राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम की धारा 31 और धारा 32 भाग 1

राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act) यह निर्धारित करता है कि विभिन्न प्रकार के दीवानी मुकदमों (Civil Suits) में कितनी Court Fees देनी होगी। इससे न्यायालय को राजस्व प्राप्त होता है और साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि वादी (Plaintiff) अपने द्वारा मांगी गई राहत (Relief) को उचित रूप से महत्व दे।
इस लेख में हम इस अधिनियम की धारा 31 (Section 31: Pre-emption Suits) और धारा 32 की उपधाराएं (Sub-sections) (1), (2), और (3) को सरल हिन्दी में समझेंगे। इस लेख का उद्देश्य आम लोगों के लिए कानून की इन बातों को स्पष्ट करना है। यह भाग-1 है और धारा 32 के शेष भाग अगले लेख (भाग-2) में समझाए जाएंगे।
धारा 31: पूर्वक्रय वाद (Section 31: Pre-emption Suits)
पूर्वक्रय (Pre-emption) का अधिकार वह विशेष अधिकार होता है, जिसके तहत कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि जब किसी संपत्ति (Property) को बेचा गया है, तो उसे पहले वह संपत्ति खरीदने का अवसर मिलना चाहिए था। यह अधिकार खासतौर पर तब लागू होता है जब किसी मोहल्ले का पड़ोसी या रिश्तेदार यह दावा करता है कि संपत्ति उसे बेची जानी चाहिए थी, न कि किसी बाहरी व्यक्ति को।
धारा 31 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति इस पूर्वक्रय अधिकार को लागू करने के लिए वाद (Suit) करता है, तो Court Fee उस बिक्री मूल्य (Sale Consideration) पर या उस संपत्ति के बाजार मूल्य (Market Value) पर, जो भी कम हो, उस पर निर्धारित की जाएगी।
उदाहरण (Illustration): मान लीजिए कि एक जमीन ₹3,00,000 में बेची गई है, लेकिन उसका बाजार मूल्य ₹5,00,000 है। अगर पास का कोई पड़ोसी पूर्वक्रय का दावा करते हुए वाद करता है, तो Court Fee ₹3,00,000 (जो कम है) के आधार पर लगेगी।
यदि संपत्ति ₹6,00,000 में बिकी है और उसका बाजार मूल्य ₹4,50,000 है, तो Fee ₹4,50,000 के अनुसार लगेगी क्योंकि वह कम है।
इस नियम का उद्देश्य यह है कि पूर्वक्रय वादों में Court Fees बहुत अधिक न हो जाए और न्याय सभी के लिए सुलभ बना रहे।
धारा 32(1): बंधक संबंधी वाद – धन वसूली (Section 32(1): Suit to Recover Mortgage Money)
बंधक (Mortgage) एक ऐसा समझौता होता है जिसमें उधार ली गई रकम के बदले संपत्ति को गिरवी रखा जाता है। यदि उधार लेने वाला (Mortgagor) समय पर पैसा वापस नहीं करता, तो उधार देने वाला (Mortgagee) कोर्ट में जाकर धन वसूलने का मुकदमा कर सकता है।
धारा 32(1) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति अपने बंधक पर बकाया धन की वसूली के लिए वाद करता है, तो Court Fee उस राशि पर लगेगी जितनी राशि का दावा (Amount Claimed) किया गया है।
उदाहरण (Illustration): राम ने श्याम को ₹10,00,000 उधार दिए और उसके बदले उसका मकान बंधक रखा। श्याम ने पैसा वापस नहीं किया, तो राम वसूली का वाद करता है। अब Court Fee ₹10,00,000 (दावे की रकम) के आधार पर लगेगी।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि Court Fee बंधक संपत्ति की Market Value पर नहीं लगेगी, बल्कि सीधे उस रकम पर लगेगी जिसे वादी वापस चाहता है।
धारा 32(2): पहले के बंधकधारी की लिखित प्रति उत्तर (Section 32(2): Written Statement by Prior Mortgage Holder)
कई बार ऐसा होता है कि एक ही संपत्ति पर एक से अधिक बंधक होते हैं — यानि पहले से ही किसी और के पास बंधक का अधिकार होता है। यदि वादी किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ वसूली का वाद करता है, और कोई पूर्व बंधकधारी (Prior Mortgagee) भी उस वाद में शामिल हो जाता है, तो वह लिखित बयान (Written Statement) में यह अनुरोध कर सकता है कि उसके बंधक की रकम भी तय की जाए और उसे भी डिक्री (Decree) में भुगतान का निर्देश मिले।
धारा 32(2) के अनुसार, ऐसे पूर्व बंधकधारी को अपनी दावे की रकम पर Court Fee देनी होगी, जो उसने Written Statement में मांगी है।
उदाहरण (Illustration): मोहन ने सोहन के खिलाफ ₹5,00,000 की बंधक वसूली का वाद किया है। रोहन, जो कि पहले का बंधकधारी है, को भी पक्षकार बनाया गया। रोहन अपने Written Statement में कहता है कि ₹2,00,000 उस पर बकाया हैं और उसे भुगतान का आदेश दिया जाए। तो उसे ₹2,00,000 पर Court Fee देनी होगी।
हालांकि, यदि रोहन पहले ही किसी अन्य वाद में इसी दावे पर Court Fee दे चुका है, तो उसे दोबारा Court Fee नहीं देनी होगी। पहले दिए गए Court Fee का क्रेडिट (Credit) इस वाद में दिया जाएगा। यह प्रावधान न्यायसंगत व्यवस्था सुनिश्चित करता है ताकि किसी से एक ही दावे पर बार-बार Court Fee न ली जाए।
धारा 32(3): विक्रय की आय से भुगतान के लिए आवेदन (Section 32(3): Application for Payment from Sale Proceeds)
कई बार कोर्ट द्वारा आदेशित बंधक संपत्ति की बिक्री होती है। ऐसी स्थिति में कोई पूर्व या बाद का बंधकधारी (Prior or Subsequent Mortgagee) यह आवेदन कर सकता है कि बिक्री की आय (Sale Proceeds) से उसका बकाया चुकाया जाए।
धारा 32(3) के अनुसार, जब कोई Mortgagee बिक्री की राशि में से भुगतान के लिए आवेदन करता है, तो उसे अपने दावे की रकम पर Court Fee देनी होगी।
उदाहरण (Illustration): एक संपत्ति ₹10,00,000 में नीलाम होती है और नीरज, जो पहले का बंधकधारी है, ₹2,00,000 मांगता है। तो उसे Court Fee ₹2,00,000 के अनुसार देनी होगी।
लेकिन इस धारा में दो महत्वपूर्ण छूटें (Exceptions) दी गई हैं।
पहली छूट (First Relief): यदि Mortgagee पहले से ही उस वाद में पक्षकार है और उसने अपनी Written Statement में Court Fee दी थी, तो उसे इस आवेदन पर दोबारा Court Fee नहीं देनी होगी।
दूसरी छूट (Second Relief): यदि Mortgagee उस वाद में पक्षकार नहीं था लेकिन उसने पहले किसी अन्य प्रक्रिया में Court Fee दी थी, तो उस Fee का Credit यहां दिया जाएगा।
इस तरह यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि एक ही दावे के लिए व्यक्ति को बार-बार Court Fee न देनी पड़े।
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम की धारा 31 और धारा 32 की उपधाराएं (1), (2), और (3) यह निर्धारित करती हैं कि विशेष प्रकार के वादों में Court Fee किस आधार पर तय की जाएगी।
धारा 31 में यह सुनिश्चित किया गया है कि पूर्वक्रय वादों में Court Fee उस कीमत के आधार पर लगेगी जो कम हो — विक्रय मूल्य या बाजार मूल्य। इससे पूर्वक्रय करने वाले व्यक्तियों को राहत मिलती है।
धारा 32(1) में साफ बताया गया है कि बंधक की धनराशि वसूलने के वाद में Court Fee उस रकम पर लगेगी जितनी रकम का दावा किया गया है।
धारा 32(2) और 32(3) उन परिस्थितियों को कवर करती हैं जब कोई अन्य Mortgagee भी उस वाद में शामिल होता है या बिक्री की आय से अपने दावे की राशि मांगता है। इन धाराओं में Court Fee के भुगतान को लेकर स्पष्ट नियम हैं और यह भी सुनिश्चित किया गया है कि किसी को दोबारा शुल्क न देना पड़े अगर पहले ही कहीं दिया जा चुका है।
ये प्रावधान न्यायालयीन प्रक्रिया को न्यायपूर्ण (Just), स्पष्ट (Clear) और सुलभ (Accessible) बनाते हैं। धारा 32 के शेष प्रावधानों पर अगला लेख (भाग 2) समर्पित होगा।