वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 34 और 35: Sanctuary के आसपास हथियारों का नियमन

Update: 2025-09-01 11:14 GMT

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, भारत में वन्यजीव संरक्षण की आधारशिला है, जो जानवरों, पौधों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।

हालाँकि यह अधिनियम एक व्यापक और विस्तृत दस्तावेज़ है, लेकिन कुछ धाराएँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन और उनकी पवित्रता पर गहरा असर डालती हैं। इनमें से धारा 34, जो Sanctuary के पास के क्षेत्रों में हथियारों के अनिवार्य Registration से संबंधित है, और धारा 35, जो National Parks की घोषणा और प्रबंधन की विस्तृत प्रक्रिया बताती है, सबसे खास हैं। ये दोनों धाराएँ मिलकर वन्यजीवों के लिए एक सुरक्षित, काफी हद तक मानव-मुक्त वातावरण बनाती हैं।

धारा 34: Sanctuary के आसपास हथियारों का नियमन (Regulation of Arms)

धारा 34 Poaching और अन्य अवैध गतिविधियों के खतरे को कम करने के लिए एक सीधा और लक्षित उपाय है। इसका आधार यह है कि किसी संरक्षित क्षेत्र के पास हथियारों की मौजूदगी Poaching और अन्य अवैध गतिविधियों का एक गंभीर और लगातार जोखिम पैदा करती है। इसे रोकने के लिए, अधिनियम एक सख्त Registration और नियंत्रण प्रणाली (Control Mechanism) लागू करता है।

यह प्रावधान कहता है कि किसी Sanctuary की घोषणा के तीन महीने के भीतर, हर वह व्यक्ति जो उसके दस किलोमीटर के दायरे में रहता है और जिसके पास Arms Act, 1959 के तहत हथियार का लाइसेंस है, उसे अपना नाम Chief Wildlife Warden या एक अधिकृत अधिकारी के पास Register कराना होगा। यह नियम उन लोगों पर भी लागू होता है जिन्हें Arms Act के कुछ प्रावधानों से छूट मिली हुई है, लेकिन फिर भी उनके पास हथियार हैं।

यह अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे Sanctuary के आसपास के सभी कानूनी रूप से रखे गए हथियारों का एक Centralised Record बन जाता है। इससे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जाँच करना आसान हो जाता है, खासकर Poaching की घटना के बाद। इस प्रक्रिया का उद्देश्य हथियार ज़ब्त करना नहीं है, बल्कि उनके मालिकों की जवाबदेही (Accountability) तय करना है।

Chief Wildlife Warden की भूमिका, अधिनियम के अनुसार, आवेदक का नाम Register करना है। यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए आम तौर पर एक औपचारिकता (Formality) होती है जो मानदंडों (Criteria) को पूरा करते हैं, क्योंकि इसका मुख्य लक्ष्य Registration से इनकार करना नहीं है, बल्कि एक व्यापक database बनाए रखना है। हालाँकि, इस धारा की असली ताकत इसके तीसरे Sub-section में निहित है।

यह स्पष्ट रूप से कहता है कि Chief Wildlife Warden की पूर्व सहमति (Prior Concurrence) के बिना Sanctuary के दस किलोमीटर के दायरे में कोई नया Arms License जारी नहीं किया जाएगा। यह एक Clause हथियारों की संख्या में वृद्धि को रोकने के लिए एक शक्तिशाली बाधा का काम करता है। यह वन्यजीव अधिकारियों को इस मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देता है, जिससे अन्य सरकारी निकायों द्वारा मनमाने ढंग से लाइसेंस जारी करने पर रोक लगती है। उदाहरण के लिए, Chief Wildlife Warden उस क्षेत्र में सहमति देने से इनकार कर सकता है जो Poaching के लिए कुख्यात है या जो Royal Bengal Tiger या Indian Rhinoceros जैसे लुप्तप्राय जानवरों के लिए एक महत्वपूर्ण corridor है। यह प्रावधान वन्यजीव अपराध के खिलाफ लड़ाई में एक प्रतिक्रियाशील के बजाय एक सक्रिय (Proactive) उपकरण के रूप में कार्य करता है।

धारा 35: National Parks की घोषणा और प्रबंधन (Declaration and Management)

धारा 35 शायद पूरे अधिनियम के सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है, क्योंकि यह National Parks बनाने के लिए कानूनी आधार स्थापित करती है, जो भारत में वन्यजीव आवासों (Wildlife Habitats) के लिए उच्चतम स्तर की सुरक्षा को दर्शाते हैं। जहाँ Sanctuaries में अक्सर कुछ मानवीय गतिविधियाँ (Human Activities) की अनुमति होती है, वहीं National Park को एक पवित्र क्षेत्र (Inviolate Area) घोषित किया जाता है, जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को उसके सबसे मूल रूप में संरक्षित करने का इरादा होता है।

National Park की घोषणा की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब राज्य सरकार को लगता है कि कोई खास क्षेत्र—चाहे वह पहले से Sanctuary हो या नहीं—पारिस्थितिक (Ecological), प्राणि-संबंधी (Faunal), वनस्पति-संबंधी (Floral), भू-वैज्ञानिक (Geomorphological) या प्राणी-संबंधी (Zoological) महत्व रखता है। इसका उद्देश्य वन्यजीवों और उनके पर्यावरण की रक्षा, प्रचार या विकास करना है।

सरकार एक सार्वजनिक अधिसूचना (Public Notification) जारी करके इस प्रक्रिया की शुरुआत करती है जो प्रस्तावित Park की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह एक बहुत ही विस्तृत कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रिया की शुरुआत को दर्शाता है।

घोषणा प्रक्रिया का एक प्रमुख और अक्सर जटिल हिस्सा अधिकारों की जाँच और विलुप्ति (Investigation and Extinguishment of Rights) है, जिसका विवरण धारा 35 के उप-खंड (3) और (4) में दिया गया है। इसका मतलब है कि एक National Park को अंतिम रूप से अधिसूचित (Notified) करने से पहले, उस जमीन पर मौजूद सभी मानवीय दावों या अधिकारों (Claims or Rights) की जाँच और निपटारा किया जाना चाहिए, जैसे कि Grazing Rights, वन उपज (Forest Produce) इकट्ठा करने का अधिकार, या यहाँ तक कि जमीन का स्वामित्व।

यहीं पर यह प्रक्रिया लंबी और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश के Great Himalayan National Park Conservation Area के मामले में, स्थानीय समुदायों के अधिकारों को निपटाने में कई दशक लग गए थे जो ऐतिहासिक रूप से जंगलों पर अपनी आजीविका (Livelihood) के लिए निर्भर थे।

सरकार को इन समुदायों को मुआवजा (Compensation) या वैकल्पिक व्यवस्थाएँ प्रदान करनी पड़ीं, जो एक कानूनी रूप से संरक्षित और मानव-मुक्त Core Zone बनाने के लिए एक आवश्यक कदम था। एक बार जब सभी दावों का निपटारा हो जाता है और जमीन पर सभी अधिकार औपचारिक रूप से राज्य सरकार में निहित हो जाते हैं, तो अंतिम अधिसूचना प्रकाशित की जाती है, जो एक विशिष्ट तिथि से उस क्षेत्र को National Park घोषित करती है।

National Park द्वारा दी जाने वाली सख्त सुरक्षा को अधिनियम में उल्लिखित कड़े प्रतिबंधों द्वारा उजागर किया गया है। उप-खंड (6) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति National Park से किसी भी वन्यजीव या वन उपज को नष्ट, शोषण या हटा नहीं सकता है।

इसके अलावा, कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जंगली जानवर के आवास को नुकसान पहुँचाए या Park के अंदर या बाहर पानी के बहाव को मोड़े, रोके या बढ़ाए, वह सख्त मना है। यह प्रावधान खनन, बुनियादी ढाँचे के विकास, या पनबिजली परियोजनाओं (Hydroelectric Projects) जैसी गतिविधियों से होने वाले बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक नुकसान को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो पूरे Ecosystem को तबाह कर सकते हैं।

एकमात्र अपवाद तब है जब Chief Wildlife Warden द्वारा एक Permit दी जाती है, और यह केवल National Board for Wildlife के साथ गहन परामर्श के बाद ही संभव है, जिसे यह विश्वास दिलाना होता है कि वह गतिविधि Park के सुधार या बेहतर प्रबंधन के लिए पूरी तरह से आवश्यक है। हालाँकि, यह अधिनियम स्थानीय समुदायों के लिए थोड़ी छूट देता है, जिससे उन्हें अपनी व्यक्तिगत, bona fide जरूरतों के लिए वन उपज को हटाने की अनुमति मिलती है, लेकिन कभी भी व्यावसायिक उद्देश्यों (Commercial Purposes) के लिए नहीं।

Sanctuary और National Park के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर उप-खंड (7) में भी बताया गया है, जो एक National Park के भीतर किसी भी livestock की Grazing को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है। यह एक महत्वपूर्ण नियम है जिसे आवास के क्षरण (Habitat Degradation), पालतू जानवरों से जंगली शाकाहारी जानवरों में बीमारियों के प्रसार और भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक मूल, पवित्र Ecosystem को बनाए रखने के अधिनियम के इरादे को रेखांकित करता है।

अधिनियम की कई अन्य धाराओं के प्रावधान, जो मुख्य रूप से Sanctuaries के नियंत्रण और नियमन से संबंधित हैं, उन्हें भी National Parks पर लागू किया गया है, जिससे उनकी कानूनी सुरक्षा और प्रबंधन protocols को मजबूत किया गया है। उदाहरण के लिए, प्रवेश, नियंत्रण और अपराधों के लिए दंड से संबंधित नियम सभी National Parks पर लागू होते हैं, जिससे एक एकीकृत और मजबूत कानूनी सुरक्षा कवच बनता है।

इन प्रावधानों की अहमियत अदालतों में भी परखी गई है, जहाँ ऐतिहासिक मामलों ने संरक्षित क्षेत्रों की कानूनी पवित्रता को मजबूत किया है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में लगातार इस सिद्धांत को बरकरार रखा है कि व्यावसायिक हितों पर पारिस्थितिक विचारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

उदाहरण के लिए, गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir National Park) के पास एक प्रस्तावित रेलवे लाइन के मामले में, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों ने एशियाई शेर के आवास की रक्षा का हमेशा समर्थन किया है, जो हानिकारक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं से संरक्षित क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए अधिनियम के प्रावधानों की शक्ति को दर्शाता है। इन कानूनी लड़ाइयों ने न केवल कानून को मजबूत किया है बल्कि एक शक्तिशाली न्यायिक मिसाल भी बनाई है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि National Board for Wildlife की सिफारिशों और Chief Wildlife Warden के फैसलों का महत्वपूर्ण कानूनी वजन है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 34 और 35 केवल अलग-अलग कानूनी खंड नहीं हैं, बल्कि एक व्यापक संरक्षण रणनीति के आपस में जुड़े हुए घटक हैं। धारा 34 सशस्त्र इंसानों से उत्पन्न होने वाले सीधे खतरे को संबोधित करती है, Sanctuaries के चारों ओर एक सुरक्षित परिधि बनाती है, जबकि धारा 35 National Parks को वन्यजीवों के लिए पवित्र आश्रय (Inviolate Havens) के रूप में बनाने और बनाए रखने के लिए कानूनी उपकरण प्रदान करती है। साथ में, वे भारत के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क की कानूनी और प्रशासनिक रीढ़ बनते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि देश की समृद्ध जैव विविधता को सीधे खतरों और दीर्घकालिक आवास अतिक्रमण दोनों से बचाया जाए।

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