धारा 428 और 429, BNSS : अपील में न्यायिक आदेशों की प्रक्रिया और हाईकोर्ट के निर्णयों का क्रियान्वयन

धारा 428: अधीनस्थ अपीलीय न्यायालयों के निर्णय (Judgments of Subordinate Appellate Courts)
धारा 428 यह बताती है कि जब कोई अपील अधीनस्थ अपीलीय न्यायालय, जैसे सेशन कोर्ट (Court of Session) या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) द्वारा सुनी जाती है, तो उस अपील में दिया गया निर्णय किस प्रकार लिखा जाएगा और किन नियमों के अधीन होगा।
इसमें कहा गया है कि जैसे एक फौजदारी मामले में मूल अदालत (Original Criminal Court) अपना निर्णय (Judgment) देती है, वैसे ही नियम अपीलीय न्यायालयों (Appellate Courts) पर भी लागू होंगे। ये नियम अध्याय XXIX (Chapter XXIX) में दिए गए हैं, जो कि आपराधिक न्यायालयों द्वारा दिए जाने वाले निर्णयों के तरीकों को विनियमित करते हैं।
इसका अर्थ यह है कि अपील का निर्णय संक्षिप्त (Concise), स्पष्ट (Clear), कारणों सहित (Reasoned) और नियमों के अनुरूप (As Per Procedure) होना चाहिए, जैसा कि मूल आपराधिक न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय होता है।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट ने चोरी के मामले में दोषी ठहराया और 2 साल की सजा दी। उसने इस सजा के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) की अदालत में अपील की। जब CJM इस अपील पर निर्णय देगा, तो उसे वैसा ही विस्तृत और कानूनी रूप से संगठित निर्णय देना होगा जैसा मूल रूप से ट्रायल कोर्ट ने दिया था।
एक महत्वपूर्ण अपवाद (Exception):
इस धारा में एक प्रावधान (Proviso) है कि जब तक अपीलीय न्यायालय स्वयं यह निर्देश न दे, आरोपी को निर्णय सुनने के लिए कोर्ट में बुलाने की जरूरत नहीं है। यानी आरोपी की उपस्थिति (Presence) निर्णय सुनने के समय जरूरी नहीं है।
यह व्यवस्था इसलिए है ताकि आरोपी को बार-बार अदालत बुलाकर असुविधा न दी जाए, खासकर तब जब उसका वकील उसकी ओर से पेश हो और निर्णय केवल अपील खारिज या स्वीकृत करने का हो।
धारा 429: हाईकोर्ट के आदेशों का अधीनस्थ न्यायालयों तक भेजा जाना (Certification of High Court's Order to Lower Courts)
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि जब कोई आपराधिक अपील हाईकोर्ट (High Court) द्वारा तय की जाती है, तो उसका निर्णय उचित न्यायालय तक पहुँचाया जाए और उस पर कार्रवाई की जाए।
उपधारा (1): आदेश भेजने की प्रक्रिया
जब हाईकोर्ट किसी अपील का निर्णय करता है, तो वह अपने निर्णय या आदेश को उस न्यायालय को भेजता है जिसने मूल रूप से उस सजा (Sentence), निर्णय (Finding), या आदेश (Order) को पारित किया था। यह भेजा गया आदेश प्रमाणीकृत (Certified) होता है।
यदि वह मूल न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) के अलावा कोई अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate) है, तो हाईकोर्ट का आदेश CJM के माध्यम से भेजा जाता है।
इसी तरह, यदि वह न्यायालय एक कार्यपालक मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) है, तो आदेश जिलाधिकारी (District Magistrate) के माध्यम से भेजा जाएगा।
यह क्यों जरूरी है?
न्यायिक अनुशासन (Judicial Hierarchy) और पारदर्शिता (Transparency) बनाए रखने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि उच्चतर न्यायालयों के आदेश अधीनस्थ न्यायालयों के रिकॉर्ड में विधिवत रूप से दर्ज हों और उन पर अमल किया जाए।
उपधारा (2): आदेश के अनुसार कार्यवाही
जिस अदालत को हाईकोर्ट का प्रमाणीकृत आदेश प्राप्त होता है, वह अदालत हाईकोर्ट के निर्णय या आदेश के अनुसार आवश्यक आदेश पारित करेगी।
यदि जरूरत पड़ी, तो रिकॉर्ड में भी आवश्यक संशोधन (Amendment) किया जाएगा ताकि रिकॉर्ड पूरी तरह से हाईकोर्ट के निर्णय से मेल खाता हो।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए, एक व्यक्ति को मजिस्ट्रेट ने 1 साल की सजा दी। उस व्यक्ति ने हाईकोर्ट में अपील की और हाईकोर्ट ने उसे निर्दोष मानते हुए बरी (Acquittal) कर दिया। अब हाईकोर्ट का यह आदेश उस मजिस्ट्रेट को CJM के माध्यम से भेजा जाएगा, और मजिस्ट्रेट इस आदेश के अनुसार सजा की प्रविष्टि (Entry) हटा देगा और उस व्यक्ति को बरी मानकर उसके नाम से रिकॉर्ड को संशोधित करेगा।
पिछली धाराओं से संबंध (Connection with Previous Sections):
इससे पहले हमने धारा 426 और 427 में देखा कि जब अपीलीय न्यायालय अपील को खारिज (Dismiss) नहीं करता तो वह नोटिस देता है, रिकॉर्ड बुलाता है और फिर दलीलें सुनता है। इसके बाद, वह अपील को खारिज कर सकता है या निर्णय को पलट सकता है (Reverse), सजा को बदल सकता है (Alter Sentence), या नया ट्रायल भी आदेशित कर सकता है।
इन निर्णयों को लागू करने के लिए ही धारा 429 की आवश्यकता होती है। वरना केवल निर्णय देने से कुछ नहीं होगा, जब तक उस निर्णय की जानकारी और कार्यान्वयन (Implementation) अधीनस्थ न्यायालय तक न पहुंचे।
धारा 428 और 429 यह सुनिश्चित करती हैं कि अपीलीय प्रक्रिया केवल तकनीकी न रहे, बल्कि व्यावहारिक और न्यायसंगत भी हो। अपीलीय न्यायालयों के निर्णयों की गुणवत्ता और औपचारिकता सुनिश्चित करने के लिए धारा 428 दिशा देती है, जबकि धारा 429 यह सुनिश्चित करती है कि हाईकोर्ट के निर्णयों का ठीक से क्रियान्वयन हो और दोषमुक्त व्यक्ति को राहत मिले तथा दोषी को उचित दंड सुनिश्चित हो।
इन प्रावधानों का उद्देश्य न्याय प्रक्रिया को प्रभावी, नियमित और पारदर्शी बनाना है ताकि आरोपी को उसके अधिकार मिलें और न्यायिक व्यवस्था पर आमजन का विश्वास बना रहे।