनेक सह बन्धककर्ताओं में से एक सम्पूर्ण बन्धक सम्पत्ति का मोचन कर लेता है वह उस बन्धकदार, जिसके बन्धक का वह मोचन करता है, के अधिकारों का प्रत्यासन करेगा। ऐसे बन्धककर्ता को सह-बन्धककर्ताओं से अभिदाय प्राप्त करने का अधिकार होगा।

इस निमित्त वह अपना वाद परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 62 के अन्तर्गत बारह वर्ष की अवधि समाप्त होने से पूर्व किसी भी समय संस्थित कर सकेगा। बारह वर्ष की अवधि की गणना उस तिथि से की जाएगी जिस तिथि को अभिदाय की रकम शोध्य हुई थी। अर्थात् जिस तिथि को बन्धक ऋण का भुगतान कर बन्धक सम्पत्ति का मोचन किया गया था।

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