राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 40-ए से 44 : लम्बरदारों की सेवा समाप्ति और ग्राम सेवकों की नियुक्ति

Update: 2025-05-03 13:26 GMT

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 में ग्राम स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्था और राजस्व संग्रहण के सुचारु संचालन के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 40-ए से लेकर धारा 44 तक विशेष रूप से लम्बरदार व्यवस्था को समाप्त कर ग्राम सेवकों की नई व्यवस्था को लागू करने की दिशा में बनाई गई हैं।

इन धाराओं में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि ग्राम सेवकों की नियुक्ति कैसे होगी, उनकी सूची कैसे बनाई जाएगी, खाली पदों को कैसे भरा जाएगा और उन्हें कितना पारिश्रमिक दिया जाएगा। यह लेख इन सभी धाराओं को सरल भाषा में विस्तार से समझाता है।

धारा 40-ए : लम्बरदारों की सेवा समाप्ति

धारा 40-ए एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन को इंगित करती है। इस धारा के अनुसार, राजस्थान सामान्य व्याख्या अधिनियम, 1955 या किसी अन्य वर्तमान कानून में कुछ भी विपरीत होने के बावजूद, जो भी लम्बरदार इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त किए गए थे या नियुक्त माने गए थे, वे राजस्थान भू राजस्व (संशोधन) अधिनियम, 1963 के प्रारंभ होने की तिथि से लम्बरदार नहीं माने जाएंगे। इसका अर्थ है कि उस दिन से वे लम्बरदार नहीं रहेंगे और उनके ऊपर इस अधिनियम द्वारा सौंपे गए कोई भी अधिकार, कार्य या कर्तव्य लागू नहीं रहेंगे।

लम्बरदारों का प्रमुख कार्य यह होता था कि वे राज्य के लिए राजस्व, किराया अथवा कोई अन्य देय राशि एकत्रित करते थे। अब यह कार्य, जब तक राज्य सरकार अन्यथा न कहे, संबंधित पटवारी द्वारा किया जाएगा। इस प्रकार, एक ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले पद को समाप्त कर दिया गया और राजस्व संग्रह की जिम्मेदारी अब राजस्व विभाग के नियमित कर्मचारी अर्थात पटवारी के हाथों में सौंप दी गई।

उदाहरण : किसी गाँव के लम्बरदार श्री रामस्वरूप जी, जो कई वर्षों से राजस्व वसूली का कार्य कर रहे थे, अब 1963 के संशोधन के बाद अपने पद पर नहीं रहेंगे और उनके स्थान पर संबंधित पटवारी यह कार्य करेगा।

धारा 41 : ग्राम सेवक

धारा 41 में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक गाँव या गाँवों के समूह में, कलेक्टर के निर्देश अनुसार और राज्य सरकार के आदेशों के अधीन, निम्नलिखित ग्राम सेवकों की नियुक्ति और व्यवस्था की जाएगी:

पहला, एक ग्राम चौकीदार या प्रहरी नियुक्त किया जाएगा। इसका कार्य गाँव में सुरक्षा बनाए रखना और आवश्यक सूचनाएँ राजस्व अधिकारियों तक पहुँचाना होता है।

दूसरा, एक ग्राम बलाई नियुक्त होगा, जो परंपरागत रूप से गाँव में सफाई और सामाजिक कार्यों में सहायक होता है।

तीसरा, राज्य सरकार समय-समय पर अधिसूचना द्वारा अन्य ग्राम सेवकों की भी नियुक्ति कर सकती है, जैसे कि जलसेवक, चरवाहा या सफाईकर्मी।

इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गाँवों में न्यूनतम प्रशासनिक और सुरक्षा संरचना बनी रहे और जनता को मूलभूत सेवाएँ मिलती रहें।

धारा 42 : रिक्तियाँ

धारा 42 के अंतर्गत, यदि किसी ग्राम सेवक की मृत्यु, त्यागपत्र, हटाए जाने या किसी अन्य कारण से पद रिक्त होता है, तो उस रिक्ति की सूचना संबंधित पटवारी को देनी होती है। पटवारी को यह सूचना उस घटना के 15 दिनों के भीतर तहसीलदार को देनी आवश्यक होती है।

इसके पश्चात तहसीलदार उस रिक्ति को भरने के लिए नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करता है। यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि किसी गाँव में आवश्यक सेवाएं बाधित न हों और समय पर नए व्यक्ति की नियुक्ति हो सके।

उदाहरण : गाँव के चौकीदार की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। पटवारी को यह सूचना तीन दिन में प्राप्त होती है और वह निर्धारित समय यानी 15 दिन के भीतर तहसीलदार को सूचना भेजता है। तहसीलदार नियमों के अनुसार नए चौकीदार की नियुक्ति की प्रक्रिया आरंभ करता है।

धारा 43 : ग्राम सेवकों का रजिस्टर

इस धारा के अंतर्गत यह अनिवार्य किया गया है कि प्रत्येक तहसील में, तहसीलदार के द्वारा गाँव या गाँवों के समूह के लिए ग्राम सेवकों का एक रजिस्टर तैयार किया जाएगा। यह रजिस्टर कलेक्टर द्वारा निर्धारित समय सीमा में तैयार किया जाना चाहिए और इसमें सभी आवश्यक विवरण जैसे – सेवकों का नाम, नियुक्ति की तिथि, कार्य का प्रकार आदि दर्ज होंगे।

यह रजिस्टर एक स्थायी अभिलेख के रूप में रखा जाएगा और समय-समय पर इसमें होने वाले सभी परिवर्तन जैसे नई नियुक्ति, पद से हटाना, मृत्यु आदि को विधिवत दर्ज किया जाएगा और इन प्रविष्टियों को प्रमाणित भी किया जाएगा।

प्रसंग : मान लीजिए किसी गाँव में चौकीदार बदलता है और नया व्यक्ति नियुक्त होता है, तो इस परिवर्तन को ग्राम सेवकों के रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा और तहसीलदार द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।

धारा 44 : ग्राम सेवकों का पारिश्रमिक

धारा 44 में यह प्रावधान है कि धारा 41 के अंतर्गत नियुक्त किए गए ग्राम सेवकों को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार निर्धारित दरों पर पारिश्रमिक दिया जाएगा। यह पारिश्रमिक किस दर पर और किस विधि से दिया जाएगा, इसका निर्धारण नियमों द्वारा किया जाएगा।

इससे यह सुनिश्चित होता है कि ग्राम सेवकों को उनके कार्य के अनुसार उचित भुगतान मिले और वे अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी और निष्ठा से निभाएँ।

स्पष्टीकरण : यदि सरकार ने नियम बनाया है कि चौकीदार को प्रति माह 3000 रुपये दिए जाएँगे और वह भुगतान ग्राम पंचायत द्वारा नगद या खाते में होगा, तो उस नियम के अनुसार ही सभी चौकीदारों को समान भुगतान किया जाएगा।

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम की धारा 40-ए से 44 तक ग्राम प्रशासन के एक महत्वपूर्ण पक्ष को उजागर करती हैं। इनमें एक ओर लम्बे समय से चली आ रही लम्बरदार प्रणाली को समाप्त करने का ऐतिहासिक निर्णय है, तो दूसरी ओर ग्राम सेवकों की नियुक्ति, कार्य, पारिश्रमिक और प्रशासनिक नियंत्रण की सुव्यवस्थित योजना भी है। इससे न केवल राजस्व संग्रहण और प्रशासन की प्रक्रिया अधिक संगठित हुई, बल्कि ग्राम स्तर पर मूलभूत सेवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई।

यह धाराएँ यह भी दिखाती हैं कि राज्य सरकार ग्रामीण प्रशासन को अधिक प्रभावशाली और जवाबदेह बनाने की दिशा में किस प्रकार कानून के माध्यम से बदलाव कर सकती है। ग्रामवासी, पटवारी, तहसीलदार और अन्य अधिकारी इन प्रावधानों को समझकर यदि उचित तालमेल और जवाबदेही से कार्य करें, तो ग्राम व्यवस्था में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और सुव्यवस्था निश्चित रूप से बढ़ सकती है।

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