भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 5: संयोजनों का विनियमन - कब मर्जर और अधिग्रहण पर लगेगी CCI की नज़र
हमने Competition (प्रतिस्पर्धा) को बनाए रखने के लिए Competition-विरोधी समझौतों और प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग पर प्रतिबंधों के बारे में सीखा। लेकिन बाजार में एक और महत्वपूर्ण गतिविधि है जो Competition को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है: संयोजन (Combinations)। संयोजन का मतलब होता है जब दो या दो से अधिक कंपनियां आपस में मिल जाती हैं, जैसे विलय (Merger) या अधिग्रहण (Acquisition)।
ये अक्सर कंपनियों के लिए विकास और दक्षता बढ़ाने का एक तरीका होते हैं, लेकिन अगर वे बहुत बड़े हो जाएं, तो वे बाजार में Competition को कम कर सकते हैं, जिससे ग्राहकों को नुकसान हो सकता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act), 2002 की धारा 5 (Section 5) यही परिभाषित करती है कि कौन से ऐसे बड़े मर्जर और अधिग्रहण Competition Commission of India (CCI) की जांच के दायरे में आएंगे।
धारा 5: संयोजन क्या है? (What is a Combination?)
धारा 5 उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है जब एक अधिग्रहण, विलय या समामेलन (amalgamation) को "संयोजन" माना जाएगा, जिससे CCI को उसकी जांच करने की शक्ति मिलती है। यह मुख्य रूप से शामिल कंपनियों या समूहों के आकार (उनकी संपत्ति और टर्नओवर) पर आधारित है।
संयोजन तीन मुख्य प्रकार के होते हैं:
1. अधिग्रहण (Acquisition) (धारा 5(a))
जब एक या अधिक व्यक्ति एक या अधिक उद्यमों का अधिग्रहण करते हैं, यानी उनकी हिस्सेदारी, वोटिंग अधिकार या नियंत्रण खरीदते हैं।
इसे संयोजन तब माना जाएगा जब:
• अधिग्रहण करने वाले पक्ष (The Parties to the Acquisition): यानी अधिग्रहण करने वाला (Acquirer) और जिस कंपनी का अधिग्रहण किया जा रहा है, उन दोनों की संयुक्त रूप से:
o या तो भारत में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 1,500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
• वह समूह (The Group) जिससे अधिग्रहण की जा रही कंपनी अधिग्रहण के बाद संबंधित होगी, उस समूह की संयुक्त रूप से:
o या तो भारत में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
o उदाहरण: कल्पना कीजिए एक बड़ी भारतीय टेक्नोलॉजी कंपनी (जिसका टर्नओवर 5,000 करोड़ रुपये है) एक छोटी भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी (जिसका टर्नओवर 500 करोड़ रुपये है) को खरीदती है। दोनों का संयुक्त टर्नओवर 5,500 करोड़ रुपये हो जाता है, जो 3,000 करोड़ रुपये की सीमा से अधिक है। इसलिए, यह एक संयोजन माना जाएगा और CCI को सूचित किया जाना चाहिए।
2. समान या प्रतिस्थापनीय वस्तुओं/सेवाओं के उत्पादन, वितरण या व्यापार में लगे उद्यम पर नियंत्रण का अधिग्रहण (Acquiring Control Over an Enterprise Engaged in Similar or Substitutable Goods/Services) (धारा 5(b))
यह तब होता है जब कोई व्यक्ति (या कंपनी) पहले से ही किसी ऐसी कंपनी को नियंत्रित करता है जो समान या मिलती-जुलती वस्तुएं या सेवाएं बनाती, बांटती या बेचती है, और अब वह किसी अन्य ऐसी ही कंपनी पर नियंत्रण हासिल कर लेता है। इसे संयोजन तब माना जाएगा जब:
• अधिग्रहण की गई कंपनी और पहले से नियंत्रित कंपनी की संयुक्त रूप से:
o या तो भारत में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 1,500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
• वह समूह (The Group) जिससे अधिग्रहण की गई कंपनी अधिग्रहण के बाद संबंधित होगी, उस समूह की संयुक्त रूप से:
o या तो भारत में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
o उदाहरण: एक कंपनी जो भारत में प्रमुख सीमेंट निर्माता है, एक अन्य छोटी सीमेंट निर्माता कंपनी का अधिग्रहण करती है जिस पर उसका पहले से अप्रत्यक्ष नियंत्रण था। यदि इन दोनों कंपनियों की संयुक्त संपत्ति या टर्नओवर ऊपर बताई गई सीमाओं को पार कर जाता है, तो यह एक संयोजन होगा।
3. विलय या समामेलन (Merger or Amalgamation) (धारा 5(c))
जब दो या दो से अधिक कंपनियां आपस में विलय हो जाती हैं या एक में समामेलित हो जाती हैं। इसे संयोजन तब माना जाएगा जब:
• विलय के बाद बची हुई कंपनी या समामेलन के परिणामस्वरूप बनी कंपनी की:
o या तो भारत में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 1,500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
• वह समूह (The Group) जिससे विलय या समामेलन के बाद बची हुई या बनी कंपनी संबंधित होगी, उस समूह की संयुक्त रूप से:
o या तो भारत में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति या 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो;
o या भारत या भारत के बाहर कुल मिलाकर 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति (जिसमें भारत में कम से कम 500 करोड़ रुपये शामिल हों) या 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का टर्नओवर (जिसमें भारत में कम से कम 1,500 करोड़ रुपये शामिल हों)।
o उदाहरण: भारत की दो सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनियां आपस में विलय करने का फैसला करती हैं। विलय के बाद बनने वाली नई इकाई का संयुक्त टर्नओवर और संपत्ति निश्चित रूप से इन सीमाओं को पार कर जाएगा, जिससे यह एक संयोजन बन जाएगा और इसे CCI को सूचित करना अनिवार्य होगा।
o महत्वपूर्ण मामला: Independent Sugar Corporation Ltd. v. Girish Sriram Juneja and Ors. (स्वतंत्र शुगर कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम गिरीश श्रीराम जुनेजा और अन्य) में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code) के तहत भी, यदि कोई अधिग्रहण या विलय धारा 5 के तहत संयोजन की श्रेणी में आता है, तो उसे CCI की पूर्व-अनुमति लेनी होगी।
धारा 5 की व्याख्या: महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Explanation to Section 5: Key Definitions)
धारा 5 की व्याख्या (Explanation) में कुछ महत्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित किया गया है ताकि संयोजनों को बेहतर ढंग से समझा जा सके:
• "नियंत्रण" (Control): इसका मतलब है किसी उद्यम या समूह के मामलों या प्रबंधन को नियंत्रित करना, चाहे एक या अधिक उद्यमों/समूहों द्वारा संयुक्त रूप से या अकेले। यह केवल स्वामित्व से अधिक है; इसमें निर्णय लेने की शक्ति भी शामिल है।
• "समूह" (Group): इसका अर्थ है दो या दो से अधिक उद्यम जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी स्थिति में हैं कि वे:
o दूसरे उद्यम में 26% या उससे अधिक मतदान अधिकारों का प्रयोग कर सकें; या
o दूसरे उद्यम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (Board of Directors) के 50% से अधिक सदस्यों को नियुक्त कर सकें; या
o दूसरे उद्यम के प्रबंधन या मामलों को नियंत्रित कर सकें।
o उदाहरण: यदि एक कंपनी किसी दूसरी कंपनी के 30% शेयर रखती है और उसके बोर्ड में आधे से अधिक निदेशक नियुक्त कर सकती है, तो वे एक "समूह" का हिस्सा माने जाएंगे।
• "परिसंपत्तियों का मूल्य" (Value of Assets): परिसंपत्तियों का मूल्य, जैसा कि उद्यम की ऑडिट की गई लेखा-पुस्तकों (audited books of account) में दिखाया गया है, उस वित्तीय वर्ष के ठीक पहले वाले वित्तीय वर्ष में निर्धारित किया जाएगा जिसमें प्रस्तावित विलय की तारीख आती है, जिसमें किसी भी मूल्यह्रास (depreciation) को कम किया जाएगा।
• परिसंपत्तियों के मूल्य में ब्रांड वैल्यू (Brand Value), सद्भावना का मूल्य (Value of Goodwill), या कॉपीराइट (Copyright), पेटेंट (Patent), अनुमत उपयोग (Permitted Use), सामूहिक चिह्न (Collective Mark), पंजीकृत मालिक (Registered Proprietor), पंजीकृत ट्रेडमार्क (Registered Trade Mark), पंजीकृत उपयोगकर्ता (Registered User), समनाम भौगोलिक संकेत (Homonymous Geographical Indication), भौगोलिक संकेत (Geographical Indications), डिजाइन (Design) या लेआउट-डिजाइन (Layout-Design) या धारा 3 की उप-धारा (5) में उल्लिखित अन्य समान वाणिज्यिक अधिकार, यदि कोई हों, शामिल होंगे। यह सुनिश्चित करता है कि intangible assets (अमूर्त संपत्ति) भी मूल्यांकन में शामिल हों।
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 5 एक महत्वपूर्ण "चेकपॉइंट" के रूप में कार्य करती है, यह सुनिश्चित करती है कि बड़े मर्जर और अधिग्रहणों की CCI द्वारा जांच की जाए ताकि वे बाजार में Competition को कम न करें। इन वित्तीय सीमाओं को निर्धारित करके, यह धारा उन संयोजनों को चिह्नित करती है जिनमें बाजार की संरचना को बदलने और Competition को प्रभावित करने की क्षमता होती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में शक्ति का अनावश्यक एकाग्रता न हो, जिससे अंततः ग्राहकों और छोटे व्यवसायों को लाभ हो।