वाद में दावे के कुछ भाग का त्याग और लिखित बयान पर शुल्क: धारा 13 और 14 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961

Update: 2025-04-03 14:18 GMT
वाद में दावे के कुछ भाग का त्याग और लिखित बयान पर शुल्क: धारा 13 और 14 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961

न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में शुल्क निर्धारण (Fee Determination) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के तहत मुकदमों में वादपत्र (Plaint) और लिखित बयान (Written Statement) पर शुल्क निर्धारित करने की प्रक्रिया विस्तार से बताई गई है।

पहले की धाराओं (Sections 10, 11 और 12) में वाद की विषय-वस्तु का मूल्यांकन, शुल्क में संशोधन और अतिरिक्त मुद्दों पर शुल्क लगाने की व्यवस्था की गई थी। इसी संदर्भ में धारा 13 और धारा 14 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961 वाद में दावे के कुछ भाग के त्याग (Relinquishment of Claim) और प्रतिवादी द्वारा दायर लिखित बयान पर शुल्क लगाने के प्रावधानों को निर्धारित करती हैं। इस लेख में हम इन दोनों धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या करेंगे और पहले के प्रावधानों के साथ इनके आपसी संबंध को स्पष्ट करेंगे।

धारा 13: दावे के कुछ भाग का त्याग (Relinquishment of Portion of Claim)

धारा 13 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961 यह प्रावधान करती है कि यदि वादी (Plaintiff) को अतिरिक्त शुल्क (Additional Fee) भरने के लिए कहा गया है, तो वह अपने दावे (Claim) का कुछ भाग त्याग (Relinquish) सकता है और वादपत्र में संशोधन (Amendment) कराने का आवेदन कर सकता है, ताकि जमा किया गया शुल्क संशोधित दावे के अनुरूप पर्याप्त हो सके।

न्यायालय इस आवेदन को अपने उचित समझ (Just) पर स्वीकृत करेगा और संशोधित दावे के आधार पर सुनवाई जारी रखेगा। इस प्रक्रिया में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि वादी को मुकदमे के बाद के किसी भी चरण में त्यागे गए हिस्से को पुनः जोड़ने की अनुमति न हो।

इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि यदि किसी वादी के दावे का कुल मूल्य इतना अधिक हो कि उसके आधार पर शुल्क भरना मुश्किल हो, तो वह अपने दावे का कुछ हिस्सा त्यागकर कुल मूल्य को कम कर सकता है। इससे न केवल अतिरिक्त शुल्क का बोझ घटता है बल्कि मुकदमे की सुनवाई सुचारू ढंग से हो सकती है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक वादी ने संपत्ति के स्वामित्व का दावा करते हुए उच्च मूल्य का दावेदार (Claim) दाखिल किया है। यदि न्यायालय यह पाता है कि इस दावे के आधार पर जो शुल्क तय किया गया है वह वादी के लिए अत्यधिक है, तो वादी द्वारा कुछ हिस्से का त्याग करने का विकल्प उपलब्ध कराया जाता है। ऐसा करने से संशोधित दावे के आधार पर शुल्क निर्धारित किया जाएगा और वादी को भविष्य में उस त्यागे गए हिस्से को पुनः नहीं जोड़ा जा सकेगा।

यह प्रावधान धारा 11 के सिद्धांतों (Principles) के अनुरूप है, जिसमें न्यायालय द्वारा सही शुल्क का निर्धारण और समीक्षा की प्रक्रिया का उल्लेख है। धारा 11 में यदि किसी पक्ष द्वारा यह दावा किया जाता है कि शुल्क अपर्याप्त है या गलत तरीके से निर्धारित किया गया है, तो न्यायालय अतिरिक्त शुल्क वसूली या रिफंड के आदेश दे सकता है। धारा 13 में वादी को दावे का कुछ भाग त्यागने का विकल्प देकर न्यायिक प्रक्रिया में लचीलापन (Flexibility) प्रदान किया गया है, जिससे कि वादी अतिरिक्त शुल्क भरने के बोझ से बच सके और मुकदमे की सुनवाई बिना किसी बाधा के जारी रह सके।

धारा 14: लिखित बयान पर शुल्क (Fee Payable on Written Statement)

धारा 14 यह निर्धारित करती है कि प्रतिवादी (Defendant) द्वारा दायर लिखित बयान पर भी शुल्क उसी प्रक्रिया के अनुसार लगाया जाएगा, जैसा कि वादपत्र पर शुल्क के लिए निर्धारित किया गया है। इस धारा में प्रतिवादी को वादी की तरह ही माना जाता है, अर्थात् लिखित बयान पर शुल्क निर्धारित करने के लिए धारा 11 के प्रावधान लागू होते हैं। इसके विपरीत, जिस पक्ष के खिलाफ दावा किया गया है, उसे इस संदर्भ में प्रतिवादी के समान माना जाता है।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि मुकदमे में शुल्क निर्धारण में समानता बनी रहे। चाहे वादी वादपत्र दाखिल करे या प्रतिवादी अपना लिखित बयान पेश करे, दोनों पर शुल्क निर्धारित करने की प्रक्रिया एक समान रहेगी।

उदाहरण स्वरूप, यदि किसी मामले में प्रतिवादी ने अपने लिखित बयान में अपनी प्रतिरक्षा (Defense) और कुछ प्रतिदावे (Counterclaims) पेश किए हैं, तो उस लिखित बयान पर शुल्क निर्धारित करने के लिए वही नियम लागू होंगे जो वादपत्र पर लागू होते हैं। यदि शुल्क अपर्याप्त पाया जाता है तो न्यायालय अतिरिक्त शुल्क भरने के निर्देश देगा, और यदि शुल्क अधिक जमा हुआ है, तो अतिरिक्त राशि वापस करने का आदेश जारी करेगा।

धारा 14 का यह प्रावधान न्यायालय में शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया में संतुलन (Balance) और पारदर्शिता (Transparency) बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। इससे न केवल वादी बल्कि प्रतिवादी भी न्यायसंगत ढंग से शुल्क का भुगतान करते हैं, जिससे कि किसी एक पक्ष को अनुचित लाभ न हो सके।

पूर्व धाराओं का संदर्भ (Reference to Previous Sections)

इस संदर्भ में पूर्व धाराओं का उल्लेख महत्वपूर्ण है। धारा 10 में वादी को वाद की विषय-वस्तु और उसका मूल्यांकन (Valuation) निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया था, जिस पर आधारित शुल्क की गणना की जाती है।

धारा 11 में यह प्रक्रिया विस्तृत रूप से समझाई गई है कि किस प्रकार न्यायालय वादपत्र और लिखित बयान में दिए गए शुल्क का मूल्यांकन करता है और यदि आवश्यक हो तो उसे संशोधित करता है। धारा 12 में मुकदमे में नए मुद्दों के कारण अतिरिक्त शुल्क लगाने की व्यवस्था की गई थी। इन सभी प्रावधानों से मिलकर एक समग्र ढांचा (Framework) तैयार होता है, जो सुनिश्चित करता है कि मुकदमे में शुल्क निर्धारण न्यायसंगत और पारदर्शी तरीके से हो।

धारा 13 और धारा 14 इन प्रक्रियाओं के विस्तार में योगदान देती हैं। धारा 13 वादी को दावे के कुछ हिस्से का त्याग करके शुल्क बोझ को कम करने का विकल्प प्रदान करती है, जबकि धारा 14 प्रतिवादी के लिखित बयान पर भी वही शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया लागू करती है, जो वादपत्र पर होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि मुकदमे में सभी पक्षों पर समान रूप से शुल्क लागू हो और कोई भी पक्ष अन्यायपूर्ण लाभ न उठा सके।

उदाहरण और व्यावहारिक स्थिति (Illustrations and Practical Situations)

कल्पना कीजिए कि एक संपत्ति विवाद के मामले में वादी ने उच्च मूल्य का दावा दाखिल किया है। न्यायालय द्वारा दी गई प्रारंभिक समीक्षा के बाद पाया जाता है कि दावे के आधार पर तय शुल्क वादी के लिए बहुत अधिक है।

ऐसे में वादी धारा 13 के अंतर्गत अपना कुछ दावा त्याग सकता है, ताकि संशोधित दावे के आधार पर शुल्क पर्याप्त हो जाए। यदि वादी यह त्याग करता है और संशोधित वादपत्र प्रस्तुत करता है, तो न्यायालय संशोधित दावे पर सुनवाई जारी रखेगा और वादी को भविष्य में त्यागे गए हिस्से को पुनः जोड़ने की अनुमति नहीं देगा।

एक अन्य परिदृश्य में, मान लीजिए कि प्रतिवादी ने अपने लिखित बयान में पूरी तरह से अपनी प्रतिरक्षा का विवरण प्रस्तुत किया है। धारा 14 के अनुसार, इस लिखित बयान पर शुल्क उसी आधार पर निर्धारित किया जाएगा जैसा कि वादपत्र पर होता है। यदि न्यायालय पाता है कि इस लिखित बयान के आधार पर शुल्क अपर्याप्त है, तो प्रतिवादी को अतिरिक्त शुल्क जमा करने का आदेश देगा, अन्यथा यदि अधिक शुल्क जमा हुआ है, तो अतिरिक्त राशि प्रतिवादी को वापस की जाएगी।

इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि धारा 13 और धारा 14 दोनों ही मुकदमे में शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि वादी और प्रतिवादी दोनों के ऊपर समान और न्यायसंगत शुल्क लगे, जिससे कि मुकदमे की सुनवाई में पारदर्शिता बनी रहे और किसी भी पक्ष को अतिरिक्त आर्थिक बोझ न उठाना पड़े।

धारा 13 और धारा 14 राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के ऐसे प्रावधान हैं जो मुकदमे में शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया को संतुलित और न्यायसंगत बनाते हैं। धारा 13 के अंतर्गत वादी को दावे के कुछ भाग का त्याग करने का विकल्प मिलता है, जिससे कि अतिरिक्त शुल्क का बोझ कम हो सके।

वहीं, धारा 14 सुनिश्चित करती है कि प्रतिवादी द्वारा दायर लिखित बयान पर भी वही शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया लागू हो, जो वादपत्र पर होती है। पूर्व धाराओं जैसे कि धारा 10, 11 और 12 में निर्धारित प्रक्रियाओं के साथ मिलकर ये प्रावधान मुकदमे की सुनवाई को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाते हैं। इस प्रकार, इन धाराओं के माध्यम से न्यायालय में शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया में किसी भी पक्ष को अनुचित लाभ या बोझ से बचाया जाता है, जिससे कि सम्पूर्ण न्यायिक प्रक्रिया का संचालन सुचारू रूप से हो सके।

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