अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :9 अधिनियम के अंतर्गत विशेष लोक अभियोजक (धारा-15)
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989) के अंतर्गत धारा 15 में विशेष लोक अभियोजक की व्यवस्था की गई है। जैसा कि इसके पूर्व के आलेख में विशेष न्यायालय के संबंध में उपबंधित किए गए प्रावधानों पर चर्चा की गई थी। इसी प्रकार इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत की गई विशेष लोक अभियोजक की व्यवस्था पर चर्चा की जा रही है तथा उससे संबंधित कुछ न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
विशेष लोक अभियोजक:-
किसी भी आपराधिक प्रकरण में पीड़ित के न्याय हेतु लोक अभियोजक जिसे सामान्य भाषा में सरकारी वकील कहा जाता है की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यही वह व्यक्ति होता है जो सरकार की ओर से किसी प्रकरण में दोषियों को दंडित करवाने हेतु अपराध को साबित करता है। एक लोक अभियोजक पीड़ित के न्याय के लिए कार्य करता है।
पीड़ित को न्याय दिया जाना राज्य की जिम्मेदारी होती है तथा इस उद्देश्य से ही राज्य द्वारा लोक अभियोजक की व्यवस्था की गई है। अनेक मामलों में हम यह देखते हैं कि लोक अभियोजकों पर अदालतों में मुकदमों की अधिकता के कारण कार्य भार अधिक होता है। इस कार्य के कारण लोक अभियोजक ठीक से कार्य भी नहीं कर पाते हैं तथा न्याय में देरी होती है।
इस अधिनियम के अंतर्गत विशेष न्यायालय की स्थापना करने का उद्देश्य यही है कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को शीघ्र न्याय उपलब्ध कराया जा सके तथा उनके लिए एक विशेष न्यायाधीश को बैठाया जा सके। उस विशेष न्यायाधीश की अदालत में विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति की व्यवस्था धारा 15 के अंतर्गत की गई है।
अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा को इस आलेख में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है जो इस प्रकार है:-
धारा-5:-
[विशेष लोक अभियोजक और अनन्य लोक अभियोजक-
(1) राज्य सरकार, प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम-से-कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति करेगी।
(2) राज्य सरकार, प्रत्येक अनन्य विशेष न्यायालय के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अनन्य लोक अभियोजक को विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम-से-कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए अनन्य लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।]
जैसा कि इस धारा के अध्ययन से यह ज्ञान होता है कि इस धारा की उपधारा 1 किसी एक विशेष न्यायालय के लिए एक लोक अभियोजक की व्यवस्था करने पर निर्देश देती है अर्थात एक विशेष न्यायालय एक से अधिक जिलों के लिए हो सकता है तथा उच्च न्यायालय में एक विशेष लोक अभियोजक होगा। एक विशेष लोक अभियोजक अनेक विशेष न्यायालयों के लिए नहीं हो सकता अपितु उसे केवल एक ही न्यायालय में कार्य करना होगा जहां उसे नियुक्त किया जाता है।
इस धारा का दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कोई भी ऐसे व्यक्ति को जिसे विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया है उसे कम से कम 7 वर्ष का विधि व्यवसाय का अनुभव होना चाहिए अर्थात उसे 7 वर्ष तक वकील के रूप में अदालतों में कार्य करने का अनुभव होना चाहिए। यह अनुभव इसीलिए निरूपित किया गया है क्योंकि जितना अधिक अनुभवी व्यक्ति अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के न्याय हेतु कार्य करेगा उतना ही उनके हित में श्रेष्ठ होगा।
एक लोक अभियोजक न्यायालय में मामले का संचालन करता है इसीलिए एक लोक अभियोजक को अनुभवी होना भी आवश्यक होता है। कोई भी नया व्यक्ति पारंपरिक रूप से कार्य करने में सक्षम नहीं होता। अनुभवी लोक अभियोजक होने से पीड़ितों को न्याय मिलने की संभावना भी अधिक होती है वह प्रकरण को ठीक से साबित भी कर पाने में सक्षम होते हैं।
विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति:-
या तो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार सम्बन्धित न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन से विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति कर सकती है।
लोक अभियोजक की नियुक्ति स्वत: परिवादी के आवेदन पर नहीं हो सकती है। ऐसे विशेष कारण होते है जो इसके बारे में अभिलिखित किये जाने चाहिए कि विशेष लोक अभियोजक को नियुक्त करते समय सामान्य नियम से विचलन क्यों किया गया है, आवेदन की प्राधिकारी के द्वारा उचित रूप से जाँच की जानी है और अभिलेख पर सामग्री के आधार पर समाधान हो जाने पर विशेष लोक अभियोजक को नियुक्त किया जा सकता है। बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये यदि आदेश पारित किया जाता है, तब यह मनमानेपन की कोटि में आ सकता है। ऐसी नियुक्ति केवल और केवल तब की जा सकती है, जब लोकहित ऐसी माँग करता है।
नियमावली के नियम 4 (5) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपखण्ड मजिस्ट्रेट ऐसे शुल्क के संदाय पर जैसे वह उपयुक्त समझे, विशेष न्यायालयों में मामलों को संचालित करने के लिए विख्यात वरिष्ठ अधिवका नियुक्त कर सकता है "यदि अत्याचार के पीड़ित व्यक्ति के द्वारा ऐसी इच्छा व्यक्त की जाए। राजस्थान उच्च न्यायालय ने ऐसी नियुक्ति को भी संपुष्ट किया तथा समान परिस्थितियों में इस उच्च न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे प्रत्यावेदन पर विचार करने के लिए भी निर्देशित किया।
किसी मामले या मामले के समूह के लिए विशेष लोक अभियोजक को नियुक्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 (8) के अधीन राज्य सरकार द्वारा की जाती है। किसी व्यक्ति को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करना सरकार का प्रसाद है। ऐसे मामलों में प्रसाद का सिद्धान्त लागू होगा। विशेष लोक अभियोजक के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति को इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है अथवा चुनौती नहीं दी जा सकती है कि कलेक्टर का आदेश राज्य सरकार द्वारा जारी की गयी अधिसूचना को निर्दिष्ट नहीं करता है।
धारा 24 (8), दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति किसी विशेष जिले के सम्बन्ध में नहीं होती है, न तो प्रावधान यह अनुचिंतन अथवा निबंन्धित करता है कि केवल सम्बद्ध सत्र न्यायालय के समक्ष "दस वर्ष" का व्यवसाय रखने वाले अधिवक्ता को ही विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया जायेगा।
किसी जिले में धारा 24 (8), दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन अपेक्षा को संतुष्ट करने वाला कोई अधिवला, एक अन्य जिले में विशेष मामले/मामलों के वर्ग पर विचार करने के लिए 'विशेष लोक अभियोजक' के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 की उपधारा (4) तथा (5) के अधीन "परामर्श" का अभाव दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 (8) के अधीन विशेष लोक अभियोजक को नियुक्त करने में सरकार के रास्ते में बाधक नहीं होगी।
यह कि जहाँ तक अधिनियम के अधीन स्थापित विशेष न्यायालयों का सम्बन्ध है, अधिनियम तथा नियमावली के अधीन विहित प्रक्रिया विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति को शासित करेगी।
यह सत्य है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 की उपधारा (6) के अधीन राज्य सरकार को अभियोजन अधिकारियों का नियमित कैडर गठित करने वाले व्यक्तियों में से लोक अभियोजक नियुक्त करने के लिए ससक्त किया गया है। तथापि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1999, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार का अपराध कारित करने को निवारित करने के लिए अधिनियमित किया गया विशेष अधिनियमन है और धारा 14 त्वरित विचारण प्रदान करने के प्रयोजन के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करती है।
अधिनियम की धारा 15 पुनः यह प्रावधान करती है कि प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस न्यायालय में मामलों को संचालित करने के प्रयोजन के लिए लोक अभियोजक अथवा विशेष लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी। इसके अनुकल्प में, अधिवक्ता जो सात वर्ष से अनधिक अवधि तक अधिवक्ता के रूप में व्यवसाय किया हो, भी नियम 4 के अधीन उक्त प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, राज्य सरकार को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिश पर विशेष न्यायालयों में मामलों को संचालित करने के लिए ऐसे विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ताओं का, जो सात वर्ष से अनधिक का व्यवसाय किये हों, पैनल तैयार करना है। नियम 4 अभियोजन निदेशक के परामर्श से राज्य सरकार के द्वारा तैयार किये जाने वाले लोक अभियोजकों के पैनल के विनिर्देश के लिए प्रावधान करता है। दोनों उक्त पैनल राज्य के शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किये जायेंगे और तीन वर्ष की अवधि तक प्रवर्तन में रहेंगे। अधिनियम की धारा 20 यह प्रावधान करती है कि अधिनियम के प्रावधान तत्समय प्रवृत्त अन्य विधियों पर अभिभावी होंगे।
विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति राज्य का विशेषाधिकार- इसके बारे में यह प्रश्न कि क्या किसी मामले में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करना आवश्यक है या नहीं, और यदि ऐसा है तो इसके कारण नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति राज्य के विवेकाधिकार तथा विशेषाधिकार के भीतर होगा। राज्य किसी व्यक्ति के विकल्प पर विवेकाधिकार का अभ्यर्पण नहीं कर सकता है। इस सम्बन्ध में प्रयोग तथा निकाले गये निष्कर्ष को स्वयं नियुक्ति के आदेश से स्पष्ट होना आवश्यक है। उनका मौन से अथवा टिप्पणी की फाइल में समर्थित टिप्पणियों से निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।
लोक अभियोजक की नियुक्ति का ढंग:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के अधीन लोक. अभियोजक (जिसमें अपर लोक अभियोजक तथा विशेष लोक अभियोजक शामिल है) की नियुक्ति का ढंग तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के अधीन सहायक लोक अभियोजक को नियुक्ति का ढंग महत्वपूर्ण रूप से भिन्न है, लोक तथा सहायक लोक अभियोजक की भूमिका तथा स्थिति में गुणात्मक अन्तर है। विधि के अनुक्रम के रूप में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (प) के अधीन 'लोक अभियोजक' की परिभाषा में सहायक लोक अभियोजक शामिल नहीं है। लोक अभियोजक का पद सिविल पद है और सहायक लोक अभियोजक राज्य के कर्मचारी होते हैं, परन्तु यद्यपि लोक अभियोजक "लोक पद" का धारक है और वह 'पद' धारित करता है, फिर भी वह शासकीय सेवा में नहीं होता है।अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :9 अधिनियम के अंतर्गत विशेष लोक अभियोजक (धारा-15)