भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 63-67: फर्मों में परिवर्तनों का अभिलेखन, गलतियों का सुधार, और रिकॉर्ड का निरीक्षण
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के ये खंड पंजीकृत (Registered) फर्मों से संबंधित महत्वपूर्ण परिवर्तनों को आधिकारिक रूप से दर्ज करने, रजिस्ट्रार के पास उपलब्ध जानकारी में किसी भी गलती को सुधारने, और सार्वजनिक रिकॉर्ड के निरीक्षण (Inspection) व प्रतियों (Copies) के प्रावधानों को निर्धारित करते हैं। ये धाराएँ फर्मों के बारे में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी की सटीकता, पारदर्शिता और पहुंच सुनिश्चित करती हैं, जो तीसरे पक्षों और फर्म के स्वयं के लिए महत्वपूर्ण है।
धारा 63: फर्म में परिवर्तनों और विघटन का अभिलेखन; नाबालिग के निष्कासन का अभिलेखन (Recording of Changes in and Dissolution of a Firm; Recording of Withdrawal of a Minor)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 63 पंजीकृत फर्म की संरचना (Constitution) में होने वाले महत्वपूर्ण बदलावों और फर्म के विघटन (Dissolution) को दर्ज करने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करती है। यह नाबालिग भागीदार (Minor Partner) से संबंधित स्थिति को भी संबोधित करती है:
1. फर्म की संरचना में परिवर्तन या विघटन की सूचना (Notice of Change in Firm's Constitution or Dissolution): जब एक पंजीकृत फर्म की संरचना में कोई बदलाव होता है – उदाहरण के लिए, कोई नया भागीदार (Incoming Partner) शामिल होता है, कोई जारी रहने वाला भागीदार (Continuing Partner) बना रहता है, या कोई बाहर जाने वाला भागीदार (Outgoing Partner) फर्म छोड़ देता है (जैसा कि धारा 31 और धारा 32 में वर्णित है) – तो ऐसे किसी भी भागीदार द्वारा रजिस्ट्रार (Registrar) को इसकी सूचना दी जा सकती है। इसी तरह, जब एक पंजीकृत फर्म भंग (Dissolved) हो जाती है (जैसा कि अध्याय VI में विस्तृत है), तो विघटन से ठीक पहले जो व्यक्ति भागीदार था, या ऐसे भागीदार/व्यक्ति का विशेष रूप से अधिकृत एजेंट, रजिस्ट्रार को इस परिवर्तन या विघटन की सूचना दे सकता है। इस सूचना में परिवर्तन या विघटन की तारीख (Date) स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए। रजिस्ट्रार, यह सूचना प्राप्त होने पर, फर्मों के रजिस्टर (Register of Firms) में फर्म से संबंधित प्रविष्टि में इसका एक रिकॉर्ड (Record) बनाएगा। वह इस सूचना को धारा 59 (Section 59) के तहत दायर फर्म से संबंधित मूल विवरण (Original Statement) के साथ फाइल (File) करेगा। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि फर्म की कानूनी स्थिति सार्वजनिक रिकॉर्ड में हमेशा अद्यतन और सटीक रूप से प्रतिबिंबित हो, जिससे तीसरे पक्ष के लिए फर्म की वर्तमान संरचना को समझना आसान हो जाता है।
2. नाबालिग की स्थिति में परिवर्तन की सूचना (Notice of Change in Minor's Status): यह उप-धारा नाबालिग भागीदार से संबंधित एक विशिष्ट स्थिति से निपटती है। जब एक नाबालिग, जिसे भागीदारी के लाभों में शामिल किया गया था (धारा 30 (Section 30) के तहत), वयस्कता (Majority) प्राप्त करता है और भागीदार बनने या न बनने का चुनाव करता है, और उस समय फर्म एक पंजीकृत फर्म है, तो वह नाबालिग, या उसका विशेष रूप से अधिकृत एजेंट, रजिस्ट्रार को यह सूचना दे सकता है कि वह भागीदार बन गया है या नहीं बन गया है। रजिस्ट्रार इस सूचना को उप-धारा (1) में बताए गए तरीके से संभालेगा। इसका मतलब है कि रजिस्ट्रार फर्मों के रजिस्टर में नाबालिग की स्थिति में इस बदलाव को दर्ज करेगा, जो उसके अधिकारों और देनदारियों को प्रभावित करता है (धारा 30 (7) और 30 (8) के अनुसार)। यह सुनिश्चित करता है कि नाबालिग की कानूनी स्थिति में परिवर्तन सार्वजनिक रिकॉर्ड में सही ढंग से दर्ज हो।
धारा 64: गलतियों का सुधार (Rectification of Mistakes)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 64 रजिस्ट्रार को फर्मों के रजिस्टर में दर्ज जानकारी में हुई किसी भी गलती को सुधारने की शक्ति देती है:
1. रजिस्ट्रार द्वारा सुधार की शक्ति (Registrar's Power to Rectify): रजिस्ट्रार को किसी भी समय किसी भी गलती को सुधारने की शक्ति होगी ताकि फर्मों के रजिस्टर में किसी भी फर्म से संबंधित प्रविष्टि को इस अध्याय के तहत दायर उस फर्म से संबंधित दस्तावेजों के अनुरूप लाया जा सके। यह रजिस्ट्रार को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि सार्वजनिक रिकॉर्ड में दर्ज जानकारी सटीक है और मूल दायर किए गए दस्तावेजों से मेल खाती है। उदाहरण के लिए, यदि पंजीकरण के दौरान फर्म के पते में कोई टाइपो (Typo) हो गया था और यह मूल दस्तावेज में सही है, तो रजिस्ट्रार इस गलती को ठीक कर सकता है।
2. पक्षकारों के आवेदन पर सुधार (Rectification on Application of Parties): इस अध्याय के तहत दायर किसी फर्म से संबंधित किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले सभी पक्षों (All Parties Who Have Signed) द्वारा आवेदन करने पर, रजिस्ट्रार ऐसे दस्तावेज में या फर्मों के रजिस्टर में बनाए गए उसके रिकॉर्ड या नोट में किसी भी गलती को सुधार सकता है। यह भागीदारों को यह अधिकार देता है कि यदि उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों या रजिस्टर में दर्ज प्रविष्टियों में कोई त्रुटि (Error) है, तो वे रजिस्ट्रार से उसे सुधारने का अनुरोध कर सकें। यह प्रक्रिया भागीदारों के सहयोग से रिकॉर्ड की सटीकता सुनिश्चित करती है।
धारा 65: न्यायालय के आदेश द्वारा रजिस्टर में संशोधन (Amendment of Register by Order of Court)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 65 न्यायालय के हस्तक्षेप (Court Intervention) से रजिस्टर में होने वाले संशोधनों को संबोधित करती है। एक न्यायालय (Court) जो एक पंजीकृत फर्म से संबंधित किसी भी मामले का निर्णय करता है, वह यह निर्देश दे सकता है कि रजिस्ट्रार फर्मों के रजिस्टर में उस फर्म से संबंधित प्रविष्टि में कोई भी ऐसा संशोधन करे जो उसके निर्णय के परिणामस्वरूप हो। रजिस्ट्रार तदनुसार (Accordingly) प्रविष्टि में संशोधन करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी निर्णयों, जैसे कि भागीदारी की संरचना या विघटन से संबंधित निर्णय, को रजिस्ट्रार के आधिकारिक रिकॉर्ड में सही ढंग से प्रतिबिंबित किया जाए। उदाहरण के लिए, यदि न्यायालय किसी भागीदार के निष्कासन को वैध मानता है (जैसा कि धारा 44 में संभव है), तो वह रजिस्ट्रार को फर्म के रिकॉर्ड में इस बदलाव को दर्ज करने का निर्देश दे सकता है।
धारा 66: रजिस्टर और दायर किए गए दस्तावेजों का निरीक्षण (Inspection of Register and Filed Documents)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 66 सार्वजनिक रिकॉर्ड तक पहुंच (Access to Public Records) के सिद्धांत को बनाए रखती है:
1. फर्मों के रजिस्टर का निरीक्षण (Inspection of Register of Firms): फर्मों का रजिस्टर किसी भी व्यक्ति द्वारा निर्धारित शुल्क (Prescribed Fee) के भुगतान पर निरीक्षण के लिए खुला (Open to Inspection) रहेगा। यह प्रावधान किसी भी इच्छुक व्यक्ति, जैसे संभावित लेनदार (Creditors), व्यावसायिक भागीदार (Business Partners), या शोधकर्ता (Researchers) को फर्म की आधिकारिक जानकारी तक पहुंचने की अनुमति देता है। यह व्यावसायिक व्यवहार में पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ावा देता है।
2. दायर किए गए दस्तावेजों का निरीक्षण (Inspection of Filed Documents): इस अध्याय के तहत दायर सभी विवरण (Statements), सूचनाएं (Notices) और इंटीमेशन (Intimations) भी निर्धारित शर्तों (Conditions) और शुल्क के भुगतान पर निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे। इसका मतलब है कि केवल रजिस्टर की प्रविष्टियाँ ही नहीं, बल्कि वे मूल दस्तावेज भी जो उन प्रविष्टियों का आधार हैं, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होंगे। यह जानकारी की सत्यता और प्रामाणिकता (Authenticity) को सत्यापित करने की अनुमति देता है।
धारा 67: प्रतियों का अनुदान (Grant of Copies)
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 67 व्यक्तियों को आधिकारिक रिकॉर्ड की प्रतियां (Copies of Official Records) प्राप्त करने का अधिकार देती है। रजिस्ट्रार, आवेदन करने पर और निर्धारित शुल्क का भुगतान करने पर, किसी भी व्यक्ति को फर्मों के रजिस्टर में किसी भी प्रविष्टि या उसके हिस्से की प्रमाणित प्रति (Certified Copy), अपने हस्ताक्षर (Under His Hand) के तहत, प्रदान करेगा। ये प्रमाणित प्रतियां कानूनी कार्यवाही में सबूत (Evidence) के रूप में कार्य कर सकती हैं, जिससे व्यावसायिक लेनदेन और विवादों में विश्वसनीयता और कानूनी निश्चितता (Legal Certainty) आती है।