लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 13: गुरुतर लैंगिक हमला
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 9 गुरुतर लैंगिक हमले की परिभाषा प्रस्तुत करती है। जिस प्रकार प्रवेशन लैंगिक हमले का अपराध धारा पांच में बढ़ोतरी के साथ गुरुतर रूप में प्रस्तुत किया गया है इस ही तरह लैंगिक हमले का भी बड़ा रूप है जिसे गुरुतर लैंगिक हमला माना गया है। इस अपराध में और लैंगिक हमले में अधिक अंतर नहीं है, अगर कोई लैंगिक हमला किसी विश्वास का पद धारण करने वाले आदमी द्वारा किया जाता है तो इसे गुरुतर माना गया है और इसके दंड भी अधिक है।
यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है
धारा 9 गुरुतर लैंगिक हमला
(क) जो कोई पुलिस अधिकारी होते हुए, किसी बालक पर
(i) पुलिस थाने या ऐसे परिसरों की सीमाओं के भीतर जहां उसकी नियुक्ति की गई है. प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ii) किसी थाने के परिसर चाहे उस पुलिस थाने में अवस्थित है या नहीं जहां उसकी नियुक्ति की गई है. प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(iii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा प्रवेशन लैंगिक हमला करता है, या
(iv) जहां कोई पुलिस अधिकारी के रूप में ज्ञात या पहचाना गया व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला करता है; या
(ख) कोई सशस्त्र बल या सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए बालक पर
(i) ऐसे क्षेत्र की सीमाओं के भीतर जहां वह व्यक्ति तैनात है, लैंगिक हमला करता है; या
(ii) बलों या सशस्त्र बलों की कमान के अधीन क्षेत्रों में, लैंगिक हमला करता है, या
(ii) अपने कर्तव्यों के अनुक्रम में या अन्यथा, लैंगिक हमला करता है; या
(iv) जहां सुरक्षा या सशस्त्र बलों के सदस्य के रूप में ज्ञात या पहचाना गया व्यक्ति, लैंगिक हमला करता है, या
(ग) जो कोई लोक सेवक होते हुए, किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(घ) जो कोई किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह (रिमांड होम), संरक्षण गृह, संप्रेक्षण गृह या अभिरक्षा या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या के अधीन स्थापित देखरेख और संरक्षण के किसी स्थान का प्रबंध या कर्मचारिवृंद ऐसे जेल, प्रतिप्रेषण गृह, संप्रेक्षण गृह या अभिरक्षा या देखरेख और संरक्षण के अन्य स्थान पर रह रहे किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है, या
(ङ) जो कोई किसी अस्पताल, चाहे सरकारी या प्राइवेट हो, का प्रबंध या कर्मचारिवृद होते हुए उस अस्पताल में किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है,या
(क) जो कोई किसी शैक्षणिक संस्था या धार्मिक संस्था का प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए उस संस्था में के किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(घ) जो कोई बालक पर सामूहिक लैंगिक हमला करता है,
स्पष्टीकरण-जहां किसी बालक पर, कि एक या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा उनके सामान्य आशय को अग्रसर करते हुए लैंगिक हमला किया गया है वहां ऐसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इस उपधारा के अर्थातर्गत गैंग लैंगिक हमला कारित किया जाना समझा जाएगा और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उस कृत्य के लिए उस रीति में दायी होगा जैसे कि वह कार्य उसके द्वारा अकेले किया गया था, या
(ज) जो कोई बालक पर घातक आयुध, आग्नेयास्त्र, गर्म पदार्थ या संक्षारक पदार्थ का प्रयोग करते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(झ) जो कोई लैंगिक हमला करके किसी बालक को घोर उपहति कारित करता है या उसके / उसकी जननेद्रियों को शारीरिक रूप से नुकसान और क्षति, जिसमें क्षति सम्मिलित है, पहुंचाता है, या (ञ) जो कोई किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है जो
(i) बालक को शारीरिक रूप से अशक्त कर देता है या बालक मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड (ठ) के अधीन यथापरिभाषित मानसिक रोगी हो जाता है या किसी प्रकार का हास कारित करता है जिससे बालक कार्य करने में अयोग्य हो जाता है,
(ii) बालक को ह्यूमन इम्युनोडेफिसियन्सी वायरस या अन्य प्राणघातक रोग या संक्रमण से ग्रस्त कर देता है जो बालक को शारीरिक रूप से अयोग्य, या नित्य प्रतिदिन का काम करने के लिए मानसिक रूप से अयोग्य करके अस्थाई या स्थाई रूप से ह्रास कर सकता है, या
(ट) जो कोई बालक की मानसिक और शारीरिक रूप से अशक्तता का लाभ उठाकर बालक पर लैंगिक हमला करता है;
(ठ) जो कोई उसी बालक पर एक से अधिक बार या बार-बार लैंगिक हमला करता है: या
(ड) जो कोई बारह वर्ष से कम आयु के किसी बालक पर लैंगिक हमला करता है, या
(ङ) जो कोई बालक का रक्त या दत्तक या विवाह या संरक्षकता या पोषण करने वाला नातेदार या बालक के माता-पिता के साथ घरेलू संबंध या बालक के साथ साझे गृहस्थ में रहते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(ग) जो कोई बालक को सेवा प्रदान करने वाली किसी संस्था का स्वामी या प्रबंध या कर्मचारिवृंद होते हुए बालक पर लैंगिक हमला करता है; या
(त) जो कोई किसी बालक का न्यासी या प्राधिकारी की स्थिति में होते हुए
किसी संस्था या बालक के गृह या कहीं और बालक पर लैंगिक हमला करता है;
(थ) जो कोई यह जानते हुए कि बालक गर्भ से है लैंगिक हमला करता है; या
(द) जो कोई बालक पर कोई लैंगिक हमला करता है और बालक की हत्या करने का प्रयास करता है; या
(घ) '[सामुदायिक या पंथिक हिंसा के दौरान या प्राकृतिक विपत्ति की स्थिति या उस प्रकार की किन्हीं भी स्थितियों के दौरान जो कोई बालक पर कोई लैंगिक हमला करता है, या
(न) जो कोई बालक पर कोई लैंगिक हमला करता है और वह पूर्व में इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के लिए या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दंडनीय किसी लैंगिक अपराध किए जाने के लिए दोषसिद्ध किया गया है, या
(प) जो कोई बालक पर लैंगिक हमला करता है और बालक को सार्वजनिक रूप से नंगा करता है या नंगा करके प्रदर्शन करता है, उसके द्वारा गुरुतर लैंगिक हमला किया गया माना जाएगा;
2 [(फ) जो कोई इस आशय से कि कोई बालक प्रवेशन लैंगिक हमले के प्रयोजन के लिए शीघ्र लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करे, किसी बालक को कोई मादक द्रव्य, हार्मोन या कोई रासायनिक पदार्थ लिए जाने के लिए प्रेरित करता है, उत्प्रेरित करता है, फुसलाता है या प्रपीड़ित करता है या देता है या देने के लिए किसी को निदेश देता है या लिए जाने में सहायता करता है।]
गुरुतर लैंगिक हमला
तारामन कामी बनाम सिक्किम राज्य, 2018 के मामले में पीड़िता ने अत्यधिक दर्द के कारण सोने से जग जाने के बारे में अभिसाक्ष्य दिया था और यह समझा था कि उसका पिता उस पर लैंगिक रूप में हमला कर सकता था। पीडिता पर लैंगिक हमला साबित किया गया था। तथापि अभियुक्त के द्वारा पीडिता के साथ प्रवेशन लैंगिक हमले का पीड़िता के द्वारा न तो प्रकथन किया गया था, न तो सारित किया गया था। इस प्रकार अभियुक्त ने पीडिता पर केवल गुरुतर लैंगिक हमला कारित किया था। इसलिए अभियुक्त की दोषसिद्धि पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(ढ) से धारा 9 (ढ) में परिवर्तित की गयी।
प्रवेशन भलीभांति या तो पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 और इसके परिणामस्वरूप पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 की प्रयोज्यनीयता के लिए अपरिहार्य है। प्रवेशन के बिना, अपराध, यदि कारित किया गया हो, केवल पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 में यथापरिभाषित "गुरुतर लैंगिक हमला" की कोटि में आयेगा, जो पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के अधीन ऐसे कारावास से दण्डनीय होगा, जो किसी भांति का 5 से 7 वर्ष का दण्ड हो सकता है।
अभियुक्त का अधिकार
पी.एम. मोहम्मद अशरफ बनाम केरल राज्य, 2019 क्रिमिनल लॉ जर्नल 3352 (केरल) बचाव साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार अभियुक्त का कीमती और मूल्यवान अधिकार होता है मात्र इस कारण से कि अभियुक्त ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 233 के सही प्रावधान के बजाय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के प्रावधान को गलत ढंग से उद्धृत करने में भूल कारित करता है अभियुक्त के अभिवाक को नामंजूर करने के लिए निर्धारक कारक नहीं हो सकता है।
लैगिक हमले का प्रयत्न
कुमार घिमिरे बनाम सिक्किम राज्य, 2019 के मामले में पीड़िता के साक्ष्य ने अभियुक्त के विरुद्ध लगाये गए आरोप को साबित किया है। पीड़िता का साक्ष्य उन अभियोजन साक्षियों, जो भी पीड़िता के स्कूल में पढ़ने वाली विद्यार्थी थीं, के साक्ष्य के द्वारा सपुष्ट हुआ था चिकित्सीय साक्ष्य ने भी अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को पूर्ण रूप में संपुष्ट किया था। उच्च न्यायालय ने सही तौर पर अभियुक्त की दोषसिद्धि के निष्कर्ष को संपुष्ट किया था। विशेष न्यायाधीश ने कारकों पर विचार करने के पश्चात् सात वर्ष का दण्डादेश अधिरोपित किया था।
अवयस्क लड़की (सात वर्षीय) के विरुद्ध कारित किये गये अपराध को हल्के में नहीं समझा जा सकता है। इसलिए अपराध की गंभीर प्रकृति पर विचार करते हुए सात वर्ष के कठोर कारावास की दोषसिद्धि में इस अपील में कोई हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।
धारा 10 गुरुतर लैंगिक हमले के लिए दंड
जो कोई गुरुतर लैंगिक हमला कारित करेगा वह दोनों में से किसी प्रकार के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
धारा दस में इस अपराध के लिए दंड का उल्लेख किया गया है जहां कम से कम दंड पांच वर्ष का अधिरोपित किया गया है।
गुरुतर लैंगिक हमला दोषसिद्धि
इन्द्र कुमार प्रधान बनाम सिक्किम राज्य, 2017 के मामले में अभियुक्त ने अपनी दुकान में पांच वर्ष की आयु की अवयस्क पीड़िता के साथ लैंगिक रूप में छेड़छाड़ की थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में 17 दिन के विलम्ब को इत्तिलाकर्ता, पीड़िता के पिता के द्वारा संतोषजनक रूप में स्पष्ट किया गया था। बाल संरक्षण अधिकारी ने अभियुक्त के द्वारा लैंगिक हमले के दो पूर्ववर्ती दृष्टांतों के साथ सम्पूर्ण घटना का प्रकथन करते हुए अवयस्क पीड़िता के बारे में अभिसाक्ष्य दिया था। पीड़िता और उसकी माँ ने भी बाल संरक्षण अधिकारी के अभिसाक्ष्य को संपुष्ट किया था। पीड़िता के कथनों में लघु परिवर्तन महत्वपूर्ण नहीं थे। दोषसिद्धि उचित थी।
संदेह का लाभ
दिपांकर सरकार उर्फ टीटू बनाम त्रिपुरा राज्य, 2019 क्रि. लॉ.ज. 496 (त्रिपुरा) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 511 के अधीन तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के अधीन आरोप को साबित करने के लिए बलात्संग के प्रयत्न के साथ ही साथ गुरुतर लैंगिक हमले की कहानी को युक्तियुक्त संदेह से परे साबित किया जाना आवश्यक है।
अभियोक्त्री के द्वारा किया गया यह कथन की अभियुक्त ने उसके शरीर के गुप्तांग को स्पर्श किया था, किसी भी साक्ष्य के द्वारा साबित नहीं किया गया है, अपेक्षाकृत अपनी प्रतिपरीक्षा में उसने उस कहानी को स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया था, जिसका उसने अपनी मुख्य परीक्षा में प्रकथन किया था। डॉक्टर ने भी उसके शरीर के किसी भी भाग पर कोई क्षति नहीं पायी थी। इस प्रकार अभियुक्त संदेह का लाभ प्राप्त करने का हकदार है।