राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 90 और 90-A : प्रत्येक भूमि पर भू-राजस्व या किराया देयता

Update: 2025-05-17 12:28 GMT

राजस्थान भूमि व्यवस्था और प्रशासन की दृष्टि से भू-राजस्व अधिनियम एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है। इसकी धारा 90 और 90-A भूमि के राजस्व और कृषि भूमि के गैर-कृषि उपयोग से संबंधित व्यापक प्रावधान देती हैं। इन धाराओं का उद्देश्य राज्य सरकार को भूमि से प्राप्त होने वाले राजस्व की व्यवस्था करना और कृषि भूमि का नियोजित और नियंत्रित उपयोग सुनिश्चित करना है।

धारा 90 – प्रत्येक भूमि पर भू-राजस्व या किराया देयता

इस धारा के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है कि राजस्थान राज्य में स्थित प्रत्येक भूमि, चाहे उसका उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए क्यों न किया जा रहा हो, वह राज्य सरकार को भू-राजस्व (land revenue) या किराया (rent) चुकाने के लिए बाध्य है। केवल वही भूमि इस दायित्व से मुक्त हो सकती है जिसे राज्य सरकार द्वारा विशेष अनुदान (special grant) या किसी विधिक अनुबंध (contract) के तहत छूट दी गई हो या जो किसी अन्य प्रचलित कानून द्वारा इस देयता से मुक्त की गई हो।

सरल शब्दों में कहें तो, यदि आपके पास कोई भूमि है – चाहे वह कृषि भूमि हो, आवासीय उपयोग में ली गई हो, व्यवसायिक रूप में प्रयुक्त हो या खाली पड़ी हो – तब भी वह राज्य को भू-राजस्व देने के लिए उत्तरदायी होगी, जब तक कि आपके पास इस देयता से छूट प्राप्त करने का कोई स्पष्ट कानूनी प्रमाण न हो।

स्वामित्व की अवधि से छूट नहीं मिलती

उपधारा (2) के अनुसार, चाहे कोई व्यक्ति कितने भी वर्षों से किसी भूमि पर कब्जा किए हुए क्यों न हो, अथवा किसी जमीनदार (estate holder) ने उसे किसी को दे रखा हो, वह भूमि तब भी राजस्व देय रहेगी। इसका अर्थ है कि केवल लंबे समय तक भूमि पर कब्जा होने से राज्य सरकार को भू-राजस्व देने से छुटकारा नहीं पाया जा सकता।

उदाहरण के रूप में, यदि कोई परिवार पीढ़ियों से किसी ज़मीन पर खेती कर रहा है लेकिन उनके पास वह ज़मीन राज्य से खरीदी या पट्टे पर ली हुई नहीं है, तो वह भूमि अब भी राजस्व की दृष्टि से राज्य सरकार की मानी जाएगी और उन पर भू-राजस्व का दायित्व बना रहेगा।

राज्य सरकार विशेष छूट दे सकती है

उपधारा (3) में यह प्रावधान है कि राज्य सरकार चाहे तो किसी भूमि को भू-राजस्व या किराया देने से मुक्त कर सकती है। यह छूट विशेष अनुदान, अनुबंध या अन्य किसी कानून के प्रावधान के अनुसार दी जा सकती है।

उपधारा (3-A) इसे और स्पष्ट करते हुए कहती है कि राज्य सरकार सरकारी राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना (notification) प्रकाशित करके किसी भूमि या भूमि की किसी श्रेणी को भू-राजस्व या किराया देने से पूरी तरह या आंशिक रूप से मुक्त कर सकती है। यह छूट भविष्य में लागू की जा सकती है या पूर्व प्रभाव से भी दी जा सकती है। यह राज्य सरकार की नीतिगत योजना पर निर्भर करेगा।

राजस्व उस स्थिति में भी आकलित किया जा सकता है जब भुगतान राज्य सरकार को न होता हो

उपधारा (4) कहती है कि यदि किसी भूमि से संबंधित राजस्व किसी व्यक्ति को सौंप दिया गया हो, या सरकार ने उसे माफ कर दिया हो या वह मुआवजा स्वरूप छूट गई हो, तब भी उस भूमि पर राजस्व आकलित किया जा सकता है। यानी कि भूमि के उपयोग या वर्गीकरण के आधार पर सरकार तय कर सकती है कि उसका मूल्यांकन राजस्व प्रयोजन से किया जाए।

धारा 90-A – कृषि भूमि का गैर-कृषि उपयोग

धारा 90-A विशेष रूप से इस बात से संबंधित है कि कोई व्यक्ति जो कृषि कार्य के लिए भूमि का स्वामी है, वह बिना राज्य सरकार की अनुमति के उस भूमि का कोई अन्य उपयोग नहीं कर सकता – जैसे कि वहां मकान बनाना, फैक्ट्री स्थापित करना, स्कूल या दुकान खोलना आदि। इस उद्देश्य के लिए पहले से लिखित अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है।

अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया

इस धारा की उपधारा (2) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी कृषि भूमि को अन्य किसी उद्देश्य के लिए उपयोग करना चाहता है, तो उसे नियत प्राधिकारी को निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत एक आवेदन देना होगा। इस आवेदन में आवश्यक विवरण होना चाहिए, जैसे कि भूमि का स्थान, क्षेत्रफल, प्रस्तावित उपयोग इत्यादि।

इसके बाद उपधारा (3) के अनुसार, राज्य सरकार या संबंधित अधिकारी उस आवेदन की समुचित जांच करेगा और फिर या तो अनुमति देगा या उसे कुछ शर्तों के साथ स्वीकृत करेगा, अथवा पूरी तरह से अस्वीकार कर देगा।

अनुमति मिलने के बाद देयता

यदि भूमि को गैर-कृषि उपयोग के लिए स्वीकृति मिल जाती है, तो उपधारा (4) के अनुसार, भूमि धारक को निम्न में से कोई एक या दोनों प्रकार के भुगतान राज्य सरकार को करने होंगे –

(a) शहरी मूल्यांकन (urban assessment) जो कि नियमानुसार निर्धारित किया जाएगा;

(b) प्रीमियम की एक निर्धारित राशि जो सरकार द्वारा तय की जाएगी।

कई बार दोनों देयताओं को भी लागू किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने कृषि भूमि को व्यावसायिक गोडाउन बनाने के लिए स्वीकृति प्राप्त की है, तो वह व्यक्ति या तो केवल एक तयशुदा मूल्य देगा या शहरी कर के रूप में वार्षिक भुगतान करेगा – या फिर दोनों ही।

अनुमति के बिना गैर-कृषि उपयोग की स्थिति

सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान उपधारा (5) में है। यदि कोई व्यक्ति कृषि भूमि का गैर-कृषि उपयोग करता है –

(a) बिना लिखित अनुमति के,

(b) या दी गई अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करता है,

(c) या अनुमति ना मिलने के बावजूद भूमि का उपयोग करता है,

(d) या निर्धारित भुगतान नहीं करता –

तो वह व्यक्ति और उसके बाद उस भूमि के सभी क्रेता अवैध कब्जेदार माने जाएंगे। ऐसे व्यक्ति को भूमि से बेदखल (eject) किया जा सकता है जैसे कि वह बिना अधिकार के भूमि पर कब्जा किए हुए हो।

यह कार्यवाही धारा 91 और राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 212 के अनुसार की जाएगी। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई भूमि इस प्रकार से अनधिकृत रूप से उपयोग की जा रही है, तो राज्य यह मान सकती है कि भूमि को नुकसान हो रहा है और उसे जब्त कर सकती है।

राज्य सरकार जुर्माना लगाकर भूमि उपयोग की अनुमति दे सकती है

हालाँकि, राज्य सरकार चाहें तो ऐसे मामलों में व्यक्ति को भूमि से बेदखल करने की बजाय उसे कुछ अतिरिक्त राशि (जुर्माने के रूप में) लेकर भूमि का गैर-कृषि उपयोग जारी रखने की अनुमति दे सकती है। यह राशि नियमानुसार तय की जाएगी और यह शहरी कर तथा प्रीमियम से अतिरिक्त होगी।

उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति ने बिना अनुमति के कृषि भूमि पर स्कूल बना दिया है, तो सरकार उसे बेदखल करने के बजाय जुर्माना लेकर उस निर्माण को वैध कर सकती है।

धारा 90 और 90-A यह सुनिश्चित करती हैं कि कोई भी भूमि राज्य सरकार की निगरानी और नियंत्रण से बाहर न जाए। भूमि के प्रत्येक वर्ग का मूल्यांकन राज्य राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत किया जा सके और कृषि भूमि का अनुचित उपयोग रोका जा सके। साथ ही, ये प्रावधान यह भी सुनिश्चित करते हैं कि यदि कृषि भूमि का कोई अन्य उपयोग किया जाना हो, तो वह विधिपूर्वक राज्य सरकार की अनुमति के अधीन ही हो।

राजस्थान जैसे कृषि प्रधान राज्य में ये प्रावधान भूमि उपयोग की पारदर्शिता, नियमन और सरकारी राजस्व की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

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