माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VI अनुबंध के उल्लंघन (Breach of Contract) के लिए उपलब्ध विभिन्न उपायों (Remedies) से संबंधित है। यह उन स्थितियों को स्पष्ट करता है जहाँ या तो विक्रेता (Seller) या खरीदार (Buyer) अपने अनुबंध संबंधी दायित्वों (Contractual Obligations) को पूरा करने में विफल रहता है, और पीड़ित पक्ष (Aggrieved Party) क्या कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
कीमत के लिए वाद (Suit for Price)
धारा 55 उन परिस्थितियों को बताती है जिनमें एक विक्रेता खरीदार पर कीमत वसूलने के लिए मुकदमा कर सकता है:
1. जब संपत्ति हस्तांतरित हो गई हो - धारा 55(1):
जहाँ बिक्री अनुबंध के तहत माल में संपत्ति (Property in the Goods) खरीदार को हस्तांतरित हो गई है और खरीदार अनुबंध की शर्तों के अनुसार माल के लिए भुगतान करने में गलत तरीके से उपेक्षा करता है या इनकार करता है (Wrongfully Neglects or Refuses to Pay), तो विक्रेता उससे माल की कीमत के लिए मुकदमा कर सकता है (May Sue Him for the Price of the Goods)।
यह सबसे सीधा मामला है। एक बार माल का स्वामित्व खरीदार को हस्तांतरित हो जाने के बाद, खरीदार का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह उसके लिए भुगतान करे। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो विक्रेता पूरी कीमत की वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
उदाहरण: रमेश ने सुरेश को अपनी पुरानी कार बेच दी और स्वामित्व सुरेश को हस्तांतरित हो गया। सुरेश ने वादा किया था कि वह एक सप्ताह के भीतर भुगतान करेगा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। रमेश सुरेश पर कार की बिक्री कीमत के लिए मुकदमा कर सकता है।
2. निश्चित दिन पर देय कीमत - धारा 55(2):
जहाँ बिक्री अनुबंध के तहत कीमत एक निश्चित दिन पर देय (Price is Payable on a Day Certain) है, सुपुर्दगी के बावजूद (Irrespective of Delivery), और खरीदार गलत तरीके से ऐसी कीमत का भुगतान करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है, तो विक्रेता उससे कीमत के लिए मुकदमा कर सकता है, भले ही माल में संपत्ति हस्तांतरित न हुई हो और माल अनुबंध के लिए विनियोजित (Appropriated) न किया गया हो।
यह उपधारा एक विशिष्ट स्थिति को संबोधित करती है जहाँ भुगतान की तारीख डिलीवरी की तारीख से स्वतंत्र होती है। इस मामले में, विक्रेता को कीमत के लिए मुकदमा करने के लिए स्वामित्व के हस्तांतरण की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भुगतान का दायित्व निश्चित दिन पर उत्पन्न होता है।
उदाहरण: एक अनुबंध में कहा गया है कि खरीदार को 15 जुलाई तक माल के लिए अग्रिम भुगतान करना होगा, भले ही डिलीवरी 1 अगस्त को हो। यदि खरीदार 15 जुलाई तक भुगतान करने में विफल रहता है, तो विक्रेता उस अग्रिम भुगतान के लिए मुकदमा कर सकता है, भले ही माल अभी तक डिलीवर नहीं हुआ हो और उसका स्वामित्व खरीदार को हस्तांतरित न हुआ हो।
गैर-स्वीकृति के लिए क्षतिपूर्ति (Damages for Non-Acceptance)
धारा 56 उस स्थिति से संबंधित है जहाँ खरीदार माल को स्वीकार करने में विफल रहता है:
जहाँ खरीदार गलत तरीके से माल को स्वीकार करने और भुगतान करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है (Wrongfully Neglects or Refuses to Accept and Pay for the Goods), तो विक्रेता उससे गैर-स्वीकृति के लिए क्षतिपूर्ति (Damages for Non-Acceptance) के लिए मुकदमा कर सकता है।
यह विक्रेता के लिए एक उपाय है जब खरीदार अनुबंध के तहत माल को लेने से इनकार करता है। ऐसे मामलों में, विक्रेता आमतौर पर अनुबंध और बाजार मूल्य के बीच के अंतर के रूप में नुकसान का दावा कर सकता है, साथ ही विक्रेता को माल को संभालने या पुनर्विक्रय करने के कारण हुए किसी भी आकस्मिक खर्च के लिए भी।
उदाहरण: आपने एक खरीदार को ₹500 प्रति किलोग्राम की दर से 100 किलोग्राम सेब बेचने का अनुबंध किया। खरीदार ने सेब लेने से इनकार कर दिया, और बाजार में सेब का मूल्य अब ₹400 प्रति किलोग्राम है। आप ₹100 प्रति किलोग्राम के नुकसान (100 किलोग्राम के लिए ₹10,000) के लिए खरीदार पर मुकदमा कर सकते हैं।
गैर-सुपुर्दगी के लिए क्षतिपूर्ति (Damages for Non-Delivery)
धारा 57 उस स्थिति से संबंधित है जहाँ विक्रेता माल की सुपुर्दगी करने में विफल रहता है:
जहाँ विक्रेता गलत तरीके से खरीदार को माल सुपुर्द करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है (Wrongfully Neglects or Refuses to Deliver the Goods to the Buyer), तो खरीदार विक्रेता से गैर-सुपुर्दगी के लिए क्षतिपूर्ति (Damages for Non-Delivery) के लिए मुकदमा कर सकता है।
यह खरीदार के लिए एक उपाय है जब विक्रेता अनुबंध के तहत माल की सुपुर्दगी करने में विफल रहता है। नुकसान की गणना आमतौर पर अनुबंध और बाजार मूल्य के बीच के अंतर के रूप में की जाती है, साथ ही खरीदार को माल न मिलने के कारण हुए किसी भी उचित नुकसान के लिए भी।
उदाहरण: आपने एक विक्रेता से ₹50,000 में एक विशिष्ट मशीन खरीदने का अनुबंध किया। विक्रेता ने मशीन की सुपुर्दगी करने से इनकार कर दिया, और अब बाजार में वही मशीन ₹60,000 में मिल रही है। आप ₹10,000 के नुकसान के लिए विक्रेता पर मुकदमा कर सकते हैं।
विशिष्ट प्रदर्शन (Specific Performance)
धारा 58 एक असाधारण उपाय (Extraordinary Remedy) प्रदान करती है जिसे विशिष्ट प्रदर्शन (Specific Performance) कहा जाता है:
विशिष्ट राहत अधिनियम, 1877 (1 of 1877) के अध्याय II के प्रावधानों के अधीन, विशिष्ट (Specific) या निर्धारित (Ascertained) माल की सुपुर्दगी के लिए अनुबंध के उल्लंघन के किसी भी वाद में, न्यायालय, यदि वह उचित समझे, वादी (Plaintiff) के आवेदन पर, अपने डिक्री (Decree) द्वारा यह निर्देश दे सकता है कि अनुबंध का विशेष रूप से प्रदर्शन किया जाएगा, प्रतिवादी (Defendant) को क्षतिपूर्ति के भुगतान पर माल को अपने पास रखने का विकल्प दिए बिना।
डिक्री बिना शर्त (Unconditional) हो सकती है, या क्षतिपूर्ति, कीमत के भुगतान या अन्यथा के संबंध में ऐसी शर्तों और निबंधनों पर हो सकती है, जैसा कि न्यायालय उचित समझे, और वादी का आवेदन डिक्री से पहले किसी भी समय किया जा सकता है।
• परिभाषा: विशिष्ट प्रदर्शन का अर्थ है कि न्यायालय उल्लंघन करने वाले पक्ष को वास्तव में अनुबंध को पूरा करने (Actually Perform the Contract) का आदेश देता है, न कि केवल नुकसान का भुगतान करने का। यह एक इक्विटेबल उपाय (Equitable Remedy) है, जिसका अर्थ है कि यह न्यायालय के विवेक पर है।
• कब लागू होता है: यह उपाय आमतौर पर तभी दिया जाता है जब माल अद्वितीय (Unique), दुर्लभ (Rare) या ऐसी प्रकृति का हो कि उसके लिए कोई आसान विकल्प (No Easy Substitute) बाजार में उपलब्ध न हो, जिससे मौद्रिक क्षतिपूर्ति पर्याप्त न हो। यह विशिष्ट या निर्धारित माल (Specific or Ascertained Goods) के लिए लागू होता है, सामान्य या अनिश्चित माल के लिए नहीं।
• विकल्प नहीं: प्रतिवादी को क्षतिपूर्ति का भुगतान करके माल को अपने पास रखने का विकल्प नहीं दिया जाता है; उसे वास्तव में माल को सुपुर्द करना होगा।
उदाहरण: आपने एक डीलर से एक दुर्लभ प्राचीन कलाकृति खरीदने का अनुबंध किया। डीलर बाद में इसे सुपुर्द करने से इनकार कर देता है। आप अदालत से विशिष्ट प्रदर्शन के लिए कह सकते हैं, क्योंकि कलाकृति अद्वितीय है और कोई अन्य समान वस्तु बाजार में नहीं है जिसके लिए केवल मौद्रिक क्षतिपूर्ति पर्याप्त होगी। अदालत डीलर को आपको वह कलाकृति सुपुर्द करने का आदेश दे सकती है।
अमनदीप कौर बनाम पंजाब नेशनल बैंक (Amandeep Kaur v. Punjab National Bank) (एक प्रासंगिक मामला): हालांकि यह सीधे माल विक्रय अधिनियम पर नहीं था, लेकिन यह इक्विटेबल राहत के सिद्धांत पर प्रकाश डालता है, जो यह बताता है कि विशिष्ट प्रदर्शन तब दिया जाता है जब मौद्रिक क्षतिपूर्ति अपर्याप्त होती है। माल विक्रय के संदर्भ में, यह कलाकृतियों, अद्वितीय वस्तुओं, या किसी भी ऐसी चीज़ पर लागू होगा जिसका बाजार में कोई समान प्रतिस्थापन न हो।
माल विक्रय अधिनियम का अध्याय VI अनुबंध के उल्लंघन की स्थिति में पार्टियों के लिए कानूनी सुरक्षा जाल प्रदान करता है। यह विक्रेता और खरीदार दोनों को उचित उपाय उपलब्ध कराता है, चाहे वह कीमत या क्षतिपूर्ति की वसूली के लिए हो, या कुछ मामलों में, अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए हो, जिससे वाणिज्यिक लेनदेन में न्याय और निश्चितता सुनिश्चित हो।