राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 43, 44 और 45

Update: 2025-04-29 10:49 GMT

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) न्यायालयों में दायर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के दीवानी वादों (Civil Suits) पर लगने वाले शुल्क (Court Fees) और उनके मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।

इस अधिनियम की धाराएँ 43, 44 और 45 विशेष रूप से सार्वजनिक मामलों (Public Matters), इंटरप्लीडर वादों (Interpleader Suits) और अन्य अप्रदत्त वादों (Suits Not Otherwise Provided For) में शुल्क निर्धारण से संबंधित हैं। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

धारा 43: सार्वजनिक मामलों से संबंधित वादों में शुल्क

धारा 43 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) की धारा 91 या 92 के तहत राहत प्राप्त करने के लिए वाद दायर करता है, तो उसे ₹30 का न्यायालय शुल्क देना होगा।

धारा 91 और 92 सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों से संबंधित हैं, जैसे कि सार्वजनिक अधिकारों का उल्लंघन या धर्मार्थ ट्रस्टों का दुरुपयोग। इन धाराओं के तहत दायर वादों में शुल्क को न्यूनतम रखा गया है ताकि आम जनता न्यायालय की शरण ले सके।

उदाहरण:

यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि किसी सार्वजनिक पार्क का अवैध रूप से निजी उपयोग किया जा रहा है, तो वह धारा 91 के तहत वाद दायर कर सकता है और उसे ₹30 का शुल्क देना होगा।

धारा 44: इंटरप्लीडर वादों में शुल्क

इंटरप्लीडर वाद (Interpleader Suit) वह वाद होता है जिसमें कोई तीसरा पक्ष (Third Party) दो या अधिक व्यक्तियों के बीच किसी संपत्ति या धनराशि पर विवाद होने पर न्यायालय से मार्गदर्शन चाहता है कि वह संपत्ति किसे सौंपे।

धारा 44(1): प्रारंभिक शुल्क

इंटरप्लीडर वाद में प्रारंभिक शुल्क धारा 45 में निर्दिष्ट दरों के अनुसार देय होता है।

धारा 44(2): दावेदारों के बीच मुद्दे तय होने पर शुल्क

यदि दावेदारों के बीच मुद्दे तय होते हैं, तो शुल्क उस ऋण, धनराशि या संपत्ति के बाजार मूल्य के अनुसार देय होगा जो वाद का विषय है। प्रारंभिक शुल्क का क्रेडिट दिया जाएगा, और शेष शुल्क दावेदारों द्वारा समान रूप से साझा किया जाएगा।

धारा 44(3): न्यायालय की क्षेत्राधिकार निर्धारण के लिए मूल्य

न्यायालय की क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) निर्धारण के लिए वाद की विषयवस्तु का मूल्य वही होगा जो ऋण, धनराशि या संपत्ति का बाजार मूल्य है।

उदाहरण:

मान लीजिए, एक बैंक के पास ₹1,00,000 की सावधि जमा राशि है, और दो व्यक्ति उस पर दावा करते हैं। बैंक इंटरप्लीडर वाद दायर करता है। प्रारंभिक शुल्क धारा 45 के अनुसार देय होगा, और यदि दावेदारों के बीच विवाद तय होता है, तो ₹1,00,000 के आधार पर शुल्क की गणना की जाएगी, जिसे दोनों दावेदार समान रूप से साझा करेंगे।

धारा 45: अन्य अप्रदत्त वादों में शुल्क

धारा 45 उन वादों के लिए शुल्क निर्धारण करती है जिनके लिए अधिनियम में अन्यत्र कोई विशेष प्रावधान नहीं है।

शुल्क वाद की विषयवस्तु के मूल्य के अनुसार निम्नानुसार देय होगा:

• ₹1,000 से कम: ₹10

• ₹1,000 से ₹3,000 तक: ₹30

• ₹3,000 से ₹5,000 तक: ₹100

• ₹5,000 से ₹10,000 तक: ₹200

• ₹10,000 से अधिक: ₹300

उदाहरण:

यदि कोई व्यक्ति ₹2,500 की राशि की वसूली के लिए वाद दायर करता है, तो उसे ₹30 का शुल्क देना होगा। यदि वाद की राशि ₹7,000 है, तो शुल्क ₹200 होगा।

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धाराएँ 43, 44 और 45 विभिन्न प्रकार के वादों में शुल्क निर्धारण के स्पष्ट प्रावधान प्रदान करती हैं। धारा 43 सार्वजनिक हित से जुड़े वादों में न्यूनतम शुल्क निर्धारित करती है, जिससे आम जनता को न्यायालय की पहुंच सुलभ होती है।

धारा 44 इंटरप्लीडर वादों में शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया को स्पष्ट करती है, जिससे निष्पक्षता सुनिश्चित होती है। धारा 45 अन्य अप्रदत्त वादों में शुल्क निर्धारण के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करती है, जिससे न्यायालयों में वादों का मूल्यांकन समान रूप से हो सके।

इन प्रावधानों का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी, निष्पक्ष और सुलभ बनाना है, ताकि सभी नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण ले सकें।

Tags:    

Similar News