पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 71, 72, 73: पंजीकरण से इनकार के कारणों को दर्ज करना
आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग XII को समझते हैं, जो पंजीकरण से इनकार (Refusal to Register) के महत्वपूर्ण विषय से संबंधित है।
यह भाग उन प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है जिनका पालन तब किया जाता है जब कोई पंजीकरण अधिकारी किसी दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार करता है, और यह भी बताता है कि इनकार से प्रभावित व्यक्ति के पास क्या कानूनी उपाय उपलब्ध हैं। यह पंजीकरण प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
धारा 71. पंजीकरण से इनकार के कारणों को दर्ज करना (Reasons for refusal to register to be recorded)
यह धारा पंजीकरण अधिकारी के एक मूल कर्तव्य को स्थापित करती है: जब वह किसी दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार करता है, तो उसे कारण बताना और उसे रिकॉर्ड करना अनिवार्य है। यह किसी भी मनमानी (arbitrary) इनकार को रोकता है और अपील या आवेदन के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
उपधारा (1) के अनुसार, हर उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) जो किसी दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार करता है, उसे इनकार का एक आदेश (an order of refusal) देना होगा और अपने बुक नंबर 2 (Book No. 2) में ऐसे आदेश के लिए कारणों को दर्ज (record his reasons) करना होगा।
इसका एकमात्र अपवाद यह है कि यदि इनकार इस आधार पर किया गया हो कि संपत्ति उसके उप-जिले में स्थित नहीं है। इस अपवाद का कारण यह है कि यह एक क्षेत्राधिकार (jurisdictional) का मामला है, जिसका समाधान केवल सही उप-रजिस्ट्रार के पास जाकर किया जा सकता है।
• पृष्ठांकन (Endorsement): कारण दर्ज करने के बाद, उप-रजिस्ट्रार को दस्तावेज़ पर "पंजीकरण अस्वीकृत (registration refused)" शब्द भी पृष्ठांकित (endorse) करने होंगे।
• प्रतियों का अधिकार (Right to Copies): दस्तावेज़ को निष्पादित करने वाले या उसके तहत दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा आवेदन करने पर, उप-रजिस्ट्रार को बिना किसी भुगतान या अनावश्यक देरी के, उसे दर्ज किए गए कारणों की एक प्रति देनी होगी। यह सुनिश्चित करता है कि आवेदक को पता चले कि इनकार का कारण क्या था, ताकि वह आगे की कानूनी कार्रवाई कर सके।
उदाहरण 1 (उचित इनकार): मान लीजिए कि रमेश अपनी संपत्ति का बिक्री विलेख प्रस्तुत करता है, लेकिन उसने आवश्यक स्टांप शुल्क (stamp duty) का भुगतान नहीं किया है।
उप-रजिस्ट्रार दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार कर देता है। वह अपनी बुक नंबर 2 में दर्ज करेगा कि "दस्तावेज़ में स्टांप शुल्क अपर्याप्त है"। वह दस्तावेज़ पर "पंजीकरण अस्वीकृत" लिखेगा और रमेश के अनुरोध पर उसे कारणों की एक प्रति देगा। रमेश इस इनकार के खिलाफ अपील कर सकता है, जैसा कि हम आगे देखेंगे।
उपधारा (2) में एक और महत्वपूर्ण नियम है। जब तक और तब तक, जब तक बाद में निहित प्रावधानों के तहत दस्तावेज़ को पंजीकृत करने का निर्देश नहीं दिया जाता, तब तक कोई भी पंजीकरण अधिकारी ऐसे पृष्ठांकित दस्तावेज़ को पंजीकरण के लिए स्वीकार नहीं करेगा। यह नियम अनावश्यक बार-बार प्रस्तुतीकरण को रोकता है और आवेदक को अपील या आवेदन की प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य करता है।
• उदाहरण 2 (पुनः प्रस्तुतीकरण का निषेध): रमेश ने जिस दस्तावेज़ पर "पंजीकरण अस्वीकृत" पृष्ठांकित था, उसे फिर से उसी उप-रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत किया। उप-रजिस्ट्रार को उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। रमेश को पहले अपील करनी होगी और यदि अपील के बाद उसे पंजीकरण का आदेश मिलता है, तभी वह दस्तावेज़ को फिर से प्रस्तुत कर सकता है।
यह धारा आवेदक को पंजीकरण अधिकारी के इनकार के पीछे के कारण को जानने का अधिकार देती है, जो उसे आगे की कार्यवाही के लिए सशक्त बनाता है।
धारा 72. निष्पादन से इनकार के अलावा अन्य आधारों पर पंजीकरण से इनकार के आदेशों के विरुद्ध रजिस्ट्रार को अपील (Appeal to Registrar from orders of Sub-Registrar refusing registration on ground other than denial of execution)
यह धारा पंजीकरण से इनकार के लिए अपील का प्राथमिक तंत्र प्रदान करती है, लेकिन केवल उन आधारों पर जो निष्पादन से इनकार (denial of execution) के अलावा हैं। "निष्पादन से इनकार" के मामले के लिए एक अलग प्रक्रिया है, जिसे हम अगले खंड में देखेंगे।
उपधारा (1) के अनुसार, जहाँ इनकार निष्पादन से इनकार के आधार पर नहीं किया गया है, वहाँ एक उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) द्वारा पंजीकरण के लिए एक दस्तावेज़ को स्वीकार करने से इनकार करने के आदेश के विरुद्ध अपील (appeal) होगी। यह अपील उस रजिस्ट्रार (Registrar) के पास की जाएगी जिसके अधीनस्थ वह उप-रजिस्ट्रार है। अपील का यह अधिकार तब भी होता है जब दस्तावेज़ का पंजीकरण अनिवार्य (compulsory) हो या ऐच्छिक (optional) हो।
• अपील की समय-सीमा (Time Limit for Appeal): यह अपील आदेश की तारीख से तीस दिनों (thirty days) के भीतर उस रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत की जानी चाहिए। यह अपील दायर करने के लिए एक सख्त समय सीमा है।
• रजिस्ट्रार की शक्ति (Registrar's Power): अपील पर, रजिस्ट्रार ऐसे आदेश को उलट (reverse) या परिवर्तित (alter) कर सकता है।
उदाहरण 1 (अपील): रमेश ने अपनी संपत्ति का बिक्री विलेख प्रस्तुत किया, लेकिन उप-रजिस्ट्रार ने पंजीकरण से इनकार कर दिया क्योंकि दस्तावेज़ में एक मामूली वर्तनी की गलती थी। यह निष्पादन से इनकार का मामला नहीं है। रमेश को धारा 71 के तहत कारणों की एक प्रति मिलती है। वह तीस दिनों के भीतर रजिस्ट्रार के पास अपील करता है। रजिस्ट्रार पाता है कि गलती मामूली है और पंजीकरण से इनकार करने का कोई ठोस कारण नहीं है। वह उप-रजिस्ट्रार के आदेश को उलट देता है और पंजीकरण का निर्देश देता है।
उपधारा (2) में बताया गया है कि यदि रजिस्ट्रार का आदेश दस्तावेज़ को पंजीकृत करने का निर्देश देता है, और दस्तावेज़ ऐसे आदेश के दिए जाने के तीस दिनों (thirty days) के भीतर विधिवत पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो उप-रजिस्ट्रार को उसका पालन करना होगा।
इस स्थिति में, उप-रजिस्ट्रार धारा 58, 59 और 60 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेगा, जहाँ तक यह संभव हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा पंजीकरण उस तरह से प्रभावी होगा जैसे कि दस्तावेज़ को पहली बार विधिवत पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया गया था। यह पंजीकरण के पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect) के सिद्धांत को बनाए रखता है।
• उदाहरण 2 (पंजीकरण का पूर्वव्यापी प्रभाव): रमेश ने 1 जनवरी को दस्तावेज़ प्रस्तुत किया था। उप-रजिस्ट्रार ने 10 जनवरी को इनकार कर दिया। रजिस्ट्रार ने 10 फरवरी को अपील पर रमेश के पक्ष में आदेश दिया। रमेश 20 फरवरी को दस्तावेज़ को फिर से उप-रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत करता है। उप-रजिस्ट्रार को इसे पंजीकृत करना होगा, और यह कानूनी रूप से 1 जनवरी से प्रभावी माना जाएगा, न कि 20 फरवरी से।
धारा 73. जहां उप-रजिस्ट्रार निष्पादन से इनकार के आधार पर पंजीकरण से इनकार करता है, वहां रजिस्ट्रार को आवेदन (Application to Registrar where Sub-Registrar refuses to register on ground of denial of execution)
यह धारा उन मामलों के लिए एक विशेष प्रक्रिया प्रदान करती है जहाँ पंजीकरण से इनकार का आधार निष्पादन से इनकार (denial of execution) है। यह केवल एक अपील नहीं है, बल्कि एक अधिक औपचारिक और न्यायिक प्रकृति का आवेदन (application) है। यह सुनिश्चित करता है कि दस्तावेज़ को निष्पादित करने से इनकार करने के गंभीर आरोप की पूरी जांच हो।
उपधारा (1) के अनुसार, जब एक उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) किसी ऐसे दस्तावेज़ को पंजीकृत करने से इनकार करता है क्योंकि किसी ऐसे व्यक्ति ने, जिसने इसे निष्पादित करने का दावा किया है, या उसके प्रतिनिधि या असाइनी ने, इसके निष्पादन से इनकार (denies its execution) किया है, तो ऐसे दस्तावेज़ के तहत दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति, या उसका प्रतिनिधि, असाइनी या अधिकृत एजेंट, इनकार के आदेश के दिए जाने के तीस दिनों (thirty days) के भीतर उस रजिस्ट्रार (Registrar) को आवेदन कर सकता है जिसके अधीनस्थ वह उप-रजिस्ट्रार है। आवेदन का उद्देश्य दस्तावेज़ को पंजीकृत कराने के अपने अधिकार को स्थापित करना है।
• उदाहरण 1 (निष्पादन से इनकार): मान लीजिए कि दिनेश ने एक बिक्री विलेख पर हस्ताक्षर किए, लेकिन जब वह उसे पंजीकृत कराने के लिए उप-रजिस्ट्रार के सामने पेश हुआ, तो उसने कहा, "यह मेरे हस्ताक्षर नहीं हैं।" उप-रजिस्ट्रार दिनेश के इस इनकार के आधार पर पंजीकरण से इनकार कर देगा। दिनेश से ज़मीन खरीदने का दावा करने वाला व्यक्ति, करण, अब धारा 73 के तहत रजिस्ट्रार के पास आवेदन कर सकता है।
उपधारा (2) में आवेदन के लिए औपचारिक आवश्यकताओं को निर्धारित किया गया है।
• आवेदन लिखित में होगा (in writing)।
• इसके साथ धारा 71 के तहत दर्ज किए गए कारणों की एक प्रति संलग्न (accompanied by a copy of the reasons) होगी।
• आवेदन में दिए गए बयानों को आवेदक द्वारा उसी तरह से सत्यापित (verified) किया जाएगा जैसा कि कानून द्वारा वादों (plaints) के सत्यापन के लिए आवश्यक है। यह प्रक्रिया सिविल कोर्ट में याचिका दायर करने के समान है, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है।
उदाहरण 2 (आवेदन प्रक्रिया): दिनेश द्वारा निष्पादन से इनकार करने के बाद, करण, जो ज़मीन का खरीदार है, रजिस्ट्रार को एक लिखित आवेदन देता है। वह आवेदन के साथ उप-रजिस्ट्रार द्वारा दर्ज किए गए कारणों की एक प्रति संलग्न करता है।
वह आवेदन में दिए गए तथ्यों को शपथ पर सत्यापित करता है, जिसमें वह दावा करता है कि दिनेश ने वास्तव में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद, रजिस्ट्रार मामले की जांच करता है, जिसमें वह गवाहों को बुला सकता है और सबूतों की जांच कर सकता है, जैसा कि धारा 74 में बताया गया है (जो इस भाग में बाद में आती है)।
यह धाराएँ मिलकर पंजीकरण से इनकार के दो अलग-अलग रास्तों को परिभाषित करती हैं:
1. धारा 72 के तहत एक साधारण अपील (appeal), जो प्रक्रियात्मक या तकनीकी कारणों पर आधारित है।
2. धारा 73 के तहत एक अधिक विस्तृत और न्यायिक आवेदन (application), जो निष्पादन से इनकार के गंभीर आरोप से संबंधित है।
यह विभाजन यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक प्रकार के इनकार के लिए एक उचित और न्यायसंगत प्रक्रिया उपलब्ध हो। यह कानूनी तंत्र एक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है और मनमाने पंजीकरण से इनकार को रोकता है।