राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 103 से 110 : स्थानीय निकायों द्वारा राजस्व अधिकारियों की शक्तियों
धारा 103 – अध्याय VI के प्रयोजनों के लिए भूमि और आबादी की परिभाषा
इस धारा के अंतर्गत "भूमि" और "आबादी" शब्दों की परिभाषा दी गई है जो इस अध्याय के लिए लागू होती है। भूमि में वे सभी प्रकार की जमीनें आती हैं जो राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 5(24) के अंतर्गत आती हैं, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी शैक्षणिक संस्था के अधीन अधिग्रहित भूमि, सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त भूमि जैसे रास्ते या श्मशान आदि, सरकार या स्थानीय निकाय द्वारा प्राप्त अन्य भूमि, नजूल भूमि तथा आबादी क्षेत्र में स्थित भूमि जो विशेष प्रयोजनों के लिए आरक्षित की गई हो। "आबादी" का अर्थ है किसी गाँव, कस्बे या शहर का जनसंख्या क्षेत्र, जिसमें भवन निर्माण हेतु रखी गई भूमि भी सम्मिलित है, चाहे वहाँ भवन निर्मित हो या नहीं।
उदाहरण: यदि किसी गाँव में एक ज़मीन श्मशान के रूप में उपयोग हो रही है और वह स्थानीय निकाय के रिकॉर्ड में दर्ज है, तो वह भूमि इस धारा के अंतर्गत सरकारी भूमि मानी जाएगी।
धारा 104 – स्थानीय निकायों द्वारा राजस्व अधिकारियों की शक्तियों का प्रयोग
जब कोई नजूल भूमि, या गाँव/कस्बे की आबादी की भूमि या सार्वजनिक उपयोग के लिए आरक्षित भूमि स्थानीय निकाय को सौंप दी जाती है, तब उस पर धारा 97 या 98 के अंतर्गत राजस्व अधिकारियों की जो शक्तियाँ होती हैं, वे अब उस स्थानीय निकाय द्वारा प्रयोग की जाएंगी। यह कार्य राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार किया जाएगा।
उदाहरण: यदि नगरपालिका को एक नजूल भूमि दी गई है, तो उस भूमि का रखरखाव, किराया निर्धारण या कब्जा हटाने का कार्य नगरपालिका स्वयं करेगी, कलेक्टर नहीं।
धारा 105 – काश्तकारों के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे
यह धारा सुनिश्चित करती है कि धारा 95, 96, 97, 98 और 102 में दी गई व्यवस्थाएं, राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 31 के तहत काश्तकारों को जो अधिकार दिए गए हैं – विशेष रूप से गाँव की आबादी में निःशुल्क मकान बनाने के लिए भूमि रखने का अधिकार – को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करेंगी।
उदाहरण: यदि किसी काश्तकार ने अपने गाँव में मकान बनाने के लिए एक छोटा सा प्लॉट लिया है, तो वह भूमि उसका अधिकार रहेगा, चाहे धारा 95 या 102 में कुछ भी कहा गया हो।
धारा 106 – सर्वेक्षण या पुनः सर्वेक्षण
राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी भी स्थानीय क्षेत्र में सर्वेक्षण या पुनः सर्वेक्षण का आदेश दे सकती है। जब तक यह कार्य समाप्ति की अधिसूचना के द्वारा बंद नहीं किया जाता, तब तक वह क्षेत्र सर्वेक्षण और अभिलेख क्रियान्वयन की स्थिति में माना जाएगा।
उदाहरण: यदि राज्य सरकार जयपुर जिले के किसी क्षेत्र में पुनः सर्वेक्षण की अधिसूचना जारी करती है, तो वह क्षेत्र तब तक सर्वेक्षणाधीन रहेगा जब तक यह घोषणा नहीं हो जाती कि सर्वेक्षण समाप्त हो चुका है।
धारा 107 – अभिलेख क्रियान्वयन
यदि किसी क्षेत्र का पहले से सर्वेक्षण हो चुका है, तब राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा उस क्षेत्र में अभिलेखों की आंशिक या पूर्ण पुनरावृत्ति का आदेश दे सकती है। तब तक वह क्षेत्र अभिलेख क्रियान्वयनाधीन माना जाएगा, जब तक कार्य समाप्ति की अधिसूचना न जारी हो जाए।
उदाहरण: बीकानेर जिले के किसी गाँव का पहले सर्वेक्षण हो चुका है, पर अब पुनः रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए राज्य सरकार नई अधिसूचना जारी करती है, तो वह क्षेत्र रिकॉर्ड क्रियान्वयन के अंतर्गत आ जाएगा।
धारा 108 – रिकॉर्ड अधिकारी की नियुक्ति
धारा 106 या 107 के अंतर्गत अधिसूचना जारी करने के बाद, राज्य सरकार:
(1) अतिरिक्त भूमि अभिलेख अधिकारी की नियुक्ति करेगी जो इन कार्यों का प्रभारी होगा, यदि पहले से स्थायी अधिकारी नियुक्त न हो।
(2) आवश्यकता अनुसार सहायक भूमि अभिलेख अधिकारियों की भी नियुक्ति कर सकती है।
उदाहरण: अगर सीकर जिले के एक ब्लॉक में पुनः सर्वेक्षण चालू होता है, तो वहाँ एक अतिरिक्त भूमि अभिलेख अधिकारी और कुछ सहायक अधिकारी नियुक्त किए जा सकते हैं।
धारा 109 – क्रियान्वयन की प्रक्रिया
धारा 106 और 107 के अंतर्गत जो कार्य होंगे, वे भूमि अभिलेख निदेशक के अधीन होंगे और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार संपन्न किए जाएंगे।
उदाहरण: रिकॉर्ड तैयार करने का तरीका, नक्शे बनाना, फील्ड बुक तैयार करना आदि सारे कार्य निर्देशों के अनुसार होंगे और इसकी निगरानी निदेशक करेंगे।
धारा 110 – सीमाओं के सर्वेक्षण में सहायता
जब कोई क्षेत्र सर्वेक्षण और रिकॉर्ड कार्य के अंतर्गत आता है, तो भूमि अभिलेख अधिकारी सभी भू-स्वामियों और काश्तकारों को यह घोषणा जारी करके सूचित करेगा कि वे सीमाओं के सर्वेक्षण में मदद करेंगे। यदि आवश्यक हो, तो अधिकारी आदेश जारी करके उन्हें 15 दिन में सीमा चिन्ह स्थापित करने के लिए कह सकता है। यदि आदेश का पालन न किया जाए, तो अधिकारी स्वयं चिन्ह स्थापित करेगा और उसका खर्च संबंधित व्यक्ति से वसूल करेगा।
उदाहरण: मान लीजिए किसी गाँव में रामलाल और श्यामलाल के खेतों की सीमा स्पष्ट नहीं है। अधिकारी उन्हें चिन्ह स्थापित करने को कहता है। यदि वे नहीं करते, तो अधिकारी चिन्ह खुद लगवाकर उसकी लागत उनसे वसूल करेगा।
धारा 103 से 110 तक की ये व्यवस्थाएं राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के तहत भूमि की परिभाषा, आबादी क्षेत्रों की स्थिति, नजूल भूमि का प्रशासन, काश्तकारों के अधिकार और सर्वेक्षण की प्रक्रिया को स्पष्ट करती हैं। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि भूमि से संबंधित मामलों में पारदर्शिता बनी रहे, स्थानीय निकायों को अधिकार मिले, और सरकार को भूमि के सही अभिलेख उपलब्ध रहें। इन धाराओं के माध्यम से भूमि प्रशासन की नींव सुदृढ़ की गई है।