मैजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों का संज्ञान लेना: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के तहत अभियोजन धारा 210 - 211

Update: 2024-10-01 12:26 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जिसे 1 जुलाई 2024 से लागू किया गया है, ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस संहिता के अध्याय XV में मैजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों का संज्ञान लेने (Cognizance) और कानूनी कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रियाओं को विस्तृत किया गया है। संज्ञान का अर्थ सरल शब्दों में यह है कि मैजिस्ट्रेट द्वारा अपराध को पहचानना और उस पर औपचारिक कानूनी कार्यवाही शुरू करना। यह वह पहला कदम होता है, जब न्यायालय यह स्वीकार करता है कि कोई अपराध हुआ है और इस पर कार्रवाई करने का निर्णय लेता है। इस लेख में हम धारा 210 और 211 की व्याख्या करेंगे और बताएंगे कि कानूनी प्रक्रिया कैसे शुरू होती है।

धारा 210: मैजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों का संज्ञान लेना (Cognizance of Offences by Magistrates)

धारा 210 के अंतर्गत, एक प्रथम श्रेणी के मैजिस्ट्रेट (Magistrate of the First Class) को अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार दिया गया है। इसका मतलब यह है कि मैजिस्ट्रेट अपराध की सूचना मिलने के बाद औपचारिक रूप से कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। यह धारा विशेष रूप से अधिकृत द्वितीय श्रेणी के मैजिस्ट्रेट (Second-Class Magistrates) को भी अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार देती है।

संज्ञान लेने के प्रकार (Types of Cognizance)

धारा 210 के अंतर्गत, मैजिस्ट्रेट तीन तरीकों से अपराधों का संज्ञान ले सकते हैं:

1. शिकायत प्राप्त होने पर: यदि कोई व्यक्ति अपराध से संबंधित तथ्यों की शिकायत दर्ज कराता है, तो मैजिस्ट्रेट उन तथ्यों के आधार पर कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। इसमें विशेष कानूनों के तहत अधिकृत व्यक्तियों द्वारा की गई शिकायतें भी शामिल हैं, जैसे टैक्स से संबंधित मामलों में टैक्स अधिकारियों द्वारा की गई शिकायत।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी की घटना की शिकायत दर्ज कराता है, जिसमें उन्होंने ठगे जाने के सबूत पेश किए हैं, तो मैजिस्ट्रेट उन तथ्यों की जांच करके अपराधी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

2. पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने पर: यदि पुलिस किसी अपराध की रिपोर्ट जमा करती है, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हो या अन्य तरीके से, तो मैजिस्ट्रेट उस पर संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

उदाहरण: यदि पुलिस चोरी के मामले की जांच करती है और चोरी गए सामान और संदिग्ध चोर के बारे में रिपोर्ट देती है, तो मैजिस्ट्रेट इस रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा शुरू कर सकते हैं।

3. सूचना प्राप्त होने पर या स्वयं की जानकारी पर: मैजिस्ट्रेट किसी अन्य व्यक्ति (जो पुलिस अधिकारी नहीं है) से प्राप्त सूचना या स्वयं के ज्ञान के आधार पर भी अपराध का संज्ञान ले सकते हैं।

उदाहरण: अगर किसी पत्रकार ने किसी अवैध गतिविधि के बारे में न्यायालय को सूचित किया, या अगर मैजिस्ट्रेट किसी समाचार रिपोर्ट से अपराध के बारे में जान लेते हैं, तो वे उस पर कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

द्वितीय श्रेणी के मैजिस्ट्रेट का अधिकार (Empowerment of Second-Class Magistrates)

धारा 210(2) के तहत, मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) द्वितीय श्रेणी के मैजिस्ट्रेट को कुछ अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार प्रदान कर सकते हैं। यह प्रावधान छोटे या कम जटिल मामलों को निपटाने में सहायक होता है ताकि सभी मामलों का भार प्रथम श्रेणी के मैजिस्ट्रेट पर न आए।

धारा 211: अभियुक्त द्वारा मामले का स्थानांतरण (Transfer of Cases on the Application of the Accused)

धारा 211 अभियुक्त (Accused) को एक महत्वपूर्ण अधिकार देती है। जब किसी मैजिस्ट्रेट ने धारा 210(1)(c) के तहत अपराध का संज्ञान लिया है (यानी किसी व्यक्ति से प्राप्त जानकारी या मैजिस्ट्रेट की अपनी जानकारी के आधार पर), तो अभियुक्त को सूचित किया जाना चाहिए कि उनके पास यह अधिकार है कि मामला किसी अन्य मैजिस्ट्रेट के पास स्थानांतरित कर दिया जाए।

यदि अभियुक्त ऐसा अनुरोध करता है, तो मामला मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त किए गए अन्य मैजिस्ट्रेट को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) मिले और किसी भी पूर्वाग्रह (Bias) का सामना न करना पड़े।

धारा 211 का उदाहरण:

यदि कोई मैजिस्ट्रेट किसी स्थानीय कार्यकर्ता द्वारा दर्ज की गई पर्यावरणीय प्रदूषण की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हैं, और उस फैक्ट्री के मालिक (अभियुक्त) को लगता है कि मैजिस्ट्रेट पक्षपाती हो सकते हैं, तो मालिक यह अनुरोध कर सकता है कि मामला किसी अन्य मैजिस्ट्रेट को सौंपा जाए। यदि अनुरोध किया जाता है, तो मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट किसी अन्य मैजिस्ट्रेट को इस मामले की देखरेख सौंपेंगे।

संज्ञान का अर्थ आम आदमी के लिए

सरल शब्दों में, संज्ञान लेने का मतलब है कि मैजिस्ट्रेट को किसी अपराध की जानकारी मिली है और उन्होंने उस पर औपचारिक रूप से कानूनी प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है। यह न्यायालय द्वारा यह स्वीकार करने जैसा है कि एक अपराध हुआ है और उस पर जांच और सुनवाई शुरू होनी चाहिए। संज्ञान के बिना, कोई भी मामला न्यायालय में आगे नहीं बढ़ सकता।

धारा 210 और 211 से मुख्य बातें

• धारा 210 मैजिस्ट्रेट को किसी शिकायत, पुलिस रिपोर्ट या अन्य विश्वसनीय सूचना के आधार पर कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देती है। यह कानूनी प्रक्रिया के प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य करती है।

• धारा 211 अभियुक्त को यह अधिकार देती है कि यदि उन्हें लगता है कि मैजिस्ट्रेट पक्षपाती हो सकते हैं, तो वे मामले को किसी अन्य मैजिस्ट्रेट के पास स्थानांतरित करने का अनुरोध कर सकते हैं, जिससे निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो सके।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय XV की ये धाराएं आपराधिक मामलों में कानूनी प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवश्यक शर्तों को निर्धारित करती हैं। ये धाराएं मैजिस्ट्रेट को वैध शिकायतों और रिपोर्टों पर कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देती हैं और साथ ही अभियुक्त के अधिकारों की भी रक्षा करती हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्याय प्रणाली प्रभावी ढंग से काम करे और अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई मिले।

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