क्या सीनियर एडवोकेट बनने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और समावेशी होनी चाहिए?

Update: 2025-06-02 11:48 GMT

भारत में सीनियर एडवोकेट (Senior Advocate) की उपाधि वकालत पेशे में एक विशेष सम्मान (Prestigious Honour) मानी जाती है, जो उन वकीलों को दी जाती है जिन्होंने असाधारण योग्यता (Exceptional Ability), ईमानदारी (Integrity), और कानून के विकास में महत्वपूर्ण योगदान (Significant Contribution) दिया हो।

लेकिन लंबे समय से इस प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Fairness) की कमी को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2023) केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और उद्देश्यपूर्ण (Objective) बनाने के लिए 2017 के दिशा-निर्देशों (Guidelines) को सुधारने का अवसर प्राप्त किया।

सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति का कानूनी आधार (Legal Basis of Senior Advocate Designation)

सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति का आधार एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (Advocates Act, 1961) की धारा 16 (Section 16) है, जिसमें वकीलों को दो श्रेणियों में बांटा गया है एडवोकेट (Advocate) और सीनियर एडवोकेट (Senior Advocate)।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को, एडवोकेट की सहमति से, उसे सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित करने का अधिकार है। हालांकि यह प्रावधान बहुत वर्षों से मौजूद है, लेकिन अलग-अलग अदालतों में इसे लागू करने के तरीकों में पारदर्शिता की कमी रही है।

2017 के निर्णय की समीक्षा (Review of the 2017 Judgment)

2017 में इसी मामले में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय (2017) 9 SCC 766 में सुप्रीम कोर्ट ने एक स्थायी समिति (Permanent Committee) बनाने का निर्देश दिया, जिसमें चीफ जस्टिस, दो वरिष्ठतम जज, अटॉर्नी जनरल/एडवोकेट जनरल और बार का एक प्रतिनिधि शामिल थे।

इस समिति को एक अंक-आधारित प्रणाली (Point-Based System) के ज़रिए आवेदकों का मूल्यांकन (Assessment) करने का कार्य सौंपा गया था। इसमें अनुभव, जजमेंट, प्रो बोनो (Pro Bono) काम, विशेषज्ञता (Expertise), लेखन और इंटरव्यू जैसे मानदंड शामिल थे।

2023 के दिशा-निर्देशों में बदलाव (Modifications in 2023 Guidelines)

2023 में, कोर्ट का उद्देश्य पूरे ढांचे को दोबारा बनाना नहीं था, बल्कि पहले से मौजूद नियमों को और बेहतर बनाना था। कोर्ट ने माना कि 2017 के सुधारों के बाद भी व्यावहारिक समस्याएं बनी रहीं।

जैसे कि सीक्रेट बैलेट (Secret Ballot) के ज़रिए मतदान, जो केवल विशेष परिस्थितियों में होना चाहिए था, अब सामान्य प्रक्रिया बन गई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि हर साल कम से कम एक बार सीनियर एडवोकेट नामांकन की प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि योग्य वकील समय पर विचार के लिए आ सकें।

गुप्त मतदान प्रणाली की समीक्षा (Review of Secret Ballot Voting)

कोर्ट ने देखा कि सीक्रेट बैलेट, जिसे केवल विशेष परिस्थितियों में इस्तेमाल होना चाहिए, बार-बार प्रयोग में लाया जा रहा है। इससे पूरी चयन प्रक्रिया का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सीक्रेट बैलेट केवल अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों में ही इस्तेमाल हो और उसका कारण रिकॉर्ड पर हो। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और प्रक्रिया अधिक ईमानदार होगी।

अंक-आधारित मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव (Changes in Point-Based Assessment System)

1. जजमेंट और कानूनी योगदान (Judgments and Legal Contribution)

पहले इस श्रेणी को 40 अंक दिए गए थे, जिसे बढ़ाकर अब 50 कर दिया गया। केवल उन निर्णयों को मान्यता दी जाएगी जो विधिक दृष्टिकोण (Legal Perspective) से महत्वपूर्ण हैं। केवल उपस्थिति (Appearance) के आधार पर अंक नहीं मिलेंगे। आवेदक को यह स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने उस मामले में क्या भूमिका निभाई थी। साथ ही अब वे अपनी सर्वोत्तम पाँच सिनॉप्सिस (Synopses) भी जमा कर सकते हैं जो उनकी तैयारी और योग्यता को दर्शाएंगे।

2. लेखन, शिक्षण और कानूनी शिक्षा में योगदान (Publications, Teaching and Legal Education)

इस श्रेणी के लिए अंक 15 से घटाकर 5 कर दिए गए हैं। कोर्ट ने माना कि अधिकतर प्रैक्टिसिंग वकीलों के पास अकादमिक लेखन (Academic Writing) के लिए समय नहीं होता। लेकिन लेखन, शिक्षण, और गेस्ट लेक्चर जैसी गतिविधियों को शामिल कर इसे अधिक समावेशी बनाया गया है। कोर्ट ने सिंगापुर मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि सीनियर एडवोकेट को कानून के विकास में अकादमिक योगदान भी देना चाहिए।

3. विशेषज्ञता और विविधता (Domain Expertise and Diversity)

कई वकील विशिष्ट ट्रिब्यूनल्स (Specialized Tribunals) जैसे NCLT, TDSAT आदि में काम करते हैं और सुप्रीम कोर्ट में उनकी उपस्थिति कम होती है। ऐसे वकीलों की विशेषज्ञता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने महिला वकीलों और पहले-पहली पीढ़ी के वकीलों (First-Generation Lawyers) को प्रोत्साहित करने की बात कही। इससे पेशे में विविधता (Diversity) और समान अवसर (Equal Opportunity) को बढ़ावा मिलेगा।

व्यक्तिगत इंटरव्यू का महत्व (Importance of Personal Interview)

कुछ लोगों ने इंटरव्यू को समय की बर्बादी बताया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया सीनियर एडवोकेट जैसे सम्मानित पद के लिए ज़रूरी है। इंटरव्यू से अभ्यर्थी की सोच, संप्रेषण (Articulation), और आत्म-विश्वास (Confidence) का मूल्यांकन किया जा सकता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इंटरव्यू की संख्या सीमित हो ताकि प्रक्रिया व्यवहारिक (Practical) रहे।

आयु और अनुभव का विचार (Consideration of Age and Experience)

कोर्ट ने 45 वर्ष से कम उम्र के वकीलों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। लेकिन यह कहा कि इस उम्र से कम में केवल असाधारण वकीलों (Exceptional Advocates) को ही नामित किया जाना चाहिए। ऐसा करके कोर्ट ने प्रतिभाशाली युवाओं के लिए रास्ता खुला रखा है, लेकिन साथ ही गुणवत्ता बनाए रखने पर भी ज़ोर दिया।

लंबित आवेदनों पर असर (Impact on Pending Applications)

अब सभी लंबित आवेदन नए नियमों के अनुसार देखे जाएंगे। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे आवेदकों को अपने आवेदन अपडेट करने की अनुमति दी जाए। इससे सभी के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार होगा।

स्वप्रेरित नामांकन (Suo Motu Designation) की पुन: पुष्टि

कोर्ट ने दोहराया कि Full Court को अब भी यह अधिकार है कि वे किसी वकील को स्वयं (Suo Motu) नामित कर सकते हैं, अगर वह वकील असाधारण और प्रतिष्ठित हो। यह विशेष शक्ति न्यायपालिका के विवेकाधिकार (Discretion) का हिस्सा बनी रहेगी।

इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2023) में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सीनियर एडवोकेट नामांकन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने संतुलन स्थापित किया है—परंपरा (Tradition) और सुधार (Reform), विवेक (Discretion) और मापदंड (Criteria), अनुभव (Experience) और नवाचार (Innovation) के बीच।

यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि भारत की न्यायपालिका केवल नियमों की संरक्षक नहीं है, बल्कि समाज में बदलाव और प्रगति की प्रेरक शक्ति भी है। इस प्रक्रिया से उम्मीद की जाती है कि अधिक प्रतिभाशाली और योग्य वकीलों को पहचान मिलेगी, जिससे न्याय प्रणाली को और बेहतर सहायता प्राप्त होगी।

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