सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अध्याय IX की धाराओं 44 से 47 : सूचना या रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर दंड
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का अध्याय IX "दण्ड, प्रतिकर और न्यायनिर्णय" (Penalties, Compensation and Adjudication) से संबंधित है। इस अध्याय में यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम या इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों या विनियमों का उल्लंघन करता है, तो उसके विरुद्ध क्या कार्रवाई की जाएगी, क्या दंड लगेगा और किस अधिकारी को यह निर्णय लेने का अधिकार होगा।
धारा 44 - सूचना या रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर दंड
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम या इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार किसी दस्तावेज़, रिपोर्ट, विवरण, रिटर्न आदि को नियंत्रक (Controller) या प्रमाणीकरण प्राधिकारी (Certifying Authority) को देने के लिए बाध्य है, और वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो उस पर आर्थिक दंड लगाया जाएगा।
उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी को अपनी डिजिटल प्रमाणपत्रों की स्थिति से संबंधित रिपोर्ट नियंत्रक को प्रत्येक महीने देना आवश्यक है, और वह कंपनी यह रिपोर्ट नहीं देती है, तो उस पर अधिकतम ₹1,50,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति नियत समय में विवरण, सूचना, पुस्तकें या अन्य दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं करता है, तो हर दिन की देरी पर ₹5,000 का जुर्माना लगेगा।
अगर कोई व्यक्ति अपनी पुस्तकों या रिकॉर्ड को बनाए रखने में विफल रहता है, तो हर दिन की विफलता पर ₹10,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
धारा 45 - अवशिष्ट दंड (Residuary Penalty)
इस धारा के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसे नियमों या विनियमों का उल्लंघन करता है, जिनके लिए विशेष रूप से कोई अन्य दंड निर्धारित नहीं किया गया है, तो उस पर अधिकतम ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही, प्रभावित व्यक्ति को अधिकतम ₹25,000 तक का मुआवज़ा भी दिया जा सकता है।
मान लीजिए, कोई व्यक्ति डिजिटल हस्ताक्षर नियमों का उल्लंघन करता है, लेकिन इस उल्लंघन के लिए कोई विशिष्ट दंड अधिनियम में नहीं बताया गया है, तो ऐसी स्थिति में धारा 45 के अंतर्गत उसे ₹25,000 तक का दंड या मुआवजा देना पड़ सकता है।
धारा 46 - न्यायनिर्णय का अधिकार (Power to Adjudicate)
यह धारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत यह तय करती है कि किन अधिकारियों को इस अधिनियम के उल्लंघन पर दंड या प्रतिकर निर्धारित करने का अधिकार होगा।
भारत सरकार किसी ऐसे अधिकारी को जो भारत सरकार में निदेशक (Director) स्तर का हो या राज्य सरकार का समकक्ष अधिकारी हो, न्यायनिर्णय अधिकारी (Adjudicating Officer) के रूप में नियुक्त कर सकती है। ऐसे अधिकारी यह जांच करेंगे कि क्या कोई व्यक्ति अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है या नहीं, और यदि कर रहा है तो क्या दंड या मुआवजा लगाया जाए।
एक महत्त्वपूर्ण संशोधन द्वारा उपधारा (1A) जोड़ी गई है, जिसके अनुसार यदि किसी दावे की राशि ₹5 करोड़ से कम है, तो न्यायनिर्णय अधिकारी उस पर निर्णय ले सकता है। लेकिन ₹5 करोड़ से अधिक के मामलों में केवल सक्षम न्यायालय ही निर्णय करेगा।
उदाहरण के तौर पर, यदि किसी कंपनी की लापरवाही से किसी व्यक्ति को ₹3 करोड़ का नुकसान होता है, तो वह व्यक्ति न्यायनिर्णय अधिकारी के समक्ष मुआवज़े के लिए आवेदन कर सकता है। लेकिन अगर नुकसान ₹6 करोड़ है, तो उसे संबंधित न्यायालय में वाद दायर करना होगा।
न्यायनिर्णय अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि संबंधित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर मिले। जांच पूरी होने के बाद, यदि अधिकारी संतुष्ट होता है कि उल्लंघन हुआ है, तो वह उपयुक्त दंड या मुआवजा निर्धारित कर सकता है।
केवल ऐसे व्यक्ति को न्यायनिर्णय अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है जिसे सूचना प्रौद्योगिकी और कानून या न्याय के क्षेत्र में अनुभव हो, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए।
यदि एक से अधिक अधिकारी नियुक्त किए जाएं, तो केंद्र सरकार यह तय करेगी कि किस अधिकारी को कौन-से मामलों और स्थानों पर अधिकार होंगे।
हर न्यायनिर्णय अधिकारी को सिविल न्यायालय जैसे अधिकार दिए गए हैं। इसका मतलब यह है कि वह जांच करते समय साक्ष्य बुलाने, गवाहों को पेश करने का आदेश देने और रिकॉर्ड की जांच करने जैसे अधिकार रखता है। उसकी कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।
धारा 47 - दंड या मुआवजे की राशि तय करते समय ध्यान में रखे जाने वाले कारक
जब न्यायनिर्णय अधिकारी यह तय करता है कि किसी व्यक्ति को कितना मुआवजा दिया जाना चाहिए या कितना दंड लगाया जाना चाहिए, तो उसे कुछ प्रमुख बातों को ध्यान में रखना होता है।
सबसे पहले, वह यह देखेगा कि दोषी को अपने अनुचित आचरण से कितना अनुचित लाभ मिला। उदाहरण के लिए, अगर किसी हैकर ने किसी बैंक प्रणाली में घुसपैठ कर ₹10 लाख निकाल लिए, तो यह अनुचित लाभ होगा।
दूसरी बात, यह देखी जाएगी कि पीड़ित को कितना नुकसान हुआ। मान लीजिए किसी व्यक्ति की निजी जानकारी लीक होने से उसकी छवि खराब हो गई और उसे व्यवसायिक नुकसान हुआ, तो न्यायनिर्णय अधिकारी यह हानि ध्यान में रखेगा।
तीसरी बात, अगर ऐसा आचरण बार-बार किया गया है, यानी दोषी का कृत्य दोहराव वाला है, तो इसे एक गंभीर मामला माना जाएगा और दंड या मुआवजे की राशि अधिक हो सकती है।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 44 से 47 डिजिटल दुनिया में अनुशासन बनाए रखने का कानूनी ढांचा प्रस्तुत करती हैं। इन धाराओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करके बिना दंड के न बच सके और पीड़ितों को उचित मुआवज़ा मिल सके। इस अधिनियम ने यह भी स्पष्ट किया है कि दंड का निर्धारण केवल आरोप के आधार पर नहीं होगा, बल्कि न्यायसंगत प्रक्रिया के तहत, सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
भारत जैसे देश में, जहाँ डिजिटल क्रांति तेज़ी से हो रही है, यह आवश्यक है कि नागरिक, कंपनियाँ और सरकारें मिलकर इस अधिनियम का पालन करें ताकि साइबर अपराधों और लापरवाह व्यवहार को रोका जा सके और डिजिटल दुनिया को सुरक्षित बनाया जा सके।