भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 की धारा 70, 71 और 72: अभियोजन , क्षेत्राधिकार और मुकदमे की सुनवाई से जुड़े कानूनी प्रावधान

भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) एक महत्वपूर्ण कानून है जो कानूनी दस्तावेजों (Legal Documents) पर स्टांप शुल्क (Stamp Duty) लगाने और सरकार के राजस्व (Revenue) की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम के अध्याय VII में अपराध (Criminal Offences) और न्यायिक प्रक्रिया (Legal Procedure) से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।
धारा 70, 71 और 72 उन मामलों को नियंत्रित करती हैं जहां स्टांप शुल्क से बचने के लिए कानून का उल्लंघन किया जाता है। ये प्रावधान यह तय करते हैं कि किस अधिकारी की अनुमति से अभियोजन शुरू हो सकता है, कौन-सा मजिस्ट्रेट (Magistrate) इन मामलों की सुनवाई कर सकता है और मुकदमा (Trial) कहां चलाया जा सकता है।
इस लेख में इन धाराओं को सरल भाषा में समझाया गया है ताकि आम लोगों को भी यह कानून आसानी से समझ में आ सके।
धारा 70: अभियोजन (Prosecution) की अनुमति और प्रक्रिया
1. अभियोजन (Prosecution) के लिए अनुमति आवश्यक
कोई भी व्यक्ति अगर भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत अपराध करता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी की अनुमति लेना आवश्यक होता है। आमतौर पर यह अनुमति कलेक्टर (Collector) या राज्य सरकार (State Government) द्वारा नामित अन्य अधिकारी देते हैं।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिना ठोस आधार के किसी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया में न घसीटा जाए और केवल वास्तविक मामलों पर ही कार्रवाई की जाए।
उदाहरण (Illustration)
अगर श्रीमान अ (Mr. A) ने बिना उचित स्टांप शुल्क चुकाए एक प्रॉमिसरी नोट (Promissory Note) जारी किया, तो उसके खिलाफ कार्रवाई तभी होगी जब कलेक्टर या कोई अधिकृत अधिकारी इसकी अनुमति देगा।
2. अभियोजन को रोकने या समझौता (Settlement) करने की शक्ति
अगर किसी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज किया जाता है, तो सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वह या तो मुकदमे को रोक (Stop the Prosecution) सकती है या मामला सुलझाने (Settle) के लिए समझौता कर सकती है।
समझौते की स्थिति में, आरोपी को मुकदमे का सामना करने के बजाय एक निश्चित राशि (Fine) चुकानी पड़ती है, जिसे अपराध का निपटारा (Compounding of Offence) कहा जाता है।
उदाहरण (Illustration)
अगर श्रीमान बी (Mr. B) ने किसी दस्तावेज़ पर चिपकने वाले स्टांप (Adhesive Stamp) को ठीक से रद्द नहीं किया, तो सरकार उसे कोर्ट में घसीटने के बजाय एक निश्चित जुर्माना (Fine) देकर मामला सुलझाने का अवसर दे सकती है।
3. जुर्माने की वसूली (Recovery of Fine)
अगर कोई व्यक्ति समझौते के तहत तय जुर्माना नहीं चुकाता, तो सरकार उसे धारा 48 (Section 48) के तहत उसकी संपत्ति (Property) को ज़ब्त (Seize) करके राशि की वसूली कर सकती है।
उदाहरण (Illustration)
अगर श्रीमान सी (Mr. C) ने एक गलत स्टांप दस्तावेज (Stamped Document) जारी किया और सरकार ने उसे 5,000 रुपये जुर्माना देने का आदेश दिया, लेकिन उसने यह राशि नहीं चुकाई, तो सरकार उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है।
धारा 71: मजिस्ट्रेट (Magistrate) का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)
1. कौन-सा मजिस्ट्रेट (Magistrate) मुकदमे की सुनवाई कर सकता है?
स्टांप अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई केवल न्यायिक अनुभव वाले मजिस्ट्रेट (Experienced Magistrates) ही कर सकते हैं।
• द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट (Magistrate of the Second Class) या उससे ऊपर के न्यायिक अधिकारी ही इन मामलों की सुनवाई कर सकते हैं।
• बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट (Presidency Magistrate) को ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार दिया गया है।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्टांप अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई किसी अनुभवहीन अधिकारी द्वारा न की जाए।
उदाहरण (Illustration)
अगर श्रीमान डी (Mr. D) ने बिना स्टांप शुल्क चुकाए शेयर वारंट (Share Warrant) जारी किए, तो उसका मामला केवल द्वितीय श्रेणी या उससे वरिष्ठ मजिस्ट्रेट (Senior Magistrate) ही सुन सकता है।
धारा 72: मुकदमे की सुनवाई (Trial) कहां होगी?
1. मुकदमा (Trial) कहां चल सकता है?
स्टांप अधिनियम के उल्लंघन से जुड़े मामलों की सुनवाई अलग-अलग स्थानों पर हो सकती है, जो निम्नलिखित में से कोई भी हो सकता है:
1. जहां अपराध हुआ – जिस जिले में स्टांप शुल्क से जुड़ा अपराध किया गया, वहां मुकदमा चल सकता है।
2. जहां दस्तावेज़ पाया गया – अगर कोई अवैध दस्तावेज़ किसी अन्य जिले में पाया गया, तो वहां भी मुकदमा चल सकता है।
3. जहां आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनुसार मुकदमा चल सकता है – इस प्रावधान से न्यायिक प्रक्रिया को लचीला (Flexible) और प्रभावी बनाया गया है ताकि आरोपी कानून से बच न सके।
उदाहरण (Illustration)
अगर श्रीमान ई (Mr. E) ने मुंबई (Mumbai) में एक जाली स्टांप दस्तावेज बनाया, लेकिन वह दस्तावेज़ दिल्ली (Delhi) में मिला, तो मुकदमा मुंबई या दिल्ली में से किसी भी जगह चल सकता है।
धारा 70, 71 और 72 स्टांप शुल्क उल्लंघन से जुड़े मामलों के अभियोजन (Prosecution), क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) और सुनवाई (Trial) की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित (Systematic) करने में मदद करती हैं।
ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं :
1. बिना अनुमति के किसी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया जाए।
2. केवल अनुभवी न्यायिक अधिकारी ही मामलों की सुनवाई करें।
3. मुकदमे की सुनवाई लचीले तरीके से उचित स्थानों पर की जा सके।
इससे सरकार को स्टांप शुल्क से होने वाले राजस्व हानि (Revenue Loss) को रोकने में सहायता मिलती है और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी (Transparent) और प्रभावी (Effective) बनी रहे।