BNSS 2023 के अंतर्गत धारा 187 (भाग (1): आरोपी की हिरासत और जांच के नियम

Update: 2024-09-16 12:42 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code) को प्रतिस्थापित किया है। इस संहिता की धारा 187 उन प्रावधानों को विस्तार से बताती है जो तब लागू होते हैं जब किसी आरोपी को गिरफ्तार करके हिरासत (Custody) में रखा जाता है और जांच (Investigation) 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं हो पाती है। यह धारा पुराने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के समान है, लेकिन इसमें कुछ अपडेट किए गए नियम और प्रक्रियाएँ शामिल हैं। इस लेख में हम धारा 187 के पहले भाग (1) से (4) तक के प्रावधानों को समझेंगे, और बाकी के प्रावधानों पर चर्चा भाग II में की जाएगी।

24 घंटे से अधिक हिरासत में रखने के नियम (धारा 187(1))

जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हिरासत में रखा जाता है, और जांच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं हो पाती है (जो कि धारा 58 के तहत निर्धारित है), तब पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या जांच कर रहा पुलिस अधिकारी (Sub-inspector से नीचे के रैंक का न हो) को तुरंत कार्रवाई करनी होती है।

अगर यह पाया जाता है कि आरोपी पर लगाए गए आरोप सही हो सकते हैं, तो अधिकारी को:

• मामले से संबंधित डायरी (Diary) की प्रविष्टियों की एक प्रति निकटतम मजिस्ट्रेट (Magistrate) को भेजनी चाहिए।

• उसी समय, आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।

उदाहरण: मान लीजिए कि चोरी के एक मामले में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन पुलिस को जांच पूरी करने के लिए और समय चाहिए। चूंकि पुलिस 24 घंटे से अधिक समय तक बिना उचित अनुमति के उस व्यक्ति को हिरासत में नहीं रख सकती, उन्हें आरोपी को धारा 187(1) के अनुसार मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना होगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत का अधिकरण (Authorization) (धारा 187(2))

जब आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट यह निर्णय कर सकता है कि आरोपी को आगे हिरासत में रखना है या नहीं। मजिस्ट्रेट चाहे उस मामले को सुनने का अधिकार (Jurisdiction) रखता हो या नहीं, वह 15 दिनों तक की अवधि के लिए हिरासत की अनुमति दे सकता है।

मजिस्ट्रेट यह भी देखेगा कि क्या आरोपी को जमानत (Bail) पर छोड़ा गया है या उसकी जमानत रद्द हो चुकी है। अगर मजिस्ट्रेट को लगे कि आगे की हिरासत की आवश्यकता नहीं है या उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है, तो वह आरोपी को संबंधित अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है।

उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराध, जैसे अपहरण (Kidnapping) के मामले में गिरफ्तार किया गया है, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को पहले 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में रखने की अनुमति दे सकता है। अगर और समय चाहिए, तो मजिस्ट्रेट धारा 187(2) के तहत शर्तों का पालन करते हुए हिरासत की अवधि बढ़ा सकता है।

15 दिनों से अधिक की हिरासत: सीमा और शर्तें (धारा 187(3))

15 दिनों से अधिक की हिरासत केवल तभी दी जा सकती है जब मजिस्ट्रेट को पर्याप्त आधार (Grounds) मिले कि ऐसा करना जरूरी है।

इसमें भी अधिकतम समय सीमा निर्धारित की गई है:

• नब्बे दिन (90 days): यह सीमा तब लागू होती है जब मामला ऐसा हो जिसमें सजा मौत की, आजीवन कारावास की, या दस साल या उससे अधिक की हो।

• साठ दिन (60 days): अन्य अपराधों के लिए अधिकतम अवधि 60 दिन है।

इस समय सीमा के समाप्त होने पर, आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए, बशर्ते वह जमानत देने के लिए तैयार हो और जमानत राशि भरने में सक्षम हो।

उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति को हत्या (Murder) के मामले में गिरफ्तार किया गया है, जो कि मौत की सजा या आजीवन कारावास की श्रेणी में आता है, तो अधिकतम 90 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है। अगर 90 दिनों के भीतर जांच पूरी नहीं होती, तो आरोपी को जमानत पर रिहा करना होगा।

अदालत में आरोपी की पेशी (Production of Accused) (धारा 187(4))

धारा 187 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने शारीरिक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जब उसकी हिरासत बढ़ाने पर विचार किया जा रहा हो। पहली बार, और फिर हर बार जब तक आरोपी पुलिस हिरासत में रहता है, उसे व्यक्तिगत रूप से पेश किया जाना जरूरी है। अगर आरोपी पुलिस हिरासत में नहीं है, तो मजिस्ट्रेट न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) की अवधि बढ़ा सकता है, बशर्ते आरोपी को या तो व्यक्तिगत रूप से या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से पेश किया जाए।

उदाहरण: अगर कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है, तो उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना जरूरी है ताकि हिरासत की अवधि बढ़ाई जा सके। लेकिन आज के डिजिटल युग में, अगर आरोपी न्यायिक हिरासत में है, तो उसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा सकता है।

भाग II की झलक

धारा 187 के पहले भाग में उन प्रक्रियाओं पर जोर दिया गया है जो तब लागू होती हैं जब किसी आरोपी की जांच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं हो पाती। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी अनुमति के बिना हिरासत में नहीं रखा जा सकता और न्यायालय का उचित निरीक्षण (Oversight) होता है।

भाग II में, हम धारा 187 के शेष प्रावधानों को कवर करेंगे, जो धारा 187(5) से 187(10) तक हैं। इसमें आगे के कानूनी सुरक्षा उपायों, उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट करने और विशेष मामलों में हिरासत के विस्तारित नियमों पर चर्चा होगी। संबंधित प्रावधानों की गहराई से समझ के लिए, पाठक Live Law Hindi में प्रकाशित पिछले लेखों का संदर्भ ले सकते हैं, जिसमें धारा 103 और 185 पर विस्तार से चर्चा की गई है।

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