POCSO Act में किसी भी अपराध के लिए प्रदान किया गया दण्ड सुसंगत होना चाहिए
अपराध और दण्ड के बीच का अनुपात ऐसा लक्ष्य है जिसका सिद्धांत सम्मान किया गया था और भ्रामक विचारधाराओं के बावजूद दण्डादेश के निर्धारण में यह सशक्त प्रभाव रखता है। समान कठोरता के साथ सभी गम्भीर अपराधों को दण्डित करने का व्यवहार अब सभ्य समाज में अज्ञात है. परन्तु आनुपातिकता के सिद्धांत से ऐसा मूलभूत विचलन विधि से केवल हाल के समयों में ही समाप्त हुआ है।
अपर्याप्त दण्डादेश अधिरोपित करने के लिए असम्यक् सहानुभूति विधि की प्रभावकारिता में जन विश्वास को क्षीण करने के लिए न्यायिक प्रणाली को और अधिक हानि कारित करेगी तथा समाज ऐसी गम्भीर धमकियों के अधीन अब सहन नहीं कर सकता है। इसलिए अपराध की प्रकृति तथा उस रीति जिसमें उसे निष्पादित अथवा कारित किया गया था आदि को ध्यान में रखते हुए उचित दण्डादेश प्रदान करना प्रत्येक कोर्ट का कर्तव्य है।
आपराधिक आचरण के प्रत्येक प्रकार की अपराधिकता के अनुसार दायित्व विहित करने में आनुपातिकता का सिद्धांत
दण्ड विधि सामान्यतः आपराधिक आचरण के प्रत्येक प्रकार की अपराधिकता के अनुसार दायित्व विहित करने में आनुपातिकता के सिद्धांत का अनुपालन करती है। यह सामान्यतः प्रत्येक मामले में दण्डादेश पर पहुंचने में न्यायाधीश के कुछ महत्वपूर्ण विवेकाधिकार को अनुज्ञात करता है, जो उपधारणात्मक रूप में ऐसे दण्डादेशो को अनुज्ञात करने के लिए होता है, जो अपराधिकता के और अधिक सूक्ष्म विचारण को प्रदर्शित करता है, जिसे प्रत्येक मामले में विशेष तथ्यों के द्वारा उद्भूत किया गया हो। न्यायाधीश सारत यह बात अभिपुष्ट करते हैं कि दण्ड को सदैव अपराध के लिए उपयुक्त होना चाहिए फिर भी व्यवहार में दण्डादेश व्यापक रूप में अन्य विचारणों के द्वारा निर्धारित किए जाते है।
इन अपराधों में अभियोजन की असफलता और कुछ मामलों में हमारी न्यायपालिका की उदारता अपराधियों को इन अपराधों को दुहराने के लिए विश्वास तथा प्रोत्साहन प्रदान करती है। दहेज के मामलों में अपराधी दहेज की सम्पत्ति का लाभ प्राप्त करते हैं. परन्तु लम्बे समय तक चलने वाले विधिक युद्ध में कोई दण्ड प्राप्त नहीं करते हैं. इसलिए दण्ड की बुराई को अपराधों के लाभ से अधिक नहीं होना चाहिए।
हीरा लाल बनाम राजस्थान राज्य, 2017 क्रि.लॉ.ज 2213 के मामले में अभियुक्त, अवयस्क अभियोक्त्री का पिता उसके साथ अनेक अवसरों पर बलात्संग कारित करने के लिए अभिकथित किया गया था। अभियोक्त्री का अभिसाक्ष्य अन्य मौखिक और चिकित्सीय जांचों से सपुष्ट था। चिकित्सीय रिपोर्ट अभियोक्त्री को लैंगिक आसक्ति की अभ्यस्त होना प्रकट करती थी। अभियुक्त की दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया।
अपराध और दण्ड के बीच अनुपात का सिद्धांत "न्यायसंगत अभित्यजन के सिद्धांत के द्वारा शासित अभियुक्त को अवयस्क लड़की के साथ बलात्संग का अपराध कारित करने का दोषी पाया गया था। अभियुक्त लगभग 20 वर्ष की आयु का था और पीडिता लड़की लगभग 10 वर्ष की आयु की थी और वे एक ही स्थानीय क्षेत्र के पड़ोसी थे। अभियुक्त लगभग 6 वर्ष और 4 मास का कारावास पहले ही भुगत चुका था। तथ्यों और परिस्थितियों पर दण्डादेश को 10 वर्ष के कठोर कारावास से 7 वर्ष तक कम किया गया. जो न्यायसंगत अभित्यजन की मात्रा होने के कारण न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा।
यदु कुमार पटेल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2007 के मामले में अभियुक्त को लगभग 12 वर्षीय पीड़िता लड़की के साथ बलात्संग कारित करने का दोषी पाया गया था। अभियुक्त घटना की तारीख पर लगभग 22 वर्ष की आयु का था। अभियुक्त लगभग 5 वर्ष की अवधि का दण्डादेश पहले ही भुगत चुका था। तथ्यों और परिस्थितियों पर उसके दण्डादेश को 10 वर्ष से 7 वर्ष तक कम किया गया था. जो न्यायसंगत अभित्यजन की मात्रा होने के कारण न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा।
नीम सिरिंगा लेपचा बनाम सिक्किम राज्य, 2017 क्रि. लॉज 3168 सिक्किम के मामले में अभियुक्त ने अभिकथित रूप में अवयस्क पीड़िता को सदोष रूप में अवरुद्ध किया था और उस पर लैंगिक रूप में हमला किया था। पीड़िता के संरक्षक और दो अन्य साक्षीगण पीड़िता को तलाशने और हरे-घर के अन्दर उसे पाए जाने के बारे में अभिसाक्ष्य दिए थे। पीड़िता ने अभियुक्त के बलपूर्वक उसे हरे-घर में घसीट कर ले जाने तथा लैंगिक हमला कारित करने के बारे में अभिसाक्ष्य दिया था।
पीडिता ने अपने गुप्तांग में दर्द महसूस करने पर घटना के कुछ दिन पश्चात् अपने संरक्षक को सम्पूर्ण घटना बताया था। घटना के 7 दिन पश्चात् पीड़िता की विलम्बित जांच के बावजूद उसके गुप्तांग पर डाक्टर ने लालिमा पाया था, जो चोट का संकेत करती थी। पीड़िता के अन्त वस्त्रों पर पाया गया रक्त उसके रक्त समूह से मिलता था। दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया।