किराये पर दी गई संपत्ति का निरीक्षण धारा 25 और 26, राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001

Update: 2025-04-16 13:57 GMT
किराये पर दी गई संपत्ति का निरीक्षण धारा 25 और 26, राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001

धारा 25: मकान का निरीक्षण (Inspection of Premises)

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 25 मकान मालिक (Landlord) के उस अधिकार को निर्धारित करती है जिसके अंतर्गत वह अपने किराए पर दिए गए मकान या संपत्ति का निरीक्षण कर सकता है। यह प्रावधान इसलिए लाया गया है ताकि मकान मालिक यह सुनिश्चित कर सके कि उसकी संपत्ति की स्थिति सही है, उसका दुरुपयोग नहीं हो रहा है, और किरायेदार (Tenant) ने संपत्ति में कोई अवैध या अनुचित परिवर्तन नहीं किया है।

लेकिन यह अधिकार पूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता। इसमें कुछ शर्तें भी तय की गई हैं जिनका पालन करना आवश्यक है:

पहली शर्त: निरीक्षण केवल दिन के समय में ही किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि मकान मालिक रात को या असमय घर पर जाकर निरीक्षण नहीं कर सकता।

दूसरी शर्त: निरीक्षण से कम-से-कम सात दिन पहले किरायेदार को सूचित करना आवश्यक है। यानी, मकान मालिक को पहले से किरायेदार को बता देना होगा कि वह किस तारीख को निरीक्षण करने आएगा।

तीसरी शर्त: ऐसा निरीक्षण हर तीन महीने में केवल एक बार ही किया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित किया गया है कि किरायेदार को बार-बार तंग न किया जाए और उसकी निजता का सम्मान बना रहे।

उदाहरण के रूप में: मान लीजिए कि राम लाल जी ने अपना मकान किराये पर दे रखा है और उन्हें शक है कि घर की दीवारों में सीलन आ गई है। वे दिन में 10 बजे निरीक्षण करना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें कम से कम सात दिन पहले किरायेदार को सूचना देनी होगी और केवल तीन महीने में एक बार ही ऐसा निरीक्षण कर सकते हैं।

इस धारा का उद्देश्य मकान मालिक और किरायेदार दोनों के हितों की रक्षा करना है ताकि किसी को अनुचित तरीके से परेशान न किया जाए।

धारा 26: न्यायाधिकरण के सदस्य और कर्मचारी – लोक सेवक का दर्जा एवं उनके नियंत्रण (Tribunal Officers and Staff as Public Servants)

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 26 बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह स्पष्ट करती है कि किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) और अपीलीय किराया न्यायाधिकरण (Appellate Rent Tribunal) के सदस्य और कर्मचारी सरकारी सेवकों के समान माने जाएंगे।

इसमें कुल पाँच उपधाराएं (Sub-sections) हैं जिन्हें नीचे विस्तार से समझाया गया है:

(1) लोक सेवक का दर्जा (Status of Public Servant)

धारा 26(1) के अनुसार, किराया न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) और कर्मचारी भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 21 के अंतर्गत लोक सेवक (Public Servant) माने जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वे सभी नियमों, नैतिकताओं और उत्तरदायित्वों का पालन करें जो कि एक सरकारी सेवक से अपेक्षित होते हैं।

उदाहरण: यदि न्यायाधिकरण का कोई कर्मचारी अपने पद का दुरुपयोग करता है या रिश्वत लेता है, तो उसके खिलाफ वही कार्रवाई होगी जो किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध की जाती है।

(2) हाईकोर्ट का नियंत्रण (Control of High Court)

धारा 26(2) के तहत, किराया न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारी राजस्थान हाईकोर्ट के प्रशासनिक और अनुशासनात्मक नियंत्रण में कार्य करेंगे। इसका अर्थ है कि उनकी नियुक्ति, स्थानांतरण, अनुशासनात्मक कार्रवाई आदि का निर्णय हाईकोर्ट करेगा।

(3) पर्यवेक्षण और नियंत्रण (Supervision and Control)

धारा 26(3) में यह बताया गया है कि अपीलीय किराया न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के पास अधीनस्थ किराया न्यायाधिकरणों पर सामान्य नियंत्रण और पर्यवेक्षण (Superintendence) का अधिकार होगा। वे इन न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों के कार्यों का मूल्यांकन कर सकते हैं और उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (Annual Confidential Report) तैयार करने का कार्य भी करेंगे।

इसका उद्देश्य यह है कि न्यायाधिकरण की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बना रहे।

(4) मंत्री-स्तरीय कर्मचारी (Ministerial Staff)

धारा 26(4) कहती है कि किराया न्यायाधिकरणों और अपीलीय किराया न्यायाधिकरणों के मंत्री-स्तरीय कर्मचारी (जैसे क्लर्क, रजिस्ट्रार आदि) राजस्थान अधीनस्थ न्यायालय मंत्री सेवा नियम, 1986 (Rajasthan Subordinate Courts Ministerial Establishment Rules, 1986) के अधीन कार्य करेंगे।

यह भी कहा गया है कि अपीलीय किराया न्यायाधिकरणों को जिला एवं सत्र न्यायालय (District and Sessions Courts) और किराया न्यायाधिकरणों को वरिष्ठ सिविल न्यायालय (Civil Judge Senior Division) के समान माना जाएगा।

इसका सीधा मतलब है कि सभी नियम वही लागू होंगे जो सामान्य दीवानी अदालतों के कर्मचारियों पर लागू होते हैं।

(5) चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (Class IV Employees)

धारा 26(5) में कहा गया है कि इन न्यायाधिकरणों के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (जैसे चपरासी आदि) राजस्थान चतुर्थ श्रेणी सेवा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम, 1999 (Rajasthan Class IV Services Rules, 1999) के अंतर्गत कार्य करेंगे।

इससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी स्तर के कर्मचारी नियमबद्ध, पारदर्शी और जवाबदेह सेवा में लगे रहें।

धारा 25 और 26 को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट होता है कि राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 का उद्देश्य केवल किराया विवादों का समाधान करना नहीं है, बल्कि मकान मालिक, किरायेदार और न्यायाधिकरण—तीनों के कार्यों और अधिकारों को संतुलित और पारदर्शी ढंग से निर्धारित करना भी है।

धारा 25 जहां किराये पर दिए गए मकान की निरीक्षण व्यवस्था को नियमित करती है, वहीं धारा 26 यह सुनिश्चित करती है कि किराया न्यायाधिकरणों के अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह से निष्पक्ष और उत्तरदायी व्यवस्था में काम करें।

इन प्रावधानों की पालना से विवादों की संभावना कम होती है और यदि विवाद उत्पन्न होते हैं, तो उनके समाधान की प्रक्रिया निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होती है। इससे आम नागरिक को न्याय मिलने में सहूलियत होती है और एक विश्वासपूर्ण वातावरण बनता है।

अगर आप चाहें तो मैं अगली धारा (Section 27) पर भी इसी तरह का विस्तृत सरल हिंदी लेख तैयार कर सकता हूँ।

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