क्या हर शादी के वादे से मुकरना Section 376 IPC के तहत Rape माना जा सकता है?

Update: 2025-04-19 11:45 GMT
क्या हर शादी के वादे से मुकरना Section 376 IPC के तहत Rape माना जा सकता है?

Naïm Ahamed v. State (NCT of Delhi) नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम कानूनी सवाल का समाधान किया कि क्या शादी का वादा निभाने में असफल होना Rape (बलात्कार) के अपराध की श्रेणी में आता है। इस फैसले में Court ने स्पष्ट किया कि हर ऐसा मामला जिसमें शादी का वादा पूरा नहीं हुआ, उसे Rape नहीं माना जा सकता जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि शुरू से ही आरोपी की मंशा (Intention) धोखा देने की थी।

Court ने यह भी कहा कि Consent (सहमति) का विश्लेषण करते समय व्यक्ति की समझदारी, परिस्थिति, और सबूतों (Evidence) को ध्यान में रखना जरूरी है। इसके साथ ही CrPC (Code of Criminal Procedure) की उन धाराओं पर भी Court ने टिप्पणी की जो गवाहों की गवाही किस भाषा में दर्ज की जानी चाहिए, उससे जुड़ी हैं।

False Promise और Breach of Promise के बीच का अंतर (Difference between False Promise and Breach of Promise)

Court ने दो अलग-अलग स्थितियों के बीच का अंतर बताया। अगर किसी ने शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा नहीं रखा और केवल लड़की को शारीरिक संबंध के लिए धोखे में रखा, तो यह False Promise (झूठा वादा) माना जाएगा और इसे Section 90 IPC के तहत Misconception of Fact (तथ्य का भ्रम) माना जा सकता है। ऐसे मामलों में सहमति वैध (Valid) नहीं मानी जाएगी और यह Rape के अंतर्गत आ सकता है।

वहीं, अगर कोई व्यक्ति ईमानदारी से शादी का वादा करता है लेकिन बाद में किसी अपरिहार्य (Uncontrollable) परिस्थिति के कारण वह शादी नहीं कर पाता, तो यह केवल एक Breach of Promise (वादे का उल्लंघन) है। इसे Criminal Offence (आपराधिक अपराध) नहीं कहा जा सकता।

IPC की संबंधित धाराएं (Relevant Sections of IPC)

Section 90 IPC में कहा गया है कि अगर कोई सहमति डर या तथ्य के भ्रम (Misconception of Fact) के कारण दी गई है, तो वह Valid Consent (वैध सहमति) नहीं मानी जाएगी। अगर आरोपी यह जानता है या मानता है कि सामने वाला व्यक्ति भ्रम में है, तो उसकी दी गई सहमति कानूनन मान्य नहीं होती।

Section 375 IPC में यह स्पष्ट किया गया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में, भले ही महिला की सहमति हो, फिर भी उसे Rape माना जाएगा। खासकर जब सहमति धोखे से ली गई हो, जैसे शादी का झूठा वादा करके।

Clause Secondly यह कहता है कि अगर महिला की सहमति धोखे (Misconception) पर आधारित है, तो वह सहमति मानी ही नहीं जाएगी।

महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख (Important Judgments Referred)

Court ने कई पूर्व फैसलों का हवाला दिया, जो Consent और False Promise को समझने में सहायक हैं।

Uday v. State of Karnataka (2003) मामले में Court ने कहा कि अगर महिला ने अपने प्रेम और आपसी समझदारी से संबंध बनाए हैं, तो उसे Misconception of Fact नहीं माना जा सकता।

Deelip Singh v. State of Bihar (2005) में Court ने माना कि अगर शुरू से ही आरोपी की मंशा शादी करने की नहीं थी, और सिर्फ महिला को फंसाने के लिए झूठा वादा किया गया, तो यह False Promise होगा और यह Rape की श्रेणी में आएगा।

Deepak Gulati v. State of Haryana (2013) में Court ने कहा कि अगर सहमति धोखे या लालच पर आधारित है, तो उसे Consent नहीं माना जा सकता। लेकिन अगर कोई परिस्थिति अचानक सामने आई, जिस कारण शादी संभव नहीं हो सकी, तो उसे Rape नहीं कहा जा सकता।

Dr. Dhruvaram Murlidhar Sonar v. State of Maharashtra (2019) में Court ने यह स्पष्ट किया कि अगर शारीरिक संबंध आपसी सहमति से थे और शादी का वादा ईमानदारी से किया गया था, तो उसे Rape नहीं माना जाएगा।

इस मामले में कानून का प्रयोग (Application of Law to This Case)

इस मामले में Prosecutrix (पीड़िता) एक विवाहित महिला थी और उसके तीन बच्चे थे। उसने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ संबंध बनाए और लंबे समय तक उसके साथ रही। इस दौरान उसने एक बच्चा भी आरोपी से जन्म दिया। वह यह जानने के बाद भी कि आरोपी पहले से शादीशुदा है, उसके साथ रहना जारी रखती है।

Court ने माना कि Prosecutrix की स्थिति, उसका अनुभव और उसकी समझदारी को देखते हुए यह कहना कि उसने किसी धोखे में आकर संबंध बनाए, अतिशयोक्ति (Exaggeration) होगी। उसने कई वर्षों तक किसी प्रकार की शिकायत नहीं की और Complaint भी तब दर्ज की जब उनके संबंधों में दरार आई।

इसलिए Court ने माना कि यह सिर्फ एक असफल रिश्ता है, कोई आपराधिक धोखा नहीं। आरोपी की मंशा शुरू से धोखा देने की नहीं थी, और इस वजह से उस पर Section 376 IPC के तहत Rape का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

CrPC के तहत गवाही की भाषा पर ज़ोर (CrPC and Language of Deposition)

Court ने इस फैसले में एक महत्वपूर्ण Procedural (प्रक्रियात्मक) पहलू पर भी ध्यान दिया — वह था गवाह की गवाही की भाषा। Court ने कहा कि CrPC की Section 277 के अनुसार गवाह की गवाही उसी भाषा में दर्ज होनी चाहिए जिसमें वह बोल रहा है या फिर Court की भाषा में।

अगर गवाही Witness (गवाह) की भाषा में नहीं लिखी जाती और उसे सीधे English में ट्रांसलेट करके रिकॉर्ड किया जाता है, तो उसमें भावनाओं और अभिव्यक्ति का नुकसान होता है। Court ने निर्देश दिया कि सभी Trial Courts को Section 277 CrPC का पूरी तरह पालन करना चाहिए।

Naïm Ahamed v. State (NCT of Delhi) मामले में Supreme Court ने यह स्पष्ट किया कि हर शादी का वादा निभाने में असफल होना Rape नहीं होता। अगर वादा ईमानदारी से किया गया हो लेकिन किसी कारणवश निभाया नहीं जा सका, तो वह Criminal Offence नहीं है।

यह फैसला Consent, False Promise, और Procedural Fairness को लेकर न्यायपालिका की संतुलित सोच को दर्शाता है। यह न केवल महिलाओं को धोखे से सुरक्षा देता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि झूठे आरोपों में किसी निर्दोष को सज़ा न मिले। साथ ही Court ने यह भी बताया कि गवाही को उसकी मूल भाषा में रिकॉर्ड करना न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए जरूरी है।

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